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जीवन का एक दिन और जाया हुआ

आज डायरी में कुल ग्यारह मुकदमे ही चढ़े थे।  लेकिन अदालत निकलने के पहले जब फाइलें बांधी जाने लगीं तो एक बस्ते में उन्हें फिट करने में कठिनाई महसूस हुई। एक-दो फाइलें  बहुत ही मोटी थी।  तय किया कि दो बस्ते बांध लिए जाएँ। मुंशी को जयपुर भेजा हुआ था। हम ने बस्ते कार में लादे और अदालत के लिए निकल लिए।  अदालत पहुँच कर सब से पहले श्रम न्यायालय पहुँचे, जहाँ पाँच मुकदमे होने थे जिन में से दो 1984 और 1986 से लंबित थे। 1984 वाला मुकदमा दो श्रमिकों की सेवा समाप्ति से संबंधित था और 1995 से इस में अन्तिम बहस होनी थी। चौदह वर्षों के इस अंतराल में सात जज इस अदालत में आए और चले गए। इन में से पाँच ने अन्तिम बहस सुन ली लेकिन फैसला लिखाते लिखाते उन का तबादला हो गया। अब आठवें जज को यह मुकदमा सुनना है।  लेकिन सुनवाई अभी तक शुरू भी नहीं हो सकी है।  एक बार बहस करने के उपरांत इस में निर्णय हो जाना चाहिए था। लेकिन पाँच बार की गई बहस बेकार चली गई। सही मायने में मेरी  विपक्षी के वकील वह मेहनत बेगार हो गई और पाँच बार बहस सुनने में जाया हुआ अदालत का समय वह भी बट्टे खाते गया। अब छठी बार बहस करनी है।  
1986 में आरंभ हुआ दूसरे मुकदमे में एक कर्मचारी को आरोप पत्र दे कर जाँच कर के नौकरी से निकाला गया था।  इस मुकदमे में उस के विरुद्ध लगाए गए आरोपों की जाँच विवादित है और यह तय होना कि वह उचित थी या नहीं। इस मुकदमे में बहस हो ही नहीं पा रही है। किसी न किसी तरह इस में तारीख बदल जाती है।  मैं इस मुकदमे में अपनी बहस लिख कर अदालत को दे चुका हूँ और यह कह चुका हूँ कि प्रतिपक्षी की बहस सुन कर आदेश दे दिया जाए। क्यों कि यदि जाँच अनुचित भी पायी गई तो भी नियोजक को अदालत में आरोपों को साबित करने का अवसर मिलेगा। उस में न जाने कितना समय लगेगा।  इन के अतिरिक्त एक मुकदमे में नियोजक के गवाह का बयान होना है। यह गवाह एक वकील साहब हैं जो पिछले पाँच वर्षों में गवाही के लिए हाजिर नहीं हो सके हैं।  एक मुकदमे में कर्मचारी को नौकरी पर लिए जाने का निर्णय हुए दस वर्ष गुजर चुके हैं और उसे नौकरी पर लिया जाना है और पिछला वेतन प्राप्त करना है। पिछला वेतन कितना होगा यही अदालत को तय करना है, गवाहियाँ हो चुकी हैं लेकिन पहले रिट उच्चन्यायालय में लंबित थी। रिट खारिज हो गई तो उस की खंडपीठ में अपील हुई और आठ वर्ष तक लंबित रहने के उपरांत पुनरावलोकन आवेदन प्रस्तुत करने की छूट के साथ वापस ले ली गई। पुनरावलोकन आवेदन प्रस्तुत हुआ या नहीं यह पता नहीं। कोई दस्तावेज उस संबंध में आज तक पेश नहीं हुआ लेकिन अदालत उस के लंबित रहने के आधार पर पेशी बदल देती है। एक और मुकदमे में केवल जवाब पेश करना था।
श्रम न्यायालय पहुँचे तो बिजली कटौती जा रही थी। अदालत में गर्मी के मारे खड़ा रहना कठिन था। लेकिन जज  साहिबा पसीने में तरबतर अदालत में बैठी हुई थी। फाइलें पढ़ने के लिए पर्याप्त रोशनी तक नहीं थी। जज साहिबा कहने लगी। बहस बिजली आए बिना संभव नहीं है। तब तक कुछ गवाह आए हैं उन के बयान ले रही हूँ आप एक बजे के बाद आ जाएँ। डेढ़ बजे से मध्यान्ह अवकाश होना था।  मैं समझ गया कि दो बजे के पहले कुछ नहीं होने का।  कामगार क्षतिपूर्ति अदालत में एक मुकदमे में मृतक के पिता को गवाह लाने थे। लेकिन वहाँ एक आवेदन इस बात का प्रस्तुत हुआ कि गवाह बिना अदालत के नोटिस के आने को तैयार नहीं हैं,. नोटिस जारी किए जाएँ, मुझे इस में कोई आपत्ति नहीं थी। अदालत
