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स्वतंत्रता का मूल अधिकार (1)

 मूल अधिकारों में स्वतंत्रता के अधिकार का स्थान सर्वोच्च है, क्यों कि इस अधिकार के अभाव में किसी भी मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास संभव नहीं।  भारतीय संविधान में स्वतंत्रता के मूल अधिकार को अनुच्छेद 19 से 22 तक में स्थान दिया गया है जिन में भारत के नागरिकों को विभिन्न प्रकार की स्वतंत्रताओं के अधिकार दिए गए हैं।  अनुच्छेद 19 में छह तरह की स्वतंत्रताओं का उल्लेख है।  यह अनुच्छेद निम्न प्रकार है-

अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त अधिकार केवल नागरिकों को ही प्राप्त हैं।  जो व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं है वह इन अधिकारों का उपयोग नहीं कर सकता।  भारत में पंजीकृत कोई कंपनी भी इन का उपयोग नहीं कर सकती क्यों कि वह नागरिक नहीं हो सकती है।

अनेक बार लोग यह समझ बैठते हैं कि ये नागरिक स्वतंत्रताएँ असीमित हैं।  किसी भी देश के नागरिकों के अधिकार असीमित नहीं हो सकते।  एक व्यवस्थित समाज में ही अधिकारों का अस्तित्व बना रह सकता है।  इस कारण से नागरिकों को ऐसे अधिकार प्रदान नहीं किए जा सकते जो पूरे समाज के लिए अहितकर सिद्ध हो जाएँ।  यदि इन अधिकारों पर कोई निर्बंधन या नियंत्रण (Restriction) न रहे तो उस का परिणाम समाज के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है।  स्वतंत्रता का अस्तित्व  तब तक ही संभव हो सकता है जब तक कि वे कानून द्वारा सयंमित रहें।  कोई भी नागरिक को यह अधिकार नहीं है कि वह अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए किसी दूसरे व्यक्ति के अधिकारों को आघात नहीं पहुँचाता है।  सर्वोच्च न्यायालय ने ए.के.गोपालन ( एआईआर 1951 सुप्रीम कोर्ट) के मामले में कहा कि “मनुष्य एक विचारशील प्राणी होने के कारण बहुत सी वस्तुओं की इच्छा रखता है,  लेकिन एक नागरिक समाज में उसे अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करना पड़ता है और दूसरों का आदर करना पड़ता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए अनुच्छेद 19 के खंड (2) से (6) के अधीन राज्य को ‘लोकहित’ में आवश्यक किंतु युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाने की शक्ति प्रदान की गई है।”  इस तरह इन निर्बंधनों को लगाने की दो शर्तें हैं। पहली तो यह कि वे केवल अनुच्छेद 19 के खंड (2) से (6) में वर्णित आधारों पर ही लगाई जा सकती हैं और दूसरा यह कि उन का युक्तियुक्त होना आवश्यक है।

अगले आलेख में हम देखेंगे कि ये युक्तियुक्त निर्बंधन क्या हैं?…………….(क्रमशः)

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