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किस तरह के अनादरित चैकों पर मुकदमा होगा? और बचाव भी हैं

पिछले आलेख में मैं ने चैक अनादरण के अपराध पर लिखे आलेखों पर आई जिज्ञासाओं और प्रश्नों पर बात की थी आज उस सिलसिले को जारी रखता हूँ…..

उड़न तश्तरी से समीर लाल जी कहते हैं,  ‘बहुत सी जिज्ञासाओं का समाधान होता जा रहा है।  मैं समझता था कि सिर्फ इनसफिशियेन्ट बैलेन्स से बॉन्स चैक इस दायरे में आता है।  आपकी बात से तो लगता है कि गलत साइन, काटापीटी, और स्टॉप पेमेन्ट आदि सभी इसी दायरे में आते हैं।  फिर तो स्टॉप पेमेन्ट मिनिंग लैस हो गया।  
आप सही समझे,  लेकिन इस का अर्थ यह नहीं है कि बाकी सब के सब मामले अर्थहीन हो गए।  वास्तव में धारा 138 परक्राम्य अधिनियम की भाषा में तो यही लिखा है कि यदि खाते में बैलेंस नहीं होने के कारण या चैक के भुगतान योग्य रकम नहीं होने के कारण चैक अनादरित होने पर ही यह कार्यवाही संभव हो सकेगी।  कानून के प्रथम पाठ से जो आप समझे वह भी सही समझे।  यह भी सही है कि अन्य कारणों से यह मुकदमा नहीं चल सकता।   लेकिन धारा 139 में जो कहा गया है उस का उच्चतम न्यायालय ने यह अर्थ किया कि यदि परिवादी यह कह कर आता है कि बैंक में पर्याप्त रकम न होने का कारण ही वास्तविक है, और बैंक द्वारा बताया गया कारण बनावटी है तो भी मुकदमा चलेगा क्यों कि यह साबित करने का भार अभियुक्त (चैक जारी कर्ता) पर होगा कि उस दिन पर्याप्त रकम बैंक में थी और चैक के अनादरित होने का कारण अन्य है जिस से उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।  आप को मजबूती से अपना बचाव करना पड़ेगा और किया जा सकता है।  लेकिन मुकदमा तो हो ही गया न?  और मुकदमा होना और उसे भुगतना भी भारत में एक बहुत बड़ी सजा से कम नहीं है।  
 
पीएन सुब्रह्मण्यम जी कहते हैं,  ‘ठीक है. अब बात समझ में आ रही है. मुक़दमा जितना लंबा खिंचे उतना अच्छा होता है – वकील साहब के लिए. बहुर सुंदर तरीके से शंकाओं का समाधान आपने किया है. हमारे पास इस समय किसी भी प्रकार का सन्दर्भ साहित्य नहीं है. एक शंका ज़रूर है मन में है, वह ये कि एन.आई. एक्ट में क्या पोस्ट डेटेड चेक को पारिभाषित किया गया है? चेक को एक “अनकंडीशनल ऑर्डर” कहा गया होगा. क्या पोस्ट डेटिंग एक कंडीशन नहीं है?’
 
मेरी बेवजह तारीफ के लिए शुक्रिया!  परक्राम्य विलेख अधिनियम में बैंक चैक को चैक ही कहा गया है और उसे किसी अन्य तरीके से परिभाषित नहीं किया गया है।  बस चैक पर अंकित तिथि के अनुसार उसे भुगतान योग्य अवधि में होना चाहिए।  चैक की परिभाषा को मैं इसी श्रंखला के प्रारंभिक आलेख में ही स्पष्ट कर चुका हूँ आप उसे फिर से पढ़ सकते हैं। 

अभी कुछ प्रश्न और शेष हैं, उन का उत्तर आगे की कड़ी में…(जारी)

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