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लिव-इन-रिलेशनशिप और सदी पहले की कानून की गलियाँ

कल के आलेख नाता, नातरा और लिव-इन-रिलेशनशिप  पर एक बहुत प्यारी टिप्पणी बहुत प्रिय साथी से मिली।  ६५% का आंकडा आप कहाँ से लाये, यह तो मुझे नही मालूम ! मगर यह ग़लत ही नहीं भ्रामक भी है ! ५-१० % तक कहते तो भी कुछ हद तक ठीक रहता ! …….. ” 

मैं ने  साथी को स्रोत बताया। बाद में यह टिप्पणी टिप्पणी कर्ता ने तीखी मान कर हटा ली। मैं ने उन्हें कहा इस की आवश्यकता नहीं थी। मैं आहत नहीं हुआ। मैं इस के लिए तैयार था। क्यों कि मुझे पता है। हम मध्यवर्गीय सवर्ण जीवन बिताने वाले लोगों को बहुत सी बातों का आभास तक भी नहीं होता। बाद में देर रात बैरागी जी की टिप्पणी से मेरी बात को समर्थन मिला और उस के बाद अजित वडनेरकर जी की टिप्पणी ने उसे मजबूत किया। हालांकि अजित जी का मानना था कि यह प्रथा राजस्थान और मालवा के कुछ क्षेत्रों में प्रचलित है। पर वास्तव में यह प्रथा समूचे भारत में कुछ न कुछ विविधता के साथ बहुमत समाज में मान्यता प्राप्त है। इस के सबूत भी मौजूद हैं। खैर!


आज मैं आप को एक शताब्दी के भी पहले के पंजाब में लिए चलता हूँ, जहाँ कानून और अदालतों से लिव-इन-रिलेशन को समर्थन मिला। क्यों कि इन पति-पत्नी के रिश्ते और विवाह का संपत्ति के साथ चोली दामन का साथ है। अपितु यह कहा जाना सत्य होगा कि संपत्ति ही विवाह संस्था की जनक है। पुरुष सत्तात्मक परिवार में  संपत्ति पुत्र को ही मिले इस के लिए यह आवश्यक था कि मृतक का पुत्र कौन है? यह निर्धारित करने का एक मात्र तरीका ही यही था कि जो स्त्री विवाह बना कर पुरुष के साथ रहे, उस विवाह की अवधि में उत्पन्न संताने उस पुरुष की संताने मानी जा सकती हैं। जहाँ विवाह नहीं होगा वहाँ संतान की उत्पत्ति को संदेह की दृष्टि से देखा जाएगा। यह मेरी नहीं अधिकांश समाजशास्त्रियों का कथन है। 

एक सदी पूर्व पंजाब की अदालतों के मुकदमों के कुछ वाक्यांशों के हिन्दी अनुवाद उन के जर्नल के वर्ष व पृष्ट सहित मैं यहाँ दे रहा हूँ। 

मुलाहिजा फरमाएँ…..

