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चैक बाउंस के मुकदमे अपराधिक न्याय-प्रणाली का कैंसर बनते जा रहे हैं

धीरे-धीरे यह सच सामने आता जा रहा है कि चैक बाउंस के मामले में अपरक्राम्य विलेख अधिनियम (Negotiable Instrument Act) की धारा 138 के अंतर्गत दायर किए गए मुकदमे भारतीय अपराधिक न्याय-प्रणाली के लिए कैंसर साबित होते जा रहे हैं। इस ने अपराध न्याय-प्रणाली को बुरी तरह कब्जा लिया है।

दिल्ली में सांध्य न्यायालयों का शुभारंभ करने के अवसर पर भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री के.जी. बालाकृष्णन् ने इस पर कहा कि चैक बाउंस के इन मुकदमों का समाज पर कोई प्रभाव नहीं है ये अपराध न्याय-प्रणाली को किसी भी तरह से विकसित नहीं करते। अपरोक्ष रूप से उन्हों ने यह भी कहा कि अपराधिक न्याय अदालतों का उपयोग वास्तव में धन वसूली एजेंट के रूप में किया जाने लगा है। उन्हों ने चेताया कि अदालतों को धन वसूली एजेण्ट नहीं बनने दिया जाएगा। उन्हों ने कहा कि राजधानी दिल्ली में इन मुकदमों की भरमार हो गई है। उन्हों ने आशा व्यक्त की कि समस्या को हल करने में सांध्य अदालतें सकारात्मक भूमिका अदा करेंगी। दिल्ली की मजिस्ट्रेट स्तर की अदालतों में कुल 9 लाख मुकदमें लम्बित हैं जिन में से 5.7 लाख मुकदमे केवल चैक बाउंस से संबंधित हैं जो इस स्तर की अदालतों के लिए एक बड़ी समस्या हो गए हैं। इन से निपटने के लिए ही सांध्य अदालतें आरंभ की गई हैं। उन्हों ने विश्वास जताया कि सांध्य अदालतों के इस प्रयोग को ट्रेफिक चालानों जैसे छोटे मुकदमों के लिए भी उपयोग में लिया जा सकेगा।

दिल्ली में तीन सांध्य अदालतें पटियाला हाउस और कड़कड़डूमा न्यायालय परिसरों में आरंभ की गई हैं जो संध्या में 5 से 7 बजे के बीच काम करेंगी। अभी ये अदालतें केवल वित्तीय संस्थानों द्वारा दायर किये गए 25000 रुपये तक के चैक बाउंस के मुकदमें देखेंगी।

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