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क्या शिर्के साहब को तलाक लेना चाहिए?

  मेरे एक पाठक विजय शिर्के साहब ने अपनी समस्या मुझे भेजी है ______

मैं एक सरकारी कर्मचारी हूँ।  मेरी शादी को पाँच वर्ष हो चुके है, किन्तु आज तक चैन से नहीं रहा, क्यों कि पत्नी हमेशा झगड़ा करती रहती है और कहती है पुलिस में जाऊंगी।  वह नहीं चाहती कि मेरी माँ और कॉलेज में पढ़ रहा छोटा भाई मेरे साथ रहे।  मैं ने उन दोनों को दो साल से घर भेज दिया है फिर भी नहीं मानती और कहती है कि मेरे रिश्तेवाले भी वहाँ नहीं आना चाहिए।  मेरे दो वर्ष का बेटा भी है।  मेरी पत्नी एक बार 498-ए का मुकदमा भी कर चुकी है जिसे उस ने बाद में वापस ले लिया।  अभी कुछ दिन पहले वह सारा सामान और बेटे को ले कर यह कहते हुए मायके चली गई है कि हमारा आपसी सहमति से तलाक हो गया है।  मैं अपनी पत्नी को तलाक देना चाहता हूँ।  मुझे आप से सहायता चाहिए।
मेरे प्रश्न निम्न हैं-
1- क्या आपसी सहमति से तलाक मान्य है ?  2- मेरा बेटा मुझे कब मिलेगा ?  3- क्या मुझे तलाक के लिये कोर्ट जाना चाहिये ?  4- भरण-पोषण का नियम क्या है ?  5- आसानी से तलाक कैसे मिलेगा?

 उत्तर

शिर्के साहब ने मुझे दो बार मेल किया और अपनी समस्या बताई।  लेकिन लगता है कि वे समस्या को न तो सही तरीके से समझ पाए हैं और न ही बता पा रहे हैं।  एक तरफ तो वे यह पूछते हैं कि क्या मुझे तलाक के लिये कोर्ट जाना चाहिये? दूसरी ओर कह रहे हैं कि पत्नी यह कहते हुए मायके चली गई है कि हमारा आपसी सहमति से तलाक हो गया है।  मुझे लगता है कि शिर्के साहब ने किसी से भी कानूनी परामर्श किया ही नहीं है, अन्यथा वे इतना असमंजस भरा सवाल नहीं पूछते। 

वास्तव में शिर्के साहब की समस्या भारतीय संयुक्त परिवार के टूट की अन्तिम कगार पर पहुँच जाने की है।  हमारे यहाँ एक पिता की संतानों के परिवारों एक संयुक्त परिवार के रूप में तब तक रहने की जरूरत होती है, जब तक कि एक माता-पिता की सब संताने अपने पैरों पर खडी़ हो कर अपना परिवार चलाने योग्य नहीं हो जाती, और माता-पिता के सामाजिक दायित्व पूर्ण नहीं हो जाते हैं।  लेकिन आज जो एकल परिवार अस्तित्व में आया है उस में इस संयुक्त परिवार का कोई स्थान नहीं रह गया है।  पुत्र अपने पिता के परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारी का अहसास करता है।  लेकिन उस की पत्नी में यह अहसास रत्ती भर को भी नहीं रह गया है।  वह अपना खुद का परिवार बनाना चाहती है।  जितनी उन की आय है वह सब अपने स्वयं पत्नी और बच्चों पर ही खर्च करना चाहती है।  एक माँ अपने बच्चों को अधिक से अधिक देना चाहती है, लेकिन आज के मध्य और निम्नमध्य वर्ग की आय जिस तरह की है उस में यह सब संभव नहीं है।  पत्नी अपने और बच्चों के अतिरिक्त सब दायित्वों से पति को मुक्त होने को प्रेरित करती है, न होने पर वह तरह-तरह से दबाव बनाती है जो आपस में झगड़े का कारण बनता है।  यहाँ शिर्के साहब पर एक बार 498-ए की शिकायत कर के वापस ले लेना दबाव की इसी नीति का परिणाम है।  पत्नी अपने पति की सीमित आय के लिए पति को ही दोष देती है, वह यह नहीं देख पाती कि वर्तमान सामाजिक आर्थिक परिवेश में जीवनयापन का जो साधन मिल गया है वह भी कठिनाई  से मिला है। यह एक सामाजिक समस्या है और कानूनी भी।  वर्तमान कानून इस समस्या को ध्यान में रख कर नहीं बनाए गए हैं और अपर्याप्त हैं

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