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एक साल के बच्चे की चिट्ठी

 

 

सभी सुधी पाठकों, अंकलों, आण्टियों, ताउओं और ताइयों को मेरा सादर प्रणाम ! 

 

आज मैं पूरे एक साल का होने जा रहा हूँ। आज सुबह ठीक 7.43 बजे। हाँ पिछली 28 अक्टूबर को इसी वक्त मेरा जन्म हुआ था। वे वकील तो थे ही पर वकील होने के पहले से ही साहित्य में खुरचटी की आदत पड़ चुकी थी जो अभी तक गई नहीं। सो मौका मिलते ही हिन्दी ब्लागरी टटोलने लगे। वहाँ बिलकुल “एक्सीडेण्ट हो गया” की तर्ज पर फुरसतिया सुकुल से टकरा गए। फिर क्या था? कहने लगे एक ब्लाग पैदा करो। वे इधर न्याय-प्रणाली से जूझे पड़े थे। प्रणाली थी, लेकिन न्याय वैसे ही गायब था जैसे गंजे के सिर से बाल। तो इस एक्सीडेण्ट की बदौलत मैं पैदा हुआ। जब से हुआ,  घोषित कर दिया गया कि न्याय की मदद में वैसे ही हथेली लगाएगा जैसे आप ने ‘गोवर्धन लीला’ के दृश्य में ग्वालों को अपनी-अपनी लाठी से गोवर्धन पर्वत को रोके देखा होगा। हमारा हाल यह हुआ कि जब से पैदा हुए तब से गोवर्धन पर्वत को लाठी से रोके खड़े हैं।

 

लोगों का नाम करण पैदा होने के बाद होता है। हमारा पहले हुआ। इस के बिना तो गूगल की अनुमति ही नहीं मिलती। हाँ नाम बदलने की इजाजत जरूर है। पर हमें बनाने वाले ने उचित नहीं समझा। नाम चल पड़ा। एग्रीगेटरों पर दर्ज कराया गया। शुरू शुरू में चिट्ठाजगत पर रेंक आती थी तीन चार सौ के बीच। साल भर में एक सौ छत्तीस कदम चला हूँ और 39-40 पर टिका हुआ हूँ।

 

पैदा होते ही साथी की जरूरत पड़ गई। ब्लागरी में और भी कई जरूरतें थीं। लेकिन वह मेरे लाठी से गोवर्धन को रोके रखने के साथ साथ मुझ से पूरी होनी संभव नहीं थी। इस के लिए गूगल की मदद से एक भाई लाया गया अनवरत । अब मुझे उस की मदद मिल रही थी।  उस ने जल्दी ही मेरे बचे हुए बहुत से काम संभाल लिए। अभी तक साथ दे रहा है। कुछ दिन बाद यहाँ इसी मुहल्ले के साथी भी मिलने लगे।  ‘अदालत’ और ‘जूनियर कौंसिल’ अच्छे साथी हैं और मुझे गोवर्धन को रोके रखने में लगातार कुछ न कुछ मदद करते रहते हैं। इधर एक अंग्रेज भैया भी मिला मुझे, ‘ज्युडिकेचर इंडिया’ मगर उसे संवारने का काम अभी बाकी है। वह थोड़ा कमजोर साबित हुआ। हाँ धुम्रपान का कानून जिस दिन उस ने बाँचा बहुतों ने उस पर ध्यान दिया। अब उस ने अपना नाम बदल कर ‘लॉ एण्ड लाइफ’ कर लिया है।

 

कुछ दिन बाद लगने लगा कि मैं केवल नाटक करता हूँ,  गोवर्धन टिकाने वाला तो कोई और है। तो इस के अलावा और भी काम किए कुछ कानून बताने का और कुछ सलाह देने का। कानून जानने में कम लोगों ने रुचि ली लेकिन सलाह के काम को लोगों ने पसंद किया। उस काम को मैं करता रहता हूँ। आप को जरूरत पड़े तो आप भी यहाँ चटका लगाएँ। इसी बीच बहुत सारे अंकलों, आण्टियों और ताऊ लोगों की मुहब्बत ने मुझे दुलारा। उन में से कुछ के नाम आप को मैं यहाँ बताता। लेकिन मैं ठहरा साल भर का बच्चा, पर इतना भी बच्चा नहीं कि कुछ न समझूँ। मैं नाम नहीं बता रहा। बताऊंगा तो मुझे पता है जिस अंकल, आंटी या ताऊ का नाम लेने से छूट गया वही नाराज हो जायेंगे, और मुसीबत झेलनी पड़ेगी मुझे।मेरे बनाने वाले ने इधर नया घर लिया है। वहाँ रंगाई पुताई चल रही है। सुना है कुछ दिन बाद वहाँ जा कर रहना पड़ेगा। आप को भी मुझे मिलने वहीं आना पड़ेगा। रंगाई-पुताई करने वाले को कल पता लगा कि आज मेरी वर्षगाँठ है तो बोला। अच्छा होता जन्मदिन नए घर में मनाते। पर मैं ने ही मना कर दिया। साल पूरा गूगल के घर काटा है तो जन्मदिन भी यहीं मनाएंगे।

