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अदालत का सुझाव : नशे में दुर्घटना कर मृत्यु कारित करने को अजमानतीय और दस वर्ष तक की कैद की सजा से दंडनीय बनाने के लिए कानून बनाया जाए

सड़क दुर्घटना में कु. बबिता चौधरी की मृत्यु का प्रकरण  आखिर अदालत में रंग लाया।  14 दिसम्बर 2008 को कोटा के एक कॉलेज की कुछ छात्राएं शिक्षण टूर पर बहरोड़ से जयपुर पहुँची थीं और बस से उतर कर ज़ेब्रा क्रासिंग से सड़क पार कर रही थीं कि एक कार ने उन्हें टक्कर मार दी, कुछ छात्राएँ घायल हो गईं और उन में से एक बबिता चौधरी की मृत्यु हो गई।  किसी ने टक्कर मारने वाली कार का पीछा किया और पुलिस ने कार को रोक लिया।  चालक को पकड़ा गया और उस का डाक्टरी मुआयना कराया गया तो वह अल्कोहल के नशे में था।  पता लगा अभियुक्त चालक महोदय जयपुर की भूतपूर्व महारानी जिनके सौन्दर्य के जलवे इतिहास में अंकित हैं, श्रीमती गायत्री देवी के पौत्र विजित सिंह हैं।

पुलिस ने विजित सिंह को जमानत पर छोड़ दिया क्यों कि इन्हें धारा 279,337 व 304-ए भा.दं.सं. में गिरफ्तार किया गया था।  बाद में हंगामा हुआ कि पुलिस ने इन्हें रसूख के कारण छोड़ दिया।  उन्हीं दिनों सरकार बदली थी तो नए मुख्य मंत्री ने बयान दिया कि उचित कार्यवाही की जाएगी।  मामले में धारा 338 और बढ़ गई तथा 304-ए को बदल कर 304 में परिवर्तित कर दिया गया।  क्यों कि एक बार विजित सिंह को जमानत पर छोड़ा जा चुका था इस कारण से सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार उन्हें पुलिस दुबारा गिरफ्तार नहीं कर सकती थी। इस कारण से न्यायालय से जमानत खारिज करने का आवेदन राजस्थान सरकार की पुलिस ने किया।  सरकार का यह आवेदन निरस्त कर दिया गया।  सरकार ने इस निर्णय के विरुद्ध राजस्थान उच्चन्यायालय के समक्ष रिवीजन प्रस्तुत किया।  यह रिवीजन सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति महेश भगवती के समक्ष रखा गया जिन्हों ने सुनवाई के उपरांत 3 मार्च को अपना निर्णय सुनाया।  यह निर्णय 55 पैरा और 24 पृष्टों का है।

न्यायमूर्ति महेश भगवती ने निर्णय में अनेक कानूनी बिन्दुओं पर विचार किया है।  सब से पहले तो यह निश्चित किया कि क्या ये रिविजन याचिकाएं पोषणीय हैं? मुद्दा यह उठाया गया था कि अदालत का जमानत निरस्त नहीं करने का निर्णय एक अंतिम आदेश नहीं हो कर विचारकालीन आदेश है जिस का रिवीजन नहीं हो सकता।  लेकिन इस निर्णय में यह माना गया कि यह आदेश एक अंतिम आदेश था जिस के कारण इस के विरुद्ध रिवीजन याचिका पोषणीय हैं।

इस मामले में उपलब्ध तथ्यों पर विचार करते हुए सब से महत्वपूर्ण बिंदु यह सामने आया कि एक ही मामले में अनेक घायलों में से एक की मृत्यु हो गई।  अन्य घायलों के मामले में पुलिस इस नतीजे पर पहुँचती है कि वे लापरवाही और असावधानी से वाहन चालन के मामले थे तो उसी घटना में एक की मृत्यु हो जाने पर इरादतन मृत्यु कारित करने का मामला कैसे हो सकता है।  न्यायमूर्ति महेश भगवती ने कहा कि क्या यह संभव हो सकता है कि एक व्यक्ति एक साथ दो विपरीत दिशाओं में गमन करे।  यदि लापरवाही और असावधानी का मामला है तो वह धारा 304 भा.दं.सं. का हो ही नहीं सकता। वह धारा 304-ए का ही हो सकता है जो कि जमानतीय अपराध है।  राज्य और पुलिस अधिकारियों को कानून से खेलने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।  अनेक अन्य बिंदुओं पर विचार करते हुए पुलिस और सरकार की रिवीजन याचिकाएँ खारिज कर दी गईं।  नतीजा यह रहा कि विजित सिंह अ

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