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कानूनी सलाह : (1) पूर्व पत्नी से उत्पन्न पुत्र का पिता की संपत्ति पर अधिकार…, (2) विवाह पंजीकरण में जाति का असर…, और (3) कैसे बचें चैक अनादरण के अपराधिक मामलों से ?

‘तीसरा खंबा’ और ‘अदालत‘ पर कानूनी सलाह प्राप्त करने के लिए लगे लिंक से लगातार प्रश्न और समस्याऐं प्राप्त हो रही हैं। हम शीघ्रता से उन का उत्तर ‘तीसरा खंबा’ पर प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं। लेकिन कभी कार्याधिक्य के कारण देरी भी हो सकती है। यदि प्रश्नकर्ता अपनी समस्या का पूरा विवरण दें तो हमें उस का उत्तर देने में आसानी होगी। किसी की जिज्ञासा शांत न हुई हो तो वह पुनः उसी लिंक के माध्यम से संपर्क कर सकता है।                

… तीसरा खंबा, अदालत

कानूनी सलाह…
1. बहिन शिल्पी पूछती हैं ……
मेरी एक छोटी जिज्ञासा है। मेरा विवाह एक तलाकशुदा व्यक्ति से हुआ है, जिस का पहले विवाह से एक पुत्र है। जो अपनी माता के साथ निवास करता है। किन्तु वह मेरे पति से जल्दी जल्दी मिलता है। मैं जानना चाहती हूँ कि वह लड़का और पूर्व पत्नी का मेरे पति की स्वयं की और मेरे साथ संयुक्त संपत्तियों पर क्या अधिकार है? कृपया मार्गदर्शन करें। सादर ! …शिल्पी।
तीसरा खंबा – शिल्पी जी, आप के पति की स्वअर्जित संपत्ति, उन की व्यक्तिगत संपत्ति है, उस पर उन का अधिकार है। आप के पति अपने जीवनकाल में उस का जैसे चाहें व्ययन कर सकते हैं। आप दोनों की संयुक्त संपत्ति पर आप दोनों का संयुक्त अधिकार है। संयुक्त अविभाजित संपत्ति का व्ययन आप की सहमति के बिना नहीं हो सकता। तलाक होते समय पूर्व पत्नी भरण-पोषण का एक मुश्त व्यय पहले ही ले चुकी होगी। पुत्र तो आप के पति का ही है। उस का भरण पोषण का अधिकार उस के वयस्क होने तक आप के पति पर बना रहेगा। आप के पति के जीवनकाल के बाद यदि उन्हों ने कोई स्वर्जित संपत्ति छोड़ी तो उस में आप का, आप की संतानों का और पूर्व पत्नी से उत्पन्न आप के पति के पुत्र का समान हिस्सों में बराबर का अधिकार होगा। हाँ, आप के पति किसी (पैतृक) संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति में हिस्सेदार हों तो उस में आप का, आप की संतानों और पूर्व पत्नी से उत्पन्न आप के पति के पुत्र का भी हिस्सा अवश्य ही है।
2. एक बहिन अपना नाम न बताने के आग्रह के साथ पूछती हैं ……..
हम ने दिल्ली में आर्य समाज मंदिर में शादी की थी, जब घऱ वालों को बताया तो उन्हों ने कुछ करीबी रिश्तेदारों और दोस्तों को बुलाया देवघर (झारखंड) के बैद्यनाथ मन्दिर मे उन सब के सामने हमारी फिर से शादी करवा दी। शादी का कार्ड नहीं छपवाया गया था। सिर्फ शादी की तस्वीरें हैं। मैरिज रजिस्ट्रेशन के लिए क्या करूँ? किस तारीख को रजिस्टर करवाऊँ. क्या तारीख महत्वपूर्ण होती है। मैं ब्राह्मण हूँ और मेरे पति भूमिहार। क्या जाति क्या जाति से भी कोई फर्क पड़ता है रजिस्ट्रेशन में? यदि आप मेरा नाम न बताएँ तो मैं आभारी रहूँगी।
तीसरा खंबा – बहिन, आप का आर्य मंदिर में हुआ विवाह ही वैध है। बाद में मंदिर में तो आप के घर वालों की तसल्ली के लिए किया गया समारोह मात्र था। कानूनी रूप से उस समारोह से कोई फर्क नहीं पड़ता। आर्य समाज वाले विवाह का प्रमाण पत्र प्रदान करते हैं। रजिस्ट्रेशन के लिए उस प्रमाण पत्र की सत्यापित प्रति से काम चल जाएगा। आप दोनों को अपने शपथ-पत्र भी दाखिल करने होंगे। हाँ जाति के उल्लेख की आवश्यकता नहीं है, उस से रजिस्ट्रेशन पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
3. भाई योगेश सोनी पूछते हैं ……..
आज से 2-3 साल पहले मैंने काफी जगह से लोन लिया था, लेकिन
मेरी आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा खराब है, मुझ पर चेक अनादरण के 1-2 केस भी हो गए हैं, मैं इनसे निजात कैसे पा सकता हूँ?
तीसरा खंबा – भाई योगेश जी सोनी, आप की समस्या कानूनी कम, आर्थिक अधिक है, और बहुत ही खतरनाक भी। कर्ज जितनी शीघ्रता से चुका दिया जाए उतना ही सही है। कर्ज आप की स्थाई संपत्ति को लगातार घटाता है। आप स्थाई संपत्ति में से कुछ को विक्रय कर कर्ज चुका दें तो आप की स्थाई संपत्ति का घटना कम हो सकता है। कर्ज अधिक हो तो आप स्थावर संपत्ति को विक्रय कर उसे शीघ्रता से निपटाएँ। चैक अनादरण के मामलों में कैद और जुर्माने की सजा होने की 99 प्रतिशत संभावना रहती है, केवल किसी तकनीकी त्रुटि हो जाने पर आप का वकील बहुत होशियार हो तो ही शायद सजा न हो। सजा से बचने का एक ही तरीका है, कि आप कर्ज देने वाले लोगों को जल्दी से जल्दी उन का कर्ज अदा कर मुकदमा वापस लेने को मनाएँ। जो भी रकम भुगतान करें उस की रसीद अवश्य लें। ध्यान रखें व्यावसायिक रुप से कर्ज दे कर चैक अनादरण के मुकदमे करने वाले अपने कर्जदारों को ब्लेक मेल भी बहुत करते हैं।

-दिनेशराय द्विवेदी
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