 

पैदा  हुआ तब मुझे पता नहीं था कि मेरी पहली ही वर्षगाँठ दिवाली के दिन पड़ेगी। वाकई मैं बड़ी किस्मत वाला हूँ। पहली बार जन्मदिन मनाया जा रहा है। घर-घर साफ सुथरा है। कई दिनों से मिठाइयाँ और पापड़ी बन रही हैं। दो दिन से शाम होते ही दिये, बिजलियाँ जल उठते हैं। क्या शहर? क्या गाँव? सब के सब जगमग कर उठते हैं। बाजार सजे हुए हैं। लोग नए कपड़े पहन कर सज-धज के साथ बाजार निकलते हैं। खूब बिक्री हो रही है।

 

पर सुनते हैं कोई दूसरा बाजार भी है जहाँ बहुत बड़ी गड़बड़ चल रही है। सुनते हैं वहाँ ऐसी गिरावट है कि सैंकड़ों दिवालिया हो रहे हैं।  लगता है दुनिया ही उलट पुलट हो जाएगी। नौकरियों पर आन पड़ी है। मुझे किसी ने बताया कि सारा पैसा कुछ लोगों के पास इकट्ठा हो गया। आम लोग कर्जदार हो गए। अब उन के पास पैसा ही नहीं है। बाजार में खरीदें तो किस से खरीदें?  ऐसे माहौल में लोगों की नौकरियाँ छूट रही हैं। भैया! ऐसे तो सब गड़बड़  हो जाएगा। आम लोगों के पास तो पैसा और कम हो जाएगा। बाजार चलेगा काहे से? लोग कह रहे हैं कि जैसे यहाँ अपने यहाँ सरकार अकाल-बाढ़ में राहत काम चलाती है वैसे सारी दुनिया में चलाए जाएंगे।

 

खैर! हो रहा होगा कुछ, मुझे क्या?  मेरा काम तो लाठी से गोवर्धन को टिकाए रखना है। मैं तो खड़ा रहूँगा, यहाँ ऐसे ही, अपनी लाठी के साथ। हाँ खड़े खड़े कुछ और भी करना संभव हुआ तो करूंगा। मुश्किल बखत जरूर है पर जैसे पहले टले,  ऐसे ये भी टल ही जाएगा। पर मेरा कहना यह है कि रोटी कम हो तो मिल बांट कर ऐसे खाओ कि पेट किसी का खाली न रहने पाए। पेट खाली, तो चली दुनाली। सब को न्याय से बांटो। किसी को महसूस न हो कि उस के साथ न्याय न हुआ। न्याय होता रहेगा तो बुरे दिन भी अच्छे से कट जाएंगे। और जो न्याय न रहा तो मुश्किल होगी। कोई पेट भरे से भी ज्यादह खा ले और उल्टियाँ करता फिरै और कोई भूख के मारे सो भी न पाए। ऐसे तो लट्ठम्-लट्ठा हो लेगी। बहुत फौजदारी होगी बहुत मर जाएंगे, बहुत घायल होंगे। बहुत जेल भुगत रहे होंगे।

 

बहुत हो गया। उधर लक्ष्मी जी का वाहन उन्हें ले कर आता होगा। आप सब उस की तैयारी अच्छे से कीजिएगा। रोशनी अच्छे से करना, अमावस में दिन उग आए। लक्ष्मी जी की अगवानी खूब करना। टिक जाएंगी तो खुशियों का वारापार न रहेगा। हाँ, पटाखे जरा सावधानी से छोड़ना। आज कल पटाखों से डर लगने लगा है। लोग ऐसी जगह छुड़ा देते हैं. जहाँ कइयों की जान चली जाती है। पता नहीं क्या हो गया है लोगों को? अब ऐसे सिरफिरों के पीछे पुलिस पड़ी है। पर बेचारी वह क्या करेगी। उस की तादाद भी कम है। सुना है देश भर के राज्यों में करीब एक लाख  पुलिस वाले भरती ही नहीं किए जाते हैं। उन की जगह खाली पड़ी रहती है। बोलो! पुलिस के लिए जब तब केन्द्र के सामने कटोरा लिए खड़े रहते हैं।

 

आप इन सब चिंताओं को छोड़ कर लक्ष्मी पूजा कीजिएगा। पूजा हो जाए तो मिठाई का एक-एक टुकड़ा मेरे जन्मदिन के बहाने अधिक खाईएगा  और मुझे याद कीजिएगा। 

 

आप को और आप के परिवार को दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।  दीवाली आप के लिए सब तरह की सर्वांग समृद्धि लाए। 

 

मेरे सिर पर अपना हाथ रखिएगा। 

आप का अपना

तीसरा खंबा

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