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जेब में रुपया हो जाए तो आदमी सनक जाता है

एक कहावत है कि खुदा जब हुस्न देता है तो नज़ाकत आ ही जाती है, और जब जेब में रुपया हो जाए तो आदमी सनक जाता है। ऐसी सनकों के बहुत उदाहरण अदालतों और कानूनी कार्यवाहियो के दौरान देखने को मिलते हैं।

इन दिनों ऐसा ही उदाहरण मुझे देखने को मिला। मेरे नगर के बीच हो कर राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 12 गुजरता है जो जयपुर से जबलपुर तक जाता है। इसी मार्ग पर नगर के बीच एक चौराहे पर पांच बरस पहले एक ओवर ब्रिज बना है। ओवर ब्रिज के नीचे सात खांचे एक ओर, और पांच एक ओर हैं।   यहाँ पार्किंग की सुविधा है। एक खांचे की लम्बाई करीब 48 फुट और चौड़ाई करीब साठ फुट है। इस साठ फुट  चौड़ाई के बीच डिवाइडर है। जिस के दोनों ओर पार्किंग होती है। आरंभ में घोषणा हुई कि इस पार्किंग को पे-पार्किंग बनाया जाएगा। लेकिन आस पास के व्यावसाइयों के विरोध के कारण यह सफल नहीं हो सका। इस फ्लाई ओवर के एक ओर बैंक, बीमा के दफ्तर और होटल हैं। तो वहाँ बहुत भीड़ रहने लगी है। जब यहाँ केवल दो होटल थे। तो उन के सामने टैक्सी कारें खड़ी होती थीं। उन का एक स्टैंड कायम हो गया था। जैसे जैसे वहाँ भीड़ बढ़ती गई, इन इमारतों के सामने की पार्किंग की जगह पूरी भरी रहने लगी। पुलिस ने टैक्सी वालों को वहाँ से धकेला तो वे पास की रोड़ पर चले गए। वहाँ भी व्यावसायिक इमारतें बनी तो पुलिस वहाँ से भी ढ़केलने लगी।

टैक्सी चालक जिन के पास खुद की कारें हैं या जो किसी दूसरे की कारे लीज पर ले कर चलाते हैं उन की एक यूनियन है। उस ने फ्लाई ओवर बनते ही नगर निगम को आवेदन किया कि उन्हें उस के दो खांचों के नीचे एक ओर टैक्सी स्टेण्ड के लिए स्थान दिया जाए। दस लाख की आबादी के इस औद्योगिक, व्यापारिक और कोचिंग नगर में एक भी स्थान टैक्सी स्टैंड के रूप में चिन्हित नहीं है। टैक्सी चालकों की ही तरह एक व्यक्ति ने भी टैक्सी स्टेंड के नाम से संगठन बना लिया। उसने किसी तरह नगर निगम में घूसपैठ कर अपने नाम 25 टैक्सीयाँ पार्क करने का कंट्रेक्ट कर लिया। वहाँ टैक्सियों की पे-पार्किंग बन गई। टैक्सी चालकों की यूनियन को फिर भी स्थान न मिला।टैक्सी चालकों ने निगम को कहा कि वे प्रतियोगी शुल्क देना चाहते थे तब भी बिना नीलामी के कैसे कंट्रेक्ट दे दिया गया?

एक अप्रेल से फिर से पुराने व्यक्ति को टैक्सी स्टैंड का नवीनीकरण कर दिया गया तो यूनियन वालों ने सब दूर शिकायतें की अखबारों में समाचार दिए। प्रभाव यह हुआ कि यूनियन  को भी 25 टैक्सी पार्किंग का स्थान देने के लिए प्रस्ताव मिला। उन्हों ने प्रस्ताव स्वीकार कर उसे कंट्रेक्ट में बदल दिया। आवश्यक धन जमा करा दिया। उन की टैक्सियाँ पार्क होने लगीं। कोई पन्द्रह दिन बाद ही पुलिस आ कर उन्हें पार्किंग से भगाने लगी। यह कहा कि उन का कंट्रेक्ट रद्द कर दिया गया। यूनियन वाले नगर निगम गए तो बताया गया कि राजनैतिक दबाव में यह कंट्रेक्ट रद्द किया है। लेकिन यह अवैध है तुम अदालत में मुकदमा कर स्थगन (स्टे) ले लो। वे मेरे दफ्तर के रास्ते अदालत पहुँचे।

अदालत में मुकदमा हुआ नगर निगम के खिलाफ। वहाँ पहले दिन नगर निगम ने जवाब को समय मांगा और कहा कि वास्तव में फ्लाई-ओवर राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर है और उस के नीचे पार्किंग नहीं की जा सकती। दूसरे दिन वे जवाब ले कर आए तो उस में से यह तर्क गायब था। वहाँ नया तर्क था कि वहाँ इन को पार्किंग करने दी तो पब्लिक की फ्री पार्किंग के लिए स्थान  ही नहीं रह जाएगा। इस कारण से इस को जनहित में नहीं मानते हुए इन स्वीकृति को रद्द कर दिया है। उसी दिन शाम तक नौ व्यवसाइयों की ओर से आवेदन पेश हुआ कि वे आसपास के व्यवसाई हैं और उन के हित इस मामले से आबद्ध हैं इस कारण से उन्हें भी पक्षकार बनाया जाए। उन्हें अदालत ने पक्षकार बना लिया। यूनियन को नया संशोधित दावा पेश करने की छूट देदी।

इन नौ आबद्ध-हित व्यक्तियों में से आठ ऐसे थे जिन की ओर फ्री पार्किंग की सुविधा उपलब्ध थी उन्हें यूनियन को पार्किंग कंट्रेक्ट से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। फर्क पड़ रहा था सिर्फ और सिर्फ एक अमीर होटल मालिक को जिस ने इसी साल होटल बना कर चालू किया था। वह चाहता था कि यह स्थान खाली रहे जिसे वह स्वयं के और ग्राहकों के उपयोग में लेता रहे और कोई शुल्क न देना पड़े। यूनियन ने दावा संशोधित किया और यह बात अदालत के सामने रखी। अदालत ने एक बार सुनवाई की और एक आयुक्त नियुक्त कर सभी पक्षकारों की उपस्थिति में मौके की स्थिति की रिपोर्ट, मानचित्र और फोटो पेश करना पड़ा। जब  आयुक्त मौके पर पहुंचा तो मुझे भी यूनियन का वकील होने के कारण वहाँ उपस्थित रहना पड़ा।(आगे और)

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