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एक अकेला व्यक्ति पहाड़ तोड़ सकता है ?

कहावत है कि “अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता” । लेकिन “एक अकेला व्यक्ति पहाड़ तोड़ सकता है”, यदि वह साधनों का सदुपयोग करे और उद्देश्य से सहमत लोगों का उपयोग करे। इस लिए इस कहावत को चनों पर तो लागू किया जा सकता है लेकिन मनुष्यों पर नहीं। हालाँकि सभी कहावतें मनुष्यों पर लागू करने के लिए ही प्रचलित होती हैं।
पर्यावरणवादी वकील एम. सी. मेहता उसी के उदाहरण है, जिन के बारे में तीसरा खंबा पर भुवनेश शर्मा के आलेख में पढ़ा। मेहता जी कश्मीर से नई दिल्ली केवल उच्चतम न्यायालय वकालत करने के लिए आए थे। उन्हें एक व्यक्ति का कहा हुआ वाक्य चुभ गया कि एक महान सांस्कृतिक विरासत ‘ताजमहल’ को नष्ट होने से बचाने के लिए कोई भी कुछ भी नहीं कर रहा है। इस वाक्य ने उन के व्यक्तित्व को झकझोर दिया। वे वकालत के साथ साथ इस काम में जुट गए, और अपने ही व्यावसायिक कौशल से उन्हों ने उच्चतम न्यायालय से वे निर्णय और निर्देश सरकारों के लिए प्राप्त किए। जिन की बदौलत आज ताजमहल का संरक्षण संभव हो सका। उन का काम जनहित और देशहित मे था। इस कारण से वकीलों की एक लम्बी फौज और उच्चतम प्रलोभन भी उन के मार्ग का रोड़ा नहीं बन सके।
उस के उपरांत एम. सी. मेहता ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। गंगा के निर्मलीकरण का काम हो या फिर दिल्ली को प्रदूषण से मुक्त कराने का उन्हो ने हर उस काम में सफलता हासिल की जिस में उन्हों ने हाथ डाला। वे आज भी चुप नहीं है। ऐसे अनेक मामले हैं जिन पर वे आज भी संघर्षरत हैं।
मैं यहाँ एम.सी. मेहता का महिमा मंडन करने के लिए यह आलेख नहीं लिख रहा हूँ, जिस की आवश्यकता भी नहीं है। लेकिन आज हम उन के उदाहरण से सीख सकते हैं। हम जहाँ भी हैं वहाँ से समाज के लिए, देश के लिए और मनुष्य जीवन की बेहतरी के लिए अपने काम को प्रारंभ कर सकते हैं। हम चाहे हम वकील हों, चिकित्सक हों, अभियंता हों या और किसी भी तरह के प्रोफेशनल, हम अपने काम को अपने ही प्रोफेशन से प्रारंभ कर सकते हैं।
वकील जो उच्चतम न्यायालय में या उच्चन्यायालय में काम नहीं कर रहे हैं, वे अपने यहाँ दीवानी अदालतों में भी सिविल प्रोसीजर कोड की धारा 91 का उपयोग कर के इस तरह की स्थानीय जन-समस्याओं के लिए काम कर सकते हैं। जनता को राहत दिला सकते हैं और समाज को एक रहने लायक समाज बनाने में अपना योगदान कर सकते हैं। आप वकील नहीं हैं तो भी किसी वकील के माध्यम से यह काम शुरू कर सकते हैं।
