DwonloadDownload Point responsive WP Theme for FREE!

चैक बाउंस के अपराधिक कानून के पारिणामिक पहलू

…….(कल से आगे)
1. चैक बाउंस के मामले के कानून के पारिणामिक पहलू पाँच साल पहले ही दिखाई पड़ने लगे थे। पर जब वित्तीय संस्थाओं ने इसे अपने व्यापार का अनिवार्य अंग बना लिया तो परिणामों की तस्वीर बदलने लगी। अब पहले से ही ओवर क्राउडेड जेलों में सजायाफ्ता कैदियों और अण्ड़र ट्रॉयल हिरासतियों में चैक बाउंस के अपराधी और अभियुक्त भी शामिल हो गए। 
2. तस्वीर के एक पहलू की बानगी तो आपने देख ही ली दूसरी यह कि पहले से ही मुकदमों से ठसाठस लदी अदालतों पर नए प्रकार के अपराधिक मुकदमों का बोझा लाद दिया गया है। यह बोझा इतना है कि परम्परागत अपराधों की संख्या उस के सामने फीकी पड़ गई है।
3. तीसरा पहलू यह है कि जिन अदालतों से बानवे प्रतिशत मामलों में अभियुक्त बरी (दोषमुक्त) हो जाते हैं वे ही अदालतें इस तरह के निनानवे दशमलव निनानवे मामलों में सजाऐं सुना रही हैं।
4. चौथा पहलू है कि इस नए कानून का फायदा उधार वस्तुएं बेचने और उधार देने वाले व्यवसायी, वित्तीय संस्थान और सूदखोर देनदारी के अस्तित्व मे आने के पहले ही बिना तारीख लगे, यहाँ तक कि बिना रकम भरे चैक प्राप्त कर इस कानून का लाभ उठा रहे हैं। 
अनेक मामले ऐसे भी हैं जहां कोई मजबूर व्यक्ति किसी सूदखोर से उधार लेते समय मजबूरी में खाली चैक दे देता है। यहाँ तक कि सूदखोर उस के चुकारे की किस्तों के नाम पर अनेक चैक ले लेता है, किस्ते नकद लेता रहता है। कभी भी चूक हो जाने पर मनमानी रकम चैक में भर कर मुकदमा कर देता है और इस कदर जुल्म ढाता है कि सामंती जमाने के सूदखोरों के निर्मम शोषण की कहानियाँ फीकी पड़ जाती हैं।
यहाँ विचारणीय बात है कि संपत्ति या धन का लेन-देन पूरी तरह से दीवानी मामला है। उसे अपराधिक क्यों बना दिया गया है? और वह भी १९८९ में जा कर। इस समय कौन सी ऐसी सामाजिक परिस्थितियाँ ऐसी थीं जिन के कारण इस तरह का कानून आप को लाना पड़ा जिस से देश की क्षमता से पाँच गुना अधिक बोझा ढोती अदालतों पर एक गुना बोझ और डाल दिया गया।
यह नए आर्थिक सुधारों को लागू करने का समय था। बहुराष्ट्रीय व देशी वित्तीय और कारपोरेट ताकतों के दबावों के चलते सरकार यह कानून ले कर आयी। आज जब इस के परिणाम सामने आ रहे हैं और भुक्तभोगी जनता सरकार को गालियां देती है तो किसी दलीय नेता से उस का जवाब नहीं बन पड़ता है। 
दीवानी कानून क्यों नहीं?
