DwonloadDownload Point responsive WP Theme for FREE!

न्याय की स्थापना ही एक समाज को अराजकता से बचा सकती है

आप ने देख लिया। पाकिस्तान में किस तरह बेनजीर की हत्या हुई और उस के बाद किस तरह पूरा पाकिस्तान अराजकता के हवाले है। हालात यह हैं कि बेनजीर की अन्त्येष्टी में सम्मिलित होने के जाने वाले देशों के प्रतिनिधियों को मना कर दिया गया कि वे सुरक्षा कारणों से पाकिस्तान न आऐं। एक राष्ट्र के रूप में यह पाकिस्तान की सब से बड़ी असफलता है। इस का कारण पाकिस्तान में एक न्यायपूर्ण व्यवस्था का स्थापित नहीं हो पाना है।

यदि हम इस से यह समझें कि जहाँ एक मजबूत राज्य व्यवस्था है वहाँ कभी भी ऐसे हालात पैदा नहीं हो सकते, तो यह हमारी बहुत बड़ी गलत फहमी होगी। एक मजबूत राज्य व्यवस्था भी धीरे धीरे कमजोर हो कर ऐसी हालत में पहुँच सकती है। हम अपने ही देश में देख रहे हैं कि धीरे धीरे जनभावनाएं इतनी उत्तेजित कर दी जाती हैं कि कभी भी सांप्रदायिक दंगे भड़काए जा सकते हैं। यह ठीक है कि उन पर जल्दी ही काबू भी कर लिया जाता है। लेकिन उस का एक कारण यह भी है कि अभी देश में इस तरह से फसाद फैलाने वाले लोग देश के कुछ ही हिस्सों में सफल हो पाते हैं।

किसी् भी समाज में संप्रदायवाद, जातिवाद और जनता को विभाजित करने वाली अन्य मानसिकताएं पनपने का एक ही मुख्य कारण है कि समाज में ये विभिन्नताएं और इन विभिन्नताओं के आधार पर समाज में भेदभाव भौतिक रूप मौजूद है। इन आधारों पर कानून होते हुए भी जनसमूहों के साथ अन्याय होता है। ये सभी अन्याय गंभीर अपराध के रूप में चिन्हित करके राज्य ने उन्हें दण्डनीय भी बना दिया है। लेकिन हम इन सामाजिक अपराधों के लिए दण्ड दिए जाने की व्यवस्था पर नज़र डालें तो वह अपर्याप्त प्रमाणित होती है। लोगों को जब न्याय मिलने की उम्मीद नहीं होती है तो संप्रदाय, जाति और धर्म के आधार पर अपने ही बूते पर न्याय करने के लिए संगठित करना आसान होता है। उत्तेजना के माहौल में जब भीड़ें कथित न्याय करने पर उतर आती हैं तो इंसान इंसान के खून का प्यासा हो उठता है।

ये स्थितियाँ तभी उत्पन्न होती हैं जब जनता यह जानने लगती है कि राज्य की न्याय व्यवस्था उन्हें न्याय प्रदान करने में समर्थ नहीं रही है तथा न्याय होगा भी तो तब जब कि वे खुद इस दुनियां में नहीं रहेंगे और अन्याय करने वाले मौज करते रहेंगे। मेरी पिछली पोस्ट से यह स्पष्ट हो चुका है कि हमारे देश की न्याय प्रणाली के मुखिया स्वयं ये कह रहे हैं कि उन्हें त्वरित न्याय देने के लिए 77000 से अधिक जजों की जरूरत है और वर्तमान में उन के पास केवल 12000 जज हैं। राजनीतिज्ञ और हमारी नौकरशाही इस समस्या को आज गंभीरता से नहीं ले रही है। लेकिन शीघ्र ही इस बीमारी की चिकित्सा नहीं की गई तो यह नासूर बन जाएगी और इसे और राज्य और समाज को स्वस्थ बना पाना संभव नहीं रह जाएगा।

एक न्यायपूर्ण समाज ही सब से स्थाई समाज हो सकता है। यदि समाज में अन्य कमियां हों तो भी वह चल सकता है किन्तु न्याय ही न हो तो उसे चला पाना असंभव है। एक व्यक्ति कम खाकर वर्षों न्यायपूर्ण समाज में जी सकता है लेकिन न्यायविहीन समाज में वह शीघ्र ही समाज के ध्वंस के मार्ग पर चल पड़ता है। न्याय की स्थापना ही एक समाज को अराजकता से बचा सकती है

Print Friendly, PDF & Email
2 Comments