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वकील अदालतों के विकेन्द्रीकण और संख्या वृद्धि से क्यों बिदकते हैं?

वकील जब हड़ताल पर जाते हैं?  नहीं, जब से सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि वकीलों की हड़ताल अवैध है तब से वे हड़ताल पर नहीं जाते। वे न्यायालयों का बहिष्कार करते हैं, या फिर न्यायिक कार्य स्थगित कर देते हैं। यह मेरे यहाँ के मुहावरे है, हो सकता है देश के विभिन्न भागों में दूसरे मुहावरे या शब्द प्रचलन में आए हों। लेकिन जब वकील खुद को अदालतों से बाहर रखते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है वे अपने सामूहिक हितों के प्रति सजग हैं। उन में अविश्वसनीय और अविखंण्डनीय एकता है। लेकिन सत्य इस के विपरीत है। व्यक्तिगत स्वार्थ से परिचालित इस समूह का एक एक सदस्य लगता है अलग अलग है और बार काउंसिल की सदस्यता और काले कोट के गोंद ने ही इसे आपस में चिपकाए रखा है। कोई भी इस समुदाय का निकट से अध्ययन करे तो पहली ही परख में जोड़ नजर आ जाएंगे।

वह व्यक्तिगत रूप से न्यायालयों के विकेन्द्रीकरण का विरोध करता है, नयी अदालतें खोलने का विरोध करता है। वह मामूली मुद्दओं पर लड़ाइयाँ लड़ता है। क्यों लड़ता है?  यह शायद उन्हें खुद पता नहीं है।

वास्तविकता यह है कि वकीलों के इस समुदाय के पास वकीलों की सामूहिक सोच और कार्यवाही के लिए कोई संस्था ही नहीं है। बार काउंसिलें हैं जो कानून के अन्तर्गत बनी हैं और कानून के दायरे में रह कर काम करती हैं। बार एसोसिएशनें भी कानून के तहत जरूरी संस्थाएं हैं, और उन का दायरा भी सीमित है। अनेक बार सामूहिक संघर्षों के दौरान यह बात सामने आई कि बार काउंसिल और ऐसोसिएशनों के अतिरिक्त भी वकीलों की संस्थाएं होनी चाहिए। संघर्षों के दौरान उन की रूपरेखा भी बनती है, लेकिन संघर्ष के समाप्त होते ही उन का यह प्रारूप गर्भ में ही नष्ट हो जाता है।

देश में नौ से दस लाख वकील हैं। सही सही संख्या बताने में कोई भी समर्थ नहीं। क्यों कि वकील बारकाउंसिलों में पंजीकृत तो होते हैं लेकिन उन की मृत्यु या वकालत से हट जाना शायद ही कभी वहाँ दर्ज होता हो। फिर भी यह अनुमान गलत नहीं है। देश में अदालतों की संख्या यही कोई पन्द्रह हजार से कम है, अर्थात एक अदालत पर करीब 65-70 वकील। ऐसा लगेगा कि देश में वकील बहुत अधिक हैं। लेकिन जब हम इन संख्याओं को आबादी के अनुपात में देखें तो यह बहुत कम नजर आएँगी। 1, 15, 00, 00, 000 अक्षरों में एक अरब पन्द्रह करोड़ के मुकाबले तुलना की जाए तो बारह हजार की आबादी पर एक वकील और अदालतें वे अस्सी हजार की संख्या पर मात्र एक है।

अब हम जरा देश के कानूनों पर नजर डाले। माना जाता है कि हर नागरिक को कानून की समझ होनी चाहिए। किसी भी अपराध के लिए अभियोजन होने पर बचाव में यह तर्क कि उसे इस कानून का ज्ञान नहीं  था नहीं चल सकता। और कानून उन की हालत यह है कि कोई भी एक वकील उन सबका जानकार हो यह संभव नहीं है। ऐसी हालत में अदालतों और कानूनों की यह संख्या न्यून ही कही जाएगी।

हमने अपने लिए जनताँत्रिक व्यवस्था को चुना है, उस के लिए कानून, अदालतें और वकील अहम् हिस्सा हैं। अगर किसी व्यक्ति की आँत उस के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक भोजन की पर्याप्त मात्रा को पचाने लायक लम्बी न हो तो सोचिए क्या होगा? यही न कि शीघ्र ही वह भोजन की पर्याप्तता के अभाव मे जीवन त्याग देगा। यह माना जाता है कि एक स्वच्छ जनतांत्रिक व्यवस्था में दस लाख लोगों पर 100 अदालतें होनी चाहिए पर यह भी सोचा जाता रहा है कि भारतीय परिस्थितियों में  50 से भी काम चलाया जा सकता है, और एक अदालत पर कम से कम 25 वकील। इस हिसाब से हमारी अदालतों की संख्या कम से कम 60000 होनी चाहिए और वकीलों की कम से कम 1500000 लाख। इस तरह हम देखते हैं कि अदालतों और वकीलों दोनों की संख्या कम है। देश में जिस तरह से वकीलों के पंजीकरण का कायदा है और शिक्षित बेरोजगारों की संख्या में जिस तरह वृद्धि हुई है उसे देखते हुए वकीलों की  संख्या तो तेजी से बढ़ी है लेकिन अदालतों की संख्या उन के मुकाबले बहुत कम रह गई है। इस का एक परिणाम यह नजर आता है कि हर जगह अदालतों में वकील आवश्यकता से अधिक नजर आते हैं। एक बार में एक अदालत में केवल दो से चार वकील काम कर सकते हैं छह से आठ वकील लाइन में हो सकते हैं और दस वकील अन्य कामों में। अगर वकील इस से अधिक हैं तो फिर वे फालतू ही नजर आएंगे।

इन तमाम परिस्थितियों के चलते वकीलों में प्रतिस्पर्धा बढ़ी है वह प्रतिद्वंदिता की हद तक पहुँच रही है। वकीलों के बीच इस से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं। भारतीय परिस्थितियों में इन समस्याओं को हल करने के लिए कोई नहीं आने वाला है। इस के लिए वकीलों को ही आगे आना होगा। उन्हें इन परिस्थितियों को समझना होगा। सामूहिक वर्गीय सोच का निर्माण करना होगा। अदालतों की संख्या में वृद्धि की लड़ाई उन्हें ही लड़नी होगी। इस के साथ साथ उन्हें यह भी तय करना होगा कि वकीलों की गुणवत्ता में वृद्धि हो प्रत्येक वकील वास्तव में अपने सेवार्थियों, जनता और न्याय के लिए मददगार सिद्ध होने लगे।

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