वकीलों के सामने एक विशाल लक्ष्य और भी है। भारत के एक-एक व्यक्ति को सही, सच्चा और सुलभ न्याय दिलाना। इस के लिए वकीलों को एक जुटता भी बनानी होगी, मौजूदा न्याय व्यवस्था के चरित्र को भी समझना होगा, उस की सीमाओं को भी समझना होगा। मूल बात है कि यह व्यवस्था जो न्याय पालिका को विकसित होने के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं करवा रही है, उस से न्यायपालिका के लिए साधन उपलब्ध कराने का काम करना है। यह काम वकील समुदाय अत्यन्त आसानी से कर सकता है। उसे केवल इस बात को इस तरह प्रचारित करना है कि जनता समझने लगे कि न्याय में देरी, वस्तुतः न्याय को विफल करना है। यह देरी प्रधानतः न्यायपालिका के छोटे आकार के कारण है। न्यायपालिका के आकार का अत्यन्त न्यून छूट जाना, केन्द्र और राज्य सरकारों के कारण है। वकील वर्ष में अनेक बार विभिन्न कारणों से काम बंदी करते हैं। वे चाहें तो पूरे देश में एक दिन इसी कारण से काम बंदी कर के सरकार, जनता और राजनीतिज्ञों को चौंका सकते हैं। यदि जनता यह सवाल राजनीतिज्ञों से करने लगे कि इतनी पर्याप्त अदालतें क्यों नहीं हैं कि उन के मुकदमों का निर्णय सालों के स्थान पर महिनों में होने लगे?
वकीलों का यह कदम उन के स्वयँ के हित में है। अधिक अदालतों के होने से जिस शुल्क में वे मुकदमों को बरसों तक लड़ते रहते हैं वही शुल्क उन्हें एक दो-साल में ही मिलने लगेगी
। नयी अदालतें खुलेंगी तो वकीलों को अधिक संख्या में जज, अभियोजक और सरकारी वकील आदि का काम प्राप्त होगा। सब से बड़ी बात तो यह है कि जो मुकदमे केवल इस कारण से वकीलों और अदालत तक नहीं पहुँचते कि इतने बरस तक कौन लड़ता रहेगा? वे वकीलों तक आने लगेंगे और काम में वृद्धि होगी। शीघ्र निर्णय होने के कारण वकीलों को भी अच्छी शुल्क कम समय में ही प्राप्त होगी। एक तरह से जनता के लिए यह लड़ाई लड़ने में वकीलों का वर्गहित भी शामिल है।
इसी तरह विभिन्न प्रोफेशनों में लगे लोग भी अगर अपने अपने कार्यक्षेत्र में तलाश करें तो उन्हें जनहित के काम करने को मिल सकते हैं। हर नगर और गाँव में एक व्यक्ति भी इस तरह के एक काम को हाथ में ले तो उस के साथ लोग अवश्य जुड़ेगे। जो काम केवल उपेक्षा के कारण नहीं हो रहे हैं, वे जोर पकड़ेंगे। एक भी काम के सफल होने पर अच्छे काम का अनुकरण करने वालों की संख्या धीरे-धीरे ही सही लेकन जरूर बढ़ेगी।  एक दिन आप पहाड़ भी जरूर तोड़ पाएंगे
मैं अपने अग्रज एम. सी. मेहता को नमन करता हूँ जिन्हों ने अनेक लोगों को समाज, देश और मनुष्य जाति के हित के लिए काम करने को प्रेरित किया है, और हमेशा करते रहेंगे।

“तीसरा खंबा” पर एक सप्ताह से कोई आलेख प्रकाशित नहीं हो सका, और “पिछले पाँच दिनों से  अनवरत” पर भी। अधिक काम से हुई थकान, रक्षाबंधन के त्योहार पर बेटी-बेटे का घर आना, और लगातार लोगों का आवागमन ही इस का मुख्य कारण रहे। मुझे भी पाठकों से यह दूरी अखरी। भविष्य के लिए कोई ऐसी व्यवस्था बनाने का प्रयत्न है कि यह अंतराल न हो। ‘तीसरा खंबा’ पर सामग्री में विविधता के कारण नया टेम्पलेट अपनाना पड़ा। यह ‘अवर ब्लाग टेम्पलेट्स’ की ‘परफेक्शन’ टेम्पलेट है। इस में ‘एम्बेडेड टिप्पणी फार्म’ नहीं लगाया जा सका है। कोई तकनीकी ब्लागर साथी इस की कोई युक्ति जानता हो, या जान सके तो अवश्य बताए।

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