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अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) से अधिक मूल्य लेने की शिकायत कहाँ करें?

भुवनेश शर्मा ने मुझ से चार प्रश्न पूछे थे।  दो का उत्तर मैं पहले दे चुका हूँ।  शेष बचे दो प्रश्नों का उत्तर यहाँ दे रहा हूँ।  पिछले दो उत्तरों पर कुछ शंकाएँ पाठकों ने टिप्पणियों द्वारा उठाई थीं।   नरेश सिह राठौङ  ने .अपनी टिप्पणी में यह अपेक्षा की है कि  पोस्ट पर टिप्पणी से कोई शंका सामने आए तो उसी पोस्ट पर उस का उत्तर दे दिया जाए।  यह किया जा सकता है।  लेकिन ऐसा उत्तर देने के पहले जितने पाठक उस पोस्ट को पढ़ चुके हैं, वे उस उत्तर को पढ़ने से वंचित रह सकते हैं।  इस कारण से ऐसी किसी भी शंका का उत्तर अगली किसी पोस्ट में ही देना उचित प्रतीत होता है। यह पोस्ट कुछ लंबी हो गई है इस कारण पिछली तीन कानूनी सलाह की पोस्टों पर उपजी शंकाओं पर अपनी बात अगली किसी पोस्ट में  रखने का प्रयत्न रहेगा।         -दिनेशराय द्विवेदी

प्रश्न 1. 
यदि मेरे द्वारा खरीदी गई वस्‍तु पर एमआरपी से अधिक कीमत वसूली गई है और मेरे पास उसका बिल है तो नियमानुसार शिकायत कहां की जानी चाहिए?

  उत्तर

भाई, इस प्रश्न का उत्तर बहुत आसान है।  आप जब एक वस्तु किसी भी विक्रेता से खरीदते हैं और आप उस के अंतिम खरीददार हैं, अर्थात आप को उस वस्तु को आगे नहीं बेचना है तो आप उपभोक्ता हैं।  एक उपभोक्ता से खरीदे गए सामान पर या उस के पैकिंग पर अंकित अधिकतम खुदरा मूल्य से अधिक मूल्य प्राप्त किया जाता है तो उसे इस की शिकायत जिला उपभोक्ता समस्या निवारण मंच को करनी चाहिए और यदि राहत का मूल्यांकन जिला मंच के क्षेत्राधिकार से अधिक है तो राज्य उपभोक्ता समस्या निवारण आयोग को इस की शिकायत प्रस्तुत करनी चाहिए।

इस संबंध में राष्ट्रीय उपभोक्ता समस्या निवारण आयोग ने एक निर्णय मेसर्स कारगो टर्पोलीन इंडस्ट्रीज बनाम श्री मल्लिकार्जुन बी. कोरी के मामले में दिनांक 5 जुलाई, 2007 को पारित किया है।  जिस में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि विक्रेता माल पर छपी अधिकतम खुदरा मूल्य से अधिक मूल्य नहीं ले सकता है।  चाहे इस बीच मूल्य में वृद्धि क्यों न हो चुकी हो।  निर्णय आप के अवलोकनार्थ निम्न प्रकार है…..

    NATIONAL CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION NEW DELHI

    REVISION PETITION NO.  2132   OF  2007

    (Against the order dated 18/01/2007 in Appeal/ Complaint No. 1773/2006 of the State Commission Bangalore )
    M/S CARGO TARPAULIN  INDUSTRIES ….. Petitioner(s)
    Vs.
    SRI MALLIKARJUN B. KORI  …… Respondent(s)

    BEFORE: HON’BLE MR. JUSTICE S.N. KAPOOR, PRESIDING MEMBER & MR. B.K. TAIMNI, MEMBER

    Dated the 5th Day of July, 2007

    ORDER
        The case was called out earlier and passed over. Again even on second call, none is present on behalf of the petitioner.
        We have gong through the impugned order. It is apparent that the petitioner has charged Rs.112/- for “Duck Back Baby Sheet” sold to the complainant. Its Maximum Retail Price was Rs.90/-. According to the petitioner that though M.R.P was Rs.124/- but the Duck Back Baby Sheet was having an old label of Rs.92/- and after discussions, the price was settled at Rs.112/-. If there was an old label on the Duck Back Baby Sheet, indicating M.R.P. of Rs.92/- its M.R.P. would not increase, if subsequently due to increased cost of production, transportation etc. M.R.P. of subsequently manufactured goods is increased. If in these circumstances, the State Commission has imposed exemplary compensation of Rs.10,000/-, we think that the order passed by the State Commission does not call for any interference.
        Revision petition is dismissed accordingly.
        ………….………………..J (S.N. KAPOOR) PRESIDING MEMBER
        ……….………………..       (B.K. TAIMNI) MEMBER

    प्रश्न-2. 

यदि खरीदी गई कोल्‍डड्रिंक में खोलने के बाद कुछ कमी पाई जाती है तो कहां शिकायत करें….यदि बिल नहीं है तो क्‍या उपचार प्राप्‍त है उपभोक्‍ता को….यदि बिल है तो वह उपभोक्‍ता अदालत में कैसे साबित करेगा कि कोल्‍डड्रिंक में कमी थी?

उत्तर…  

खरीदी गई वस्तु में कोई कमी पाई जाती है तो उस की शिकायत तो जिला उपभोक्ता मंच को ही की जाएगी।
 जहाँ तक बिल का प्रश्न है तो बिल खरीददार को अवश्य ही प्राप्त करना चाहिए।  लेकिन कभी ऐसी परिस्थितियाँ हो सकती हैं जब बिल न दिया गया हो. जैसे आप किसी रेस्टोरेंट में भोजन करते हैं तो बिल बाद में दिया जाता है।  विवाद हो जाने पर तो बिल कोई विक्रेता नहीं देना चाहेगा।  ऐसी अवस्था में आप स्वतंत्र साक्षियों के माध्यम से अपने मामले को साबित कर सकते हैं।  स्वतंत्र साक्षी के मौखिक बयान जो शपथ पर किए गए हों वे साक्ष्य में ग्रहण करने योग्य हैं।  जब चक्षुदर्शी साक्षियों के आधार पर देश के न्यायालय मृत्युदंड और आजीवन कारावास का दंड दे सकते हैं तो एक उपभोक्ता विवाद को हल क्यों नहीं कर सकते?
इस तरह का मामला चक्षुदर्शी साक्षियों के आधार पर ही साबित किया जा सकता है।

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