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पुलिस मुलजिम की पहचान के महत्वपूर्ण बिंदु को साबित क्यों नहीं कर पाती ?

एक जीप सवारियाँ देख कर सड़क पर अचानक रुकी। जब तक सवारियाँ बैठती तब तक पीछे से ट्रेफिक पुलिस की जीप आ गई। पुलिस अफसर ने जीप को सड़क से हटाने को कहा। जीप चालक ने जीप को आगे की और दौड़ा लिया। पुलिस की जीप पीछे पीछे। पुलिस अफसर मौके पर ही चालकों की पिटाई करने के लिए मशहूर था। जीप चालक ने जीप को तेजी से दौड़ाया। अफसर ने माइक से जीप को रुकने को कहा लेकिन जीप नहीं रुकी। अफसर ने वायरलेस से आगे के थाने को फोन किया उस थाने की जीप आगे आड़ी खड़ी हो गई एक ओर थोड़ी जगह थी तो जीप वाले ने वहाँ से निकलने की कोशिश की लेकिन जीप पुलिस जीप से रगड़ खा गई। कुछ दूर जा कर जीप चालक ने जीप को रोका और सवारियों समेत छोड़ कर भाग गया।

पुलिस ने जीप को जब्त किया। वाहन पंजीयक के यहाँ से उस के मालिक को बुला कर गिरफ्तार कर उस के खिलाफ मुकदमा अदालत में पेश कर दिया। मुकदमा तकरीबन पांच छह साल चला। इस बीच पुलिस अफसर, पुलिस जीप के चालक, कतिपय सवारियों और जीप जब्त करने वाले अफसर आदि के बयान हुए। जीप मालिक ने कोई कमजोर वकील किया था। जिस दिन पुलिस अफसर और मुकदमे की जांच करने वाला पुलिस अफसर बयान देने आया वकील घबरा गया उस ने गवाहों से जिरह नहीं की। कुछ और गवाहों से जिरह नहीं हुई। जीप मालिक ने वकील बदल लिया।

नए वकील ने मुकदमा देखा और अच्छी फीस ले कर मुकदमा लड़ने लगा। उस ने विश्वास दिलाया कि वह उसे सजा नहीं होने देगा और उस ने जीप मालिक के विरुद्ध दोष सिद्धि नहीं होने दी। अदालत ने जीप मालिक को संदेह का लाभ देते हुए इल्जाम से बरी कर दिया। संदेह इस बात का कि पुलिस यह साबित नहीं कर पाई थी कि उस दिन उस जीप को उस का मालिक ही चला रहा था।

हालांकि पुलिस ने वाहन पंजीयक के दफ्तर से पता करने के बाद मालिक को थाने बुला कर नोटिस दिया था और उस पर चालक के बारे में सूचना ली थी। सूचना देना कानूनन जरूरी था और जीप मालिक ने सूचना दी कि उस दिन वही वाहन चला रहा था। जीप मालिक को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के कागज पर गिरफ्तारी का समय दर्ज था। उसे चालक का नाम बताने का नोटिस भी उसी तारीख में दिया गया था और उस में न नोटिस देने समय दर्ज था और न ही उस का जवाब लेने का।मुलजिम जीप मालिक ने अपने बयान में अदालत को कहा था कि उस दिन ड्राइवर गाड़ी चला रहा था लेकिन शाम को लौट कर नहीं आया और न ही जीप लौटी। तलाश करने पर पता लगा जीप थाने में खड़ी है। वहाँ जाने पर उस से पूछे जाने पर उस ने ड्राइवर का नाम पता बता दिया था। लेकिन पुलिस ने कहा कि उसे कौन पकड़ कर लाएगा? और उसे ही मुलजिम बना दिया गया।

पुलिस जीप के चालक ने अदालत में दिए बयान में कहा था कि वह जीप मालिक को पहले से जानता था और वही उस जीप चला रहा था लेकिन उस ने या पुलिस के किसी भी गवाह ने यह नहीं कहा कि उस दिन जीप चलाने वाला अदालत में हाजिर मुलजिम ही है। मुलजिम को पहचानने के लिए कोई पहचान परेड भी नहीं हुई थी। नतीजा यह रहा कि यह साबित नहीं हो सका कि जो जीप चालक  घटना के दिन जीप चला रहा था वह मुलजिम जीप चालक ही था। इस तरह पुलिस अन्वेषण की कमी और पुलिस गवाहों से अदालत में यह नहीं पूछे जाने से कि क्या मुलजिम को आप पहचान सकते हैं? और क्या वह अदालत में हाजिर है? मुकदमे में मुलजिम को सजा नहीं दी जा सकी।

यह एक मुकदमा नहीं है। ऐसे सैंकड़ों मुकदमों में रोज मुलजिम केवल पहचान के अभाव में बरी होते हैं और उन्हें सजा नहीं दी जा सकती है। इस में अन्वेषण कर्ता और सरकार की ओर से पैरवी करने वाले अभियोजक की कोताही होती है। लेकिन उन में से किसी से कोई स्पष्टीकरण नहीं मांगा जाता है कि क्यों वे  अदालत में मुलजिम की पहचान साबित नहीं कर पाए।

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