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विज्ञापन का सरकारी दुरूपयोग और वकील के कारण सेवार्थी को हुए नुकसान का हर्जाना

तीसरा खंबा को कमल शुक्ला (संभवतः छत्तीसगढ़ से) के तीन प्रश्न मिले।  किसी भी प्रश्न का उत्तर अब तक उन्हें नहीं दिया जा सका है।  आज ये तीनों प्रश्न आप के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ।  इन सब के जवाब आप सब के पास भी हैं, और उपाय भी।  आप चाहें तो इन प्रश्नों को हल करने की ओर आगे बढ़ा जा सकता है।   प्रश्न इस प्रकार हैं_________

1. जनता अपने ही करोडो अरबों रूपये खर्च कर शासकीय विभागों  व मंत्रियों   की बधाई क्यों ले ? अखबारों मे विज्ञापन का कोई मापदण्ड तो होगा?

2. जनता के पैसे का दुरूपयोग कर लाखों -करोडों रुपयों का विज्ञापन नेताओं के स्वागत व बधाई आदि में विभिन्न अवसरों पर शासकीय  विभागों द्वारा किया जाता है |   क्या इस पर कानून का कोई नियंत्रण नही है?

3. कांकेर (छत्तीसगढ़) में तीन माह से ज्यादा समय से वकीलों ने जिला ऊपभोक्ता फोरम का बहिष्कार कर रखा है।   न्यायाधीश व वकीलों के टकराव के बीच वादी-प्रतिवादी पिस रहें है।  मै यह जानना चाहता हुं कि फीस प्राप्त करने के बाद भी सुनवाई के दौरान लगातार वकील के अनुपस्थित रहने पर, तथा फैसला विपरीत आने पर क्या वकीलों के खिलाफ वाद लाया जा सकता है?

तीसरा खंबा का उत्तर

वस्तुतः पहले दोनों प्रश्न एक ही हैं।  केवल सरकार से ही संबद्ध नहीं है अपितु  स्वायत्तशासी संस्थाओं और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों पर लागू हैं।  भारतीय संविधान और कानून में ऐसा कोई कानून नहीं है जो कि इस तरह के विज्ञापनों को प्रतिबंधित कर सकता हो।  यह सरकार और ये संस्थाएँ स्वयं तय करती हैं कि विज्ञापन पर कितना खर्च किया जाएगा और किस तरह किया जाएगा।  जनता को आवश्यक सूचनाएँ देने और समाज के हित के विज्ञापन देने पर शायद किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी।

लेकिन  जिन विज्ञापनों का उल्लेख यहाँ कमल शुक्ला ने किया है वे पूरी तरह से अनावश्यक हैं और इस से जनता के धन का दुरुपयोग होता है।  कोई राजनैतिक दल भी इस पर कोई आपत्ति नहीं उठाता क्यों कि इस सुविधा का लाभ वह भी लेना चाहता है।  वास्तव में विज्ञापनों पर सरकार और स्वायत्तशासी संस्थाओं और सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों के लिए एक आचार संहिता होना चाहिए जिस के विपरीत कोई भी विज्ञापन नहीं दिया जा सके।  इस आचार संहिता का उल्लंघन अपराध घोषित होना चाहिए।   जिस प्रकार की जागरूकता यहां इस प्रश्न को रख कर कमल जी शुक्ला ने दिखाई है वैसी जागरूकता नागरिकों में हो और वे सरकार पर दबाव बनाएँ तो ऐसी आचार संहिता और कानून बनाया जा सकता है जिस से जनता के धन का दुरुपयोग रोका जा सके।  हाँ इस संबंध में सरकार को निर्देशित करने के लिए किसी भी उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्ययालय के समक्ष किसी संस्था या व्यक्ति की ओर से रिट याचिका प्रस्तुत की जा सकती है।

तीसरा प्रश्न वकीलों के व्यवहार से संबद्ध है।  यहाँ कमल जी शुक्ला ने यह स्पष्ट नहीं किया कि काँकेर के वकीलों ने किस कारण से जिला उपभोक्ता फोरम का बहिष्कार किया हुआ है?  जब संपूर्ण व्यवस्था में भ्रष्टाचार व्याप्त हो।  बहुधा निर्णय राजनैतिक और व्यक्तिगत स्वार्थो से लिए जाते हों।  अदालतों की कमर काम के बोझे से टूट रही हो।  न्यायार्थियों को समय पर न्याय नहीं मिल रहा हो।  वहाँ वकीलों को भी काम करने में अनेक प्रकार की परेशानियाँ आती हैं।  उन क

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