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वस्तु का व्यावसायिक उपयोग क्यों उपभोक्ता की परिधि के बाहर है?

 पिछले चार में से तीन आलेख उपभोक्ता मामलों से सम्बद्ध थे।   इन पर आई टिप्पणियों पर जिज्ञासाएँ भी थीं। नरेश जी राठौर ने कहा कि मैं जिज्ञासाओं का उत्तर उसी पोस्ट पर दे दूँ।  लेकिन मैं ने उन्हें अलग पोस्ट के रूप में देना उचित समझा और कहा भी।  फिर भुवनेश जी की टिप्पणी आ गई कि  “राठौड़जी का कहना सही है..मेरे ख्‍याल से आप टिप्‍पणियों का उत्‍तर वहीं पर दें तो ज्‍यादा उचित है और इसके लिए टिप्‍पणी में ईमेल के नीचे email follow-up comments to का option भी है इससे ईमेल सीधे प्रश्‍न पूछने वाले और बाकी टिप्‍पणीकार जिन्‍होंने वहां चटका लगाया है उनके मेलबॉक्‍स में पहुंच जायेगा”।  मैं इस पद्यति से परिचित हूँ, लेकिन फिर भी मेरा मानना यह है कि इन प्रश्नों के उत्तर यदि एक नई विस्तृत जानकारी को दे रहे हों तो उस पर पोस्ट होना ही वाजिब है।  इस बात को शायद आप यह आलेख पढ़ने के बाद समझ सकें।

 

उड़न तश्तरी से समीर लाल जी ने प्रश्न किया, “पुनः विक्रय के अलावा व्यापार में इस्तेमाल भी तो उपभोग ही कहलाना चाहिये–और उपभोक्ता की श्रेणी में ही आना चाहिये।”  लगभग यही सवाल किया विष्णु बैरागी जी ने कि, “भले ही दुकानदार ने खरीदी और अपने व्‍यापार की सुरक्षा और व्‍यापार में वृध्दि के लिए खरीदी किन्‍तु वह है तो उपभोक्‍ता ही।  वस्‍तु उसने ‘व्‍यापार करने के लिएद्ध नहीं अपितु ‘अपना व्‍यापार सुरक्षित रखने और उसमें वृद्धि करने’ के लिए खरीदी थी, न कि उस वस्‍तु का पुनर्विक्रय कर, उसका व्‍यापार करने के लिए।  व्‍यवहारत: तो, वस्‍तु क्रेता उपभोक्‍ता ही तो है!

तार्किक रूप से तो आप दोनों सही हैं।  लेकिन 1986 तक जब उपभोक्ता संरक्षण का कानून नहीं आया था।  इस तरह का प्रत्येक विवाद केवल और केवल दीवानी न्यायालयों मे ही उठाया जा सकता था।  लेकिन जिस तरह से विदेशी कंपनियों के लिए भारत का बाजार खोला गया और बाजार में अनेक किस्म के माल की आवक हो गई।  उपभोक्ता के संरक्षण की आवश्यकता महसूस करते हुए इस कानून को लाया गया।  कानून में उपभोक्ता को परिभाषित किया गया। यह परिभाषा निम्न प्रकार है-

 

 (d)  “consumer” means any person who—

(i)    buys any goods for a consideration which has been paid or promised or partly paid and partly promised, or under any system of deferred payment and includes any user of such goods other than the person who buys such goods for consideration paid or promised or partly paid or partly promised, or under any system of deferred payment when such use is made with the approval of such person, but does not include a person who obtains such goods for resale or for any commercial purpose; or

(ii)   hires or avails of any services for a consideration which has been paid or promised or partly paid and partly prom­ised, or under any system of deferred payment and includes any beneficiary of such services other than the person who ‘hires or avails of the services for consideration paid or promised, or partly paid and partly promised, or under any system of deferred payment, when such services are availed of with the approval of the first mentioned person but does not include a person who avails of such services for any commercial purposes;

Explanation.— For the purposes of this clause, “commercial purpose” does not include use by a person of goods bought and used by him and services availed by him exclusively for the purposes of earning his livelihood by means of self-employment;

 

यहाँ वस्तु और सेवा के आधार पर उपभोक्ता को दो भागों में विभाजित कर दिया गया है।  आज यहाँ हमारा संबंध केवल वस्तु  की खरीददारी से है।  प्रत्येक व्यक्ति जो वस्तु मूल्य पर खरीदता है। चाहे उस ने मूल्य का भुगतान किया हो, या केवल करने का वादा किया हो, या कुछ दे दिया हो और कुछ देने का वादा किया हो, वह उपभोक्ता है।  साथ ही वस्तु खरीदने वाले की अनुमति से उस वस्तु का उपयोग करने वाला भी उपभोक्ता है। लेकिन,
इस परिभाषा से वस्तु को पुनः बेचने के लिए खरीदने वालों को और उस क

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