संपत्ति या धन का लेन-देन जो पूरी तरह से दीवानी मामला है। उस के लिए होना यह चाहिए था कि अदालतों की संख्या बढ़ा कर दीवानी अदालतों को सशक्त बनाया जाता और देनदारियों के निपटान को न्यूनतम अवधि में सुनिश्चित किया जाता। पर उस समय तो बहुराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं का यह भी दबाव था कि सरकारी खर्चों को कम किया जाए, फिर न्याय प्रणाली पर खर्च को कैसे बढ़ाया जा सकता था। नतीजा यह रहा कि सांमन्ती कानूनों से भी अधिक निर्मम साहूकारी कानून जनता पर थोप दिया गया। कुल मिला कर मार गरीब और मध्यवर्गीय जनता पर ही पड़ी। 
लेकिन अब जब कि इस कानून के बोझ से हमारी न्याय प्रणाली की कमर दोहरी होने को है, यह कैसे हो सकता था कि वह चीत्कार भी नहीं करती। अब हमारी सरकार इस चीत्कार को पहचाने, तो पहचान ले, अन्यथा अगर मार से कमर टूटने लगी तो, परिणाम क्या होगा? इस पर उसे अभी से विचार करना प्रारम्भ कर देना चाहिए। 
अपनी ही पोस्ट के अन्त में अपनी ही टिप्पणी लगाने का आशय यह था कि अपने पाठकों के कुछ कानूनी सवालों के जवाब तीसरा खंबा से क्यों न मिलें? इस तरह का काम साथ साथ चलना चाहिए, तभी समूह समाज बन पाते हैं। यह गतिविधि बढ़ेगी तो मुझे प्रसन्नता होगी। 
आपके सवाल? मेरा जवाब।  
  • ज्ञान जी आप को निर्णय की त्वरितता के बारे में इलाहाबाद की अदालत में ही जानकारी करनी होगी। वहाँ आप के बैंक की शाखा जिस में आप चैक जमा कराएं और जिस से आप को चैक के डिसऑनर होने की सूचना प्राप्त हो उस के थाना क्षेत्र पर अधिकारिता रखने वाले अपराधिक न्यायालय में कितने मुकदमे लम्बित हैं और वहाँ कितने दिनों में अगली सुनवाई के लिए पेशियाँ पड़ रही हैं, यह जानना होगा। उसी से यह निर्धारित होगा कि आप का मुकदमे की उम्र क्या होगी। अगर चैक ५-१० हजार से अधिक का नहीं है तो मुकदमे से कोई फायदा नहीं, आप को ही अधिक परेशानी होगी। यह फौजदारी कार्यवाही होगी, हर पेशी पर आप की उपस्थिति अनिवार्य है, या फिर उस के लिए आप के वकील को अनुपस्थित रहने के दिन अदालत में उपस्थिति से छूट के लिए आवेदन देना होगा। हाँ, आप स्थाई छूट भी प्राप्त कर सकते हैं। मेरे विचार में आप की व्यस्तताओं के बीच कोर्ट जाना आप के लिए लक्जरी सिद्ध हो सकता है। मेरे अनेक मुवक्किल हैं जो थक कर अपना मुकदमा बन्द करा गए हैं। 
  • पुराणिक जी को घबड़ाने की जरूरत नहीं है। उन के लेखन और आनन्द के लिए वैसा नहीं होने जा रहा जैसा वे सोच रहे हैं। अदालतों के पास वैसे सनसनी वाले मामले फिर भी आते ही रहेंगे। बल्कि होगा यह कि उन में फैसलों में और देरी होने लगेगी। अभियुक्तों अधिक संख्या में बरी होने लगेंगे। अपराधियों में कानून का भय कम हो जाएगा और इससे क्राइम रेट बढ़ेगा। अधिक अपराध होंगे। लिखने वालों को अधिक मसाला मिलेगा और पाठकों को अधिक आनन्द।
  • भट्ट जी। काशः आप का चैक बाउंस न हो। अगर हो जाए और चैक की वैधता (जो चैक के जारी करने की तारीख से छह माह होती है, यदि चैक पर उस से कम समय की टिप्पणी अंकित न हो तो) समाप्त होने में पर्याप्त समय शेष हो तो एक बार चैक जारी करने वाले से बात कर के उस से नकद भुगतान प्राप्त कर लें, या वैधता के दौरान दुबारा चैक बैंक में लगा दें। दुबारा प्रस्तुत करने पर भी अगर बाउंस हो जाता है तो आप को बाउंस होने की सूचना मिलने से तीस दिन के भीतर चैक जारी करने वाले को रजिस्टर्ड ए.डी. डाक से नोटिस दे दें कि वह भुगतान नकद कर दे, फिर भी भुगतान नहीं करता है तो नोटिस भेजने की तारीख से पैंतालीस दिनों के भीतर ही अदालत में परिवाद प्रस्तुत करवा दें। अधिकतर लोगों के साथ होता यह है कि वे मियाद के मामले में पिट जाते हैं और इस कानून के तहत उनको मिलने वाले उपाय का रास्ता बंद हो जाता है। < o:p>
नोटः- कल के नोट के उत्तर में कोई सीधा सवाल तो नहीं आया था पर जो शंकाएँ आई थीं उन के सम्बन्ध में जानकारी देने का प्रयत्न मैं ने किया है। यह सिलसिला चले तो मुझे भी प्रसन्नता होगी। तीसरा खंबा के मुख्य उद्देश्य भारत की न्याय प्रणाली को सक्षम व श्रेष्ठ बनाने के प्रयास को भी इस से मदद मिलेगी।
Print Friendly, PDF & Email
3 Comments