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वकालत के पेशे की विश्वसनीयता और सम्मान कायम रखने के लिए राज्य और वकील समुदाय को तुरंत प्रयास करने होंगे।

एक समय था जब वकीलों के पेशे को देश भर में सम्मान प्राप्त था। पर सम्मान का वह युग कोई बीस वर्ष पूर्व ही समाप्त हो चुका है। तीसरा खंबा की पिछली कड़ी पर आयी टिप्पणियां इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं। आप के तुरंत अवलोकन के लिए मैं वे दोनों टिप्पणियां ज्यों की त्यों यहां उद्धृत कर रहा हूं :

  • मगर यह धारणा सभी वकीलों के लिए सही नहीं है। अधिकांश वकील अपने व्यवसाय और अपने मुवक्किलों के प्रति ईमानदार और कर्तव्यपरायण हैं और अपने मुवक्किल, न्याय प्रणाली तथा समाज के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह पूरी निष्ठा के साथ करते हैं।
    ऐसे वकीलों के दर्शन कहाँ हो सकते हैं? अनुनाद सिंह

  • वे वकील कौन थे जो न्याय को अपने हाथ में ले नौएडा/निठारी में बच्चों कि हत्या के अभियुक्तों को मार मार कर अधमरा कर रहे थे ?


खैर अच्छे बुरे लोग सब पेशों में पाए जाते हैं , किन्तु कुछ तो कारण होगा कि आम आदमी वकीलों से दूर ही बना रहना चाहता है।घुघूती बासूतीMired Mirage

वकालत के पेशे की ऐसी हालत क्‍यों हुई? ऐसा क्‍या हुआ कि एक चौथाई सदी ने एक पेशे को समाज के सबसे सम्मानित पेशों की सूची के ऊपर से निकाल कर एकदम नीचे पंहुचा दिया?

ये सभी सवाल आज वकील समुदाय के सामने मुंह बाए खड़े हैं। इन का जवाब भी वकील समुदाय ही खोज कर ला सकता है। वक्त आ गया है कि वकील समुदाय इन प्रश्नों से मुंह चुराने के स्थान पर इन प्रश्नों की सचाई को समझे। इस के कारणों का पता लगाए और उन कारणों को दूर करने का प्रयास करे। इन प्रयासों का प्रारंभ वकील समुदाय के भीतर से ही हो तो उस के अच्छे परिणाम भी शीध्र ही देखने को मिल सकते हैं।

न्यायपालिका, कार्यपा‍लिका और विधायिका के दायित्‍व

वकील न्याय प्रणाली का अहम् हिस्सा हैं। उन की सहायता के बिना कोई भी किसी भी अदालत से न्याय प्राप्त नहीं कर सकता। नई तकनीकों का विस्तार और उन के कारण समाज का विकास सदैव नई तथा पहले से जटिल परिस्थितियों को उत्पन्न करते हैं। इन जटिल परिस्थितियों में नए कानूनों और नियमों की आवश्यकता होती है। इन कारणों से कानून-नियम और अधिक जटिलतर होते जाते हैं। इस तरह वकीलों की भूमिका न्याय प्राप्ति के लिए और अधिक जरूरी होती जाती है। परिवार न्यायालय और अन्य अनेक न्यायालय हैं जिन में वकीलों का प्रवेश सर्वथा अथवा आंशिक रूप से वर्जित है। इन न्यायालयों का अनुभव यह बताता है कि वहां बिना वकीलों की सहायता के अर्जी तक लगा पाना दूभर है। फिर पूरी प्रक्रिया से गुजरने और एक निर्णय हासिल करने में तो उन की सहायता निहायत जरूरी हो जाती है। परिवार न्यायालयों के जज साहबान पहली-दूसरी पेशी पर ही न्यायार्थियों को किसी अच्छे वकील की सहायता प्राप्त करने की सलाह देने लगते हैं, चाहे वे उसी मुकदमे में पक्षकारों को वकीलों के माध्यम से पैरवी कराने की न दें।

इस तरह हम पाते हैं कि न्याय प्रणाली को वकील समुदाय के बिना चला पाना संभव नहीं है। इस कारण से इस समुदाय के लिए आम लोगों में गलत धारणाऐं बनना स्वयं न्याय प्रणाली का भी दोष है। क्यों कि इस दोष को न्याय प्रणाली से मिटाए बिना न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता को बनाए रखना मुमकिन नहीं है। इस कारण से वकील समुदाय पर आम जनता का विश्वास और सम्मान कायम रहना आवश्यक है। यही कारण है कि राज्य के तीनों अंगों का यह प्राथमिक दायित्व बन जाता है कि वे तीनों न्याय प्रणाली में आए इस दोष को दूर करने के उपाय अत्यन्त गंभीरता के साथ करें।

यदि इस तरह के उपाय नहीं किए गए और वकीलों उठती विश्वसनीयता और गिरते हुए सम्मान की यही दशा कायम रही तो दिनों दिन न्याय प्रणाली पर से जनता का विश्वास कम होता जाएगा। यह स्वयं राज्य पर से जनता के विश्वास को समप्त कर देगा। तब या तो अराजकता का साम्राज्य होगा या फिर राज्य के ढांचे में आमूल चूल परिवर्तन की बयार जल्दी ही देखने को मिलेगी।


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