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न्याय प्रणाली-भ्रष्टाचार का प्रतिशत और पूल

पिछले अंक में मैं भारत की न्याय प्रणाली पर गर्व कर रहा था। गलती से मैं ने एक शर्मनाक बात के बारे में लिख गया था। लेकिन उस के बात शर्म की लाइन लग गई। इस बार मैं नहीं बोला। बोले भारत की लोकसभा के स्पीकर सोमनाथ चटर्जी। उन्हों ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री एस.पी. भरुचा को उद्धृत करते हुए कहा कि देश के 20 प्रतिशत न्यायाधीश भ्रष्ट हो सकते हैं। यानी हर पाँच में से एक न्यायाधीश भ्रष्ट है। उन्हों ने यह भी कहा कि हमारी पूरी न्यायपालिका सिस्टम की पूर्णतया औवरहॉलिंग की जरुरत है वरना लोगों को इस सिस्टम पर विश्वास नहीं रहेगा।

चटर्जी महोदय ने इस बात पर अपना कोई मंतव्य व्यक्त नहीं किया कि देश में जरुरत की केवल 16 प्रतिशत अदालतें क्यों है और सरकारें अदालतों की संख्या बढ़ाने के लिए क्या कर रही है? या कि संसद इस सवाल पर मौन क्यों है?

खैर इस समय मुझे भ्रष्टाचार से सम्बद्ध एक घटना स्मरण आ रही है। उसी की बात की जाए।

मेरे पास उन दिनों एक ही मुवक्किल(client) के कोई पन्द्रह-बीस मुकदमे थे। उसे एक ही व्यक्ति ने परेशान कर रखा था और हर छोटी-मोटी बात को ले कर मुकदमा कर देता था किसी न किसी प्रकार से स्थगन आदेश प्राप्त कर लेता था और मेरे मुवक्किल का काम रुक जाता था। मेरे मुवक्किल को इस बात का संदेह था कि उस के प्रतिद्वंदी ने किसी प्रकार से जज को प्रभाव में ले रखा है और वह उस की तरफदारी करता है। प्रतिद्वंदी ने एक नए मुकदमें में फिर स्थगन हासिल किया और मेरे मुवक्किल का काम फिर रुक गया। इस बार मेरा मुवक्किल बौरा गया। उस ने कहा वकील साहब अब की बार कैसे भी हो इस की अपील करें और हम भी अपील जज को प्रभावित कर फैसला अपने हक में करवा लें। मैं ने तो बीस साल में ऐसा कोई काम किया नहीं था। इस लिए इस तरह का कौशल दिखाने से मना कर दिया।

.मेरे मुवक्किल ने एक ऐसे व्यक्ति का पता लगाया जिस का अपील जजों में से एक के साथ उठना बैठना था। संयोग से यह व्यक्ति मेरा मित्र भी था। मैं ने भी जजों की असलियत जान ने के लिय़े उससे बात की। तो वह कहने लगा कल ही जज साहब से बात कर लेंगे कि इस मामले में क्या किया जा सकता है?

तीसरे दिन मेरे उन मित्र ने आ कर बताया कि जज साहब फाइल देखना चाहते हैं और मेरे कार्यालय से उस केस की फाइल ले गया।

हम तब तक अपील फाइल कर चुके थे। फाइल को पाँच में से किसी अपर जज के यहाँ स्थानान्तरित होना था। इसलिए मैं ने उन मित्र महाशय से यह भी कह दिया था कि जज साहब से यह भी पूछ लेना कि उन की अदालत में स्थानान्तरित करवा लें या नहीं। क्यों कि दूसरे जज की अदालत में जाने से उन को यह काम करने का अवसर समाप्त हो जाता।

दो दिन बाद मित्र महाशय ने आ कर बताया कि आप को बीस हजार खर्च करने होंगे। आप का काम हो जाएगा। रुपय़ा पहले देना होगा।

मैं ने कहा तो उन की अदालत में केस स्थानांतरित करवाने का जुगाड़ तो करें।

तो उन मित्र महोदय का कहना था कि इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मामला किस अदालत में स्थानान्तरित होता है। आप का तो काम हो जाएगा।

मैं सुन कर सन्न रह गया। मैं तो समझा था कि वही जज मैनेजेबल है। यहाँ तो इस काम के लिए पूरा पूल बना हुआ था।

इस घटना के बाद भी यह सूचना अतिरेक ही है कि भारत की न्याय प्रणाली में 20 प्रतिशत भ्रष्टाचार है। क्यों कि हम रोज देखते हैं फैसले मेरिट पर ही होते हैं। बहुत कम ही मामले ऐसे हैं जिन में से भ्रष्टाचार की गंध आती है। फिर हर जज बिकाऊ नहीं होता। जो बिकाऊ होता है वह भी हर मामले में बिकाऊ नहीं होता। फिर बिकाऊ आदमी भी अपने हाथ पैर बचा कर चलता है। इस कारण से कोई भी मैनेजेबल जज भी पाँच प्रतिशत से अधिक मामलों में मैनेजेबल नहीं होता। यही कारण है कि अभी हमारी न्याय प्रणाली में लोगों का विश्वास बना हुआ है। लेकिन इस बीमारी की सख्ती से रोकथाम नही की गई तो निश्चित ही लोगों का विश्वास इस प्रणाली पर से उठ जाएगा।

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