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दोनों पक्षों की तथ्यात्मक भूल से शून्य कंट्रेक्ट

अब तक हम ऐसे अनुबंधों की बात कर रहे थे जिन्हें अनुबंध के किसी पक्षकार के जोर देने पर शून्य घोषित किया जा सकता था। अब बारी है, उन अनुबंधों की जो प्रारंभ से ही शून्य होते हैं।

जब दोनों पक्षों ने तथ्यात्मक भूल की हो तो अनुबंध शून्य होगा…

जहाँ किसी अनुबंध के दोनों पक्षों ने अनुबंध के लिए आवश्यक तथ्य के संबंध में भूल कर दी हो तब अनुबंध शून्य है।

स्प्ष्टीकरण- अनुबंध की विषय-वस्तु के मूल्य के संबंध में गलत राय को तथ्य के संबंध में भूल नहीं समझा जाएगा।

जैसे…

(क) एक विशिष्ठ माल को जो जहाज द्वारा इंग्लेण्ड से मुम्बई के लिए रवाना हो चुका है, ‘क’ द्वारा ‘ख’ को बेचने के लिए अनुबंध किया गया। लेकिन पता चलता है कि वह जहाज डूबने के लिए छोड़ दिया गया और माल नष्ट हो गया। अनुबंध करने के समय दोनों को इस तथ्य का ज्ञान नहीं था। दोनों द्वारा तथ्य संबंधी भूल होने से अनुबंध शून्य है।

(ख) ‘क’ एक विशिष्ट घोड़े को ‘ख’ से क्रय करने का सौदा करता है। सौदे के समय घोड़ा मर चुका था। जिस की जानकारी दोनों में से किसी भी पक्षकार को नहीं थी। ऐसा अनुबंध शून्य है।

(ग) ‘ख’ के जीवन काल में ‘क’ किसी संपत्ति का हकदार था। उस ने इस संपत्ति को विक्रय करने का सौदा ‘ग’ के साथ कर लिया। लेकिन दोनों को यह पता नहीं था कि सौदे के समय ‘ख’ मर चुका था(‘क’ को उस संपत्ति को विक्रय करने का अधिकार सौदे के समय समाप्त हो चुका था)। विक्रय का यह अनुबंध शून्य है।

उक्त दृष्टान्त कानून में समाहित किए गए हैं, ये कुछ बातें और स्पष्ट करते हैं। हम उदाहरण (क) को लें यदि विक्रेता को यह पता हो कि बेचा गया माल जहाज के साथ डूब चुका है और वह फिर भी उस का सौदा करता है, तो उस ने तथ्य संबंधी भूल नहीं की और कानून का यह भाग इस मामले में लागू नहीं होगा। लेकिन यह जानते हुए कि वह एक नष्ट हो चुके माल का सौदा कर रहा है तो यह एक कपट हो जाएगा और अनुबंध दूसरे पक्षकार की पहल पर शून्य हो जाएगा। इसी तरह यदि क्रेता को यह पता हो कि माल जहाज के साथ डूब चुका है तो वह यह सौदा ही नहीं करेगा। जानबूझ कर भी वह सौदा करता है तो वह उस की मूर्खता ही होगी। क्यों कि तब अनुबंध न तो शून्य होगा और न ही शून्य घोषित कराए जाने योग्य, और इस तरह वह अपनी ही मूर्खता से अपनी ही हानि करेगा।

एक व्यक्ति ने डीलर से निश्चित कीमत पर कार खरीदी। खरीदने के समय डीलर और कार खरीदने वाला, दोनों ही यह समझ रहे थे कि निश्चित की गई कीमत कार की नियंत्रित कीमत है। लेकिन बाद में पता लगता है कि नियंत्रित कीमत में पहले ही परिवर्तन हो चुका था। ऐसी स्थिति में कार को खरीदने का अनुबंध शून्य होगा क्यों कि दोनों ने ही कार की नियंत्रित कीमत के संबंध में भूल की थी। ऐसी स्थिति में कार का खरीददार कार को वापस कर उस की कीमत डीलर से प्राप्त कर सकता है।

भूल अनुबंध के सम्बन्ध में तथ्यात्मक होना चाहिए…

दोनों पक्षों द्वारा की गई भूल अनुबंध की शर्तों के सम्बन्ध में तथ्यात्मक होना चाहिए। एक भूमि जिस पर टैक्स माफ है बेची गई। बाद में पता लगा कि उस भूमि पर टैक्स की माफी हटा ली गई थी। सौदा केवल भूमि का हुआ था और उस पर लगने या न लगने वाले टैक्स की उस में कोई भूमिका नहीं थी। इस कारण से इस भूल को तथ्यात्मक नहीं मानते हुए सौदे को शून्य नहीं माना गया।

इस आलेख में हमने अनुबंध के दोनों पक्षों द्वारा की गई तथ्यात्मक भूल से होने वाले शून्य कंट्रेक्टों की बात की। अगले आलेख में कानून संबंधी भूल से होने वाले शून्य कंट्रेक्टों की बात करेंगे। 

बालकिशन जी ने विगत आलेख पर टिप्पणी में पूछा था…..

“क्या किसी व्यक्तिगत कानूनी समस्या पर सलाह के लिए आपसे सीधे फोन या किसी और माध्यम से संपर्क किया जा सकता है?”

मैं ने इस के लिए स्थाई रूप से मेरी प्रोफाइल के नीचे एक टिप्पणी लगा दी है, कृपया उस का अनुसरण करें …

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