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जीवन बीमा के प्रीमियम की राशि सीधे बीमा निगम को जमा कराएं, एजेंट को दी गई राशि की जिम्मेदारी निगम की नहीं

यूँ तो जीवन बीमा की विशेषज्ञता हिन्दी ब्लागरी में सम्माननीय विष्णु बैरागी जी के अलावा किसी को क्या हासिल होगी? लेकिन मैं करीब बीस वर्षों से जीवन बीमा से संबंधित मुकदमे करता रहा हूँ। इस लिए चाहता हूँ कि कुछ आवश्यक जानकारिय़ाँ तीसरा खंबा के माध्यम से दे दूँ। वैसे यह बैरागी जी के प्रोफेशनल काम में सीधा दख़ल है, क्यों कि मैं एजेण्ट के विषय में ही लिखने जा रहा हूँ।

भारत में जीवन बीमा व्यवसाय पर अब तक भारतीय जीवन बीमा का एकाधिकार रहा है। हालांकि कुछ वर्षों से इस क्षेत्र में निजि बीमा कंपनियाँ भी उतर गई हैं। लेकिन उन का व्यवसाय नगण्य है और यदि लाभ और विश्वसनीयता की दृष्टि से देखा जाए तो भारतीय जीवन बीमा का दुनिया भर में कोई सानी नहीं है। हम विवादित दावों की संख्या से ही उन की तुलना करें तो भारतीय जीवन बीमा निगम के विवादित दावों की संख्या 1.5 प्रतिशत से भी कम है। जब कि दुनिया की सब से बड़ी कंपनियों के विवादित दावों की संख्या 40 प्रतिशत से ऊपर है। इस के अलावा सार्वजनिक क्षेत्र में होने के कारण इस की विश्वसनीयता भी औरों की तुलना में सर्वाधिक है।

जीवन  बीमा एजेंट का काम अपनी कंपनी के लिए ग्राहकों की तलाश करना उन्हें जीवन बीमा पॉलिसियाँ लेने के लिए प्रेरित करना मात्र है। इस के लिए उन्हें अपनी कंपनी से बेची गई पॉलिसियों के प्रीमियम पर कमीशन मिलता है जो पॉलिसी के प्रथम वर्ष में सर्वाधिक होता है। बीमा एजेंट बीमा कंपनी (कारपोरेशन) के कर्मचारी नहीं होते। अपने व्यवसाय को बनाए रखने के लिए ये ग्राहकों को सेवाएं देते रहते हैं। हालाँकि ऐसी सेवाएं स्वैच्छिक होती हैं।

इन सेवाओं में एक सेवा यह भी है कि अक्सर बीमा कराने वाले लोग बीमा एजेंट को बीमा प्रीमियम की राशि दे देते हैं जिसे बीमा एजेंट बीमा निगम के कार्यालय में जमा करा देता है और रसीद ला कर बीमित व्यक्ति को दे देता है। यह कार्य बीमा एजेंट का नहीं है और उसे करना भी नहीं चाहिए क्यों कि यदि किसी कारण से बीमा प्रीमियम की किस्त जमा होने से रह गई और बीमा पॉलिसी कालातीत (लेप्स) हो गई तो उस का खामियाजा बीमित को ही भुगतना पड़ेगा न कि एजेंट को। बीमा एजेंट को जमा करने के लिए राशि अदा कर देने मात्र से ही बीमित का बीमा किस्त का भुगतान करने का दायित्व समाप्त नहीं हो जाता है।

इस संबंध में उच्चतम न्यायालय ने हर्षद शाह एवं अन्य बनाम एल आई सी एवं अन्य के मुकदमे में दिनांक 04.04.1997 को निर्णीत मुकदमे में यह निर्णय दिया कि भारतीय जीवन बीमा निगम के किसी भी एजेंट को बीमा पॉलिसी का प्रीमियम प्राप्त करने की किसी भी प्रकार की कोई अधिकारिता नहीं है। यदि किसी बीमित ने प्रीमियम की राशि का भुगतान किसी एजेंट को कर दिया है तो उस के लिए बीमा निगम जिम्मेदार नहीं होगा।

इस लिए यदि आप के पास बीमा पॉलिसी है या भविष्य में लेते हैं तो उस का प्रीमियम हमेशा ही बीमा निगम में समय से जमा कराएँ और रसीद अपने पास रखें। वैसे हर बीमा ऐजेंट का कर्तव्य है कि वह बीमित से प्रीमियम की राशि प्राप्त न करे और बीमित को प्रेरित करे कि वह स्वयं यह राशि समय रहते बीमा निगम के कार्यालय में जमा कराए। फिर भी यदि बीमा एजेंट किसी विपत्ति के समय में यह काम करता है तो उसे चाहिए कि वह प्रीमियम को उसी दिन बीमा निगम कार्यालय में जमा करा दे। बीमित को भी चाहिए कि वह यदि बीमा एजे

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