  • लगातार सहावास यह मानने के लिए पर्याप्त है कि स्त्री-पुरुष के मध्य वैवाहिक रिश्ता है। जहाँ यह माना लिया जाता है कि वे स्थाई रुप से साथ रहेंगे, वहाँ साथ रहना उन के बीच वैवाहिक रिश्ते का अच्छा  सबूत है, चाहे वह विवाह नहीं हो। … 29 P.R. 1883.
  • एक हिन्दू जाट एक विधवा के साथ 15 वर्ष रहा और उन के पुत्र भी हैं, वहाँ विवाह का कोई समारोह नहीं हुआ। यह विवाह मानने के लिए एक अच्छा सबूत है और यहाँ यह साबित करने की कोई आवश्यकता नहीं कि उन के विवाह का कोई समारोह हुआ था। … 38 P.R. 1879; see also C.A. 911 of 1879; 26 P.r. 1880
  • एक विधवा स्त्री और पुरुष के मध्य लगातार सहावास (इस मामले में 30 वर्ष) बिना किसी समारोह के भी विवाह के समान है। उन की संतान वैध मानी जाएगी। … 49 P.R. 1890.
  • लेकिन इस सिद्धान्त के अनुसार एक स्त्री के साथ सहावास जिस का पति जीवित है, विवाह के समान नहीं मानी जाएगी। ऐसे सहावास से उत्पन्न संतान को वैधता प्रदान करना बुरा रिवाज होगा जिसे अदालतों को मान्यता नहीं देनी चाहिए। … 49 P.R. 1890.
  • गुरदास पुर जिले का एक हिन्दू जाट अपनी पत्नी को यह कह कर कि वह किसी के भी साथ जा कर रह सकती है अपना गाँव छोड़ गया। पत्नी दूसरे पुरुष के साथ पत्नी की तरह रहने लगी। पूर्व पति के वापस आ जाने पर उस ने पत्नी पर कोई दावा नहीं किया। यहाँ उचित अनुमान किया गया कि गाँव छोड़ने पर उस ने अपनी पत्नी पर अधिकार छोड़ दिया था जो कि तलाक के समान था। इस कारण से उस का दूसरे पुरुष के साथ सहावास करने को विवाह माना गया। …  73 P.R. 1897.
  • जहाँ एक मृतक मालिक एक विधवा के साथ पति की तरह रहता रहा और लोग उन्हें पति-पत्नी की तरह मानते रहे वहाँ उस की मृत्यु के उपरांत उन की संतान को उस पुरुष की संतान मान कर रेवेन्यू रिकॉर्ड में उस का नाम दर्ज किया गया। यहाँ यह प्रमाण देने की कोई आवश्यकता नहीं थी कि उन के बीच कोई औपचारिक समारोह हुआ  था। …  13 P.R. 1898
  • जहाँ स्थाई प्रकृति का संबंध लम्बे समय तक एक जाट पुरुष और ब्राह्मण स्त्री के बीच साबित हो चुका है। पुरुष द्वारा स्त्री के साथ पत्नी की तरह व्यवहार किया है। वहाँ संतान को उन का पुत्र माना जाएगा। औपचारिक समारोह की कोई आवश्यकता नहीं है। … 50 P.R. 1900.
  • एक स्त्री एक जाट पुरुष के साथ 18 वर्ष रही, अनेक संताने हुईं, लड़कियों की शादियाँ बिरादरी में हो गई। वह उस की कानूनी रुप से पत्नी ही मानी जाएगी और पुरुष की मृत्यु के 280 दिन पूरे होने तक उस स्त्री से उत्पन्न संतान उसी पुरुष की संतान मानी जाएगी। … 51 P.R. 1900.
  • लगातार सहावास विवाह का अनुमान उत्पन्न करता है। जहाँ एक स्त्री एक पुरुष के साथ 10 या 12 वर्ष एक ही घर में साथ रही हो वहाँ उसे विवाहित ही माना जाएगा। … 135 P.R. 1907.
  • जहाँ 40 वर्ष तक महिला पुरुष की मृत्यु तक सहावास में रही है वहाँ उसे उस पुरुष की पत्नी माना जाना उचित है औपचारिक विवाह का प्रमाण आवश्यक नहीं। … 65 P.R. 1911; see also 1921, 3 Lah. L.J. 317
  • जब स्त्री-पुरुष लम्बे समय तक सहावासी रहे हों तो हमेशा यही अनुमान किया जाएगा कि वे दोनों पत्नी हैं। … 49 P.R. 1903.और 61 P.R. 1905.

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महाराष्ट्र सरकार ने सहावासी रिश्ते की महिलाओं के लिए धारा 125 दण्ड प्रक्रिया संहिता में गुजारा भत्ता हेतु किए जाने वाले संशोधन को अभी ठण्डे बस्ते में डाल देने का फैसला किया है। यह एक प्रगतिशील कदम था जिस से पैर पीछे ले लिया गया है। समाज अपने तरीके से परिस्थितियों का मुकाबला करते हुए आगे बढ़ता है। राज्य को उसे नियंत्रित करने के लिए कानून बनाने पड़ते हैं। वह अराजकता को एक सीमा तक ही बर्दाश्त कर सकता है। देर सबेर राज्य को कानून बनाने ही पड़ेंगे। मार्क्स-एंगेल्स समेत दुनियाँ के अनेक दार्शनिकों ने भविष्य में राज्य का लोप होने की घोषणा की है। हमारे आचार्य बृहस्पति के इस कथन के अनुसार कि जो पैदा हुआ है वह मरेगा, हम भी माने लेते हैं कि राज्य नाम की यह संस्था कभी न कभी विलुप्त हो ही जाएगी। लेकिन आने वाले दस पंद्रह दशकों में इस का लोप नहीं होने जा रहा है। जब तक रहेगा राज्य अपना काम तो करेगा ही।

इस श्रंखला को यहाँ विराम दे रहा हूँ।  फिर भी परिवार के विषय पर तीसरा खंबा और अनवरत पर आप को आलेख पढ़ने को मिलते रहेंगे।

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