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वकील भी आते हैं उपभोक्ता कानून के दायरे में

25 अक्टूबर के आलेख कानूनी सलाह : डॉक्टर की शिकायत कहाँ की जाए पर बड़े भाई डा० अमर कुमार की सलाह मिली….  

अमाँ पंडित जी, यह तो वह पता कर ही लेता,

आपके सारे दाँत अभी तो झड़े न होंगे ? 

.फिर दाँत रख कर, काहे दाँतों के डाक्टर से बैर.. 

हा हा हाहः.. 

कल को कोई दाँत का डाक्टर हाथ भी न लगायेगा, तो ?

 

बडे़ भाई की सलाह सिर माथे। उन के विनोद के वैसे भी हम आशिक हैं। पर कभी कभी ऐसा भी कह जाते हैं कि मजा तीसरे रोज आता है। पर मैं भी एक प्रोफेशनल ही हूँ। वकील के साथ कोई हादसा हो जाए तो सारे वकील खड़े हो जाते हैं। मुकदमा बन गया और खुदा न खास्ता वकील शिकायत कर्ता हुआ तो अभियुक्त की जमानत मुश्किल हो जाती है। उसे कोई वकील तक नहीं मिलता। भले ही मुकदमा फर्जी ही क्यों न हो। पर फिर मुकदमे में वकील ही पैरवी करता है और उसे बरी भी करवाता है। मुझे भी विश्वास है कि कोई तो दांतों का डाक्टर जरूर मिलेगा। एक दो दंत-चिकित्सक तो ब्लागरी में हैं  ही तब तक कुछ और हो जाएँगे। कोई तो साथ देगा ही। नहीं तो हमारी श्रीमतीजी जितना अच्छा ठोस पकाती हैं, उतना ही अच्छा तरल भी पका ही सकती हैं। एक बात और कि शोभा दांतों की भी ठीकठाक चिकित्सक हैं। पास में एक अस्पताल है। उस में आए कुछ परिचित मरीज भीड़ छंटने तक मिलने हमारे यहाँ चले आए। उन्होंने अपने पास से दवा दे कर चलता किया और दो एक बरस में तो उन्हें डाक्टर के यहाँ जाने की जरूरत न हुई। फिर आगे होहिहीं वही जो राम रचि राखा। करनी करते वक्त परिणाम से काहे डरो। वैसे कोई भी डाक्टर मुझे खुशी खुशी हाथ लगाएगा।

एक और बडे़ भाई विष्णु बैरागी जी ने पूछा है कि वकील के खिलाफ भी उपभोक्ता फोरम में जाया जा सकता है क्या? …

वैसे उन के प्रश्न का उत्तर मैं अपने आलेख कानूनी सलाह : क्या वकील का मुवक्किल एक उपभोक्ता है? पर दे चुका हूँ। वहाँ मैं ने कहा था कि यह प्रश्न उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित है। दिल्ली के एक नागरिक श्री डी. के. गांधी की शिकायत पर एक वकील के विरुद्ध यह शिकायत जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष प्रस्तुत की गई थी कि उस के वकील ने उसे पर्याप्त सेवाएँ प्रदान नहीं कीं। उस की शिकायत पर 1988 में निर्णय देते हुए जिला मंच ने वकील को सेवा में कमी के आधार पर 3000 रुपए क्षतिपूर्ति और 1000 रुपए उपभोक्ता अदालत का मुकदमा खर्च शिकायत कर्ता को अदा करने का आदेश दिया।

इस निर्णय की अपील पर दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग ने इस निर्णय को निरस्त कर दिया। लेकिन श्री डी. के. गांधी इस मामले को राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ले कर गए जिस ने माना कि डाक्टर और आर्कीटेक्ट की तरह एक वकील भी उपभोक्ता कानून से शासित होता है।

तब वकीलों की सर्वोच्च संस्था बार कौंसिल ऑफ इंडिया ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपील प्रस्तुत की जिसे सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया गया। इस अपील में यह तर्क उठाया गया है कि एक वकील सफलता को सुनिश्चित नहीं कर सकता क्यों कि निर्णय उसे नहीं अपितु अदालत को करना होता है जिस पर वकील का कोई नियंत्रण नहीं होता। यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया है कि एक निचली अदालत के निर्णय के विरुद्ध ऊँची अदालत में अपील की जा सकती है। यदि मुवक्किल वकील द्वारा दी गई अपील करने की सलाह को न माने तो वकील को कैसे सेवा में कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?

इस से पूर्व इंडियन मेडीकल ऐसोसिएशन बनाम वी पी शान्ता के मामले में उच्चतम न्यायालय कह चुका है कि प्रोफेशनल्स के पास उन के काम की एक न्यूनतम दक्षता होती है, और उन्हें उचित सावधानी बरतनी चाहिए। यदि कोई मामला उपेक्षा अथवा असावधानी का पाया जाता है तो उन्हें उपभोक्ता के समक्ष जिम्मेदार होना होगा। उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णय होने तक डाक्टरों ने भी बहुत जोर लगाया था कि वे उपभोक्ता कानून के दायरे से बाहर रहें। लेकिन सफल नहीं हो सके।

जेकब मैथ्यू बनाम पंजाब राज्य के प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय कह चुका है कि वकीलों, चिकित्सकों और आर्कीटेक्ट जैसे प्रोफेशनलों को उचित दक्षता से काम लेना चाहिए। यदि वे उपयुक्त दक्षता का उपयोग नहीं करते या लापरवाही करते हैं तो वे अवश्य ही जिम्मेदार होंगे। इस निर्णय से यह स्पष्ट है कि वकील भी उपभोक्ता कानून के दायरे में आते हैं। यदि वे सेवा में कमी या लापरवाही करते हैं तो उन्हें इस कानून के अन्तर्गत उस का जवाब देना पड़ेगा और क्षतिपूर्ति भी। इस से वास्तव में काबिल, मेहनती और अच्छी सेवाएँ प्रदान करने वाले वकीलों को लाभ ही है। हानि उन्हें होगी जो गैर प्रोफेशनल रवैया अपनाते हैं।

एक प्रश्न आप सब से…… 

बायीं और किस वकील का चित्र है?

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