नोटिस जारी करने का आदेश दिया और तारीख बदल गई।  अब मैं ने  दीवानी अदालतों का रुख किया।
एक अपील में तारीख इस लिए बदल गई कि वहाँ कुछ पुराने मुकदमों की सुनवाई चल रही थी और हमारी अपील नई थी, उस की बारी आज आने की  स्थिति नहीं थी। किराया अधिकरण के जज अगले दो दिन अवकाश पर थे इस कारण से आज केवल गवाहियाँ ले रहे थे। वहाँ एक अन्तिम बहस का मुकदमे में इसी कारण से पेशी बदल गई। एक अदालत गवाही होनी थी लेकिन जज साहब अवकाश पर थे। गवाह अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर पेशी ले कर जा चुके थे।  एक मुकदमे में प्रतिवादी को समन से बुलाया गया था लेकिन अदालत में काम अधिक होने से समन जारी ही नहीं हो सका था, इस में भी पेशी बदल गई। एक मुकदमा प्रतिवादी के न्यायालय की आज्ञा का उल्लंधन करने का था और प्रतिवादी को जवाब देना था लेकिन किसी वजह से पेश नहीं कर रहा था उस में अदालत ने उसे एक मौका और दे कर पेशी दे दी।  इन कारगुजारियों की सूचनाएँ अपनी डायरी में दर्ज की, तब तक एक बज गया था। मैं फिर श्रम न्यायालय पहुँचा।
जिस मुकदमे में केवल पिछला वेतन संगणित होना था उस में बहस करने को वकील साहब एक तारीख चाह रहे थे केवल इस लिए कि वे उस में अपने पक्षकार से यह पता करना चाहते थे कि उस के पुनरावलोकन आवेदन का उच्चन्यायालय ने क्या किया। बहुत हुज्जत के बाद भी अदालत ने उन्हें एक मौका और दे कर डेढ़ माह की पेशी दे दी। तब तक मध्यान्ह अवकाश हो गया। मेरे साथी कॉफी पीने के  लिए बुलाने को मोबाइल की घंटी बजाने लगे।  जज साहिबा भी भोजन करने अपने अवकाशागार में चली गईँ। 
ढाई बजे मैं वापस अदालत पहुँचा तो 1984 वाले मुकदमे में प्रतिपक्षी के वकील साहब  उन के परिवार में किसी के बीमार हो जाने के कारण अदालत से छूट ले कर प्रस्थान कर चुके थे। उस मुकदमे में पेशी हो गई। 1986 वाले मुकदमे में सामने वाले वकील साहब किसी दूसरी अदालत में व्यस्त हो गए थे, अदालत ने मेरी बहस सुन ली और सामने वाले वकील साहब की बहस सुनने के लिए पन्द्रह दिन आगे की पेशी दे दी।  गवाही देने वाले वकील साहब आज भी नहीं आए, उस में भी पेशी बदली जा चुकी थी। बस एक मुकदमे में जवाब पेश हो गया था। उसे हमारी गवाही के लिए अगली पेशी दे दी गई। 
मै ने अपनी बैठक पर लौट कर दिन भर का लेखा जोखा किया। तो एक मुकदमें में प्रतिपक्षी का जवाब मिलने और एक मुकदमे में अधूरी बहस होने के सिवा कोई काम नहीं हुआ था। समस्या एक ही कि सब अदालतों के पास इतना काम है कि अधिकांश मुकदमों में पेशियाँ  बदलना उन की विवशता है। फिर भी वे अपनी निर्धारित क्षमता से दो गुना काम कर लेती हैं।  मेरी समस्या यह है कि मेरे पास के तीन चौथाई मुकदमो में सामान्यतः पेशियाँ बदल जाती हैं। लेकिन उन में तैयार हो कर जाना पड़ता है। जिस के लिए अपने ऑफिस में कम से कम तीन घंटे रोज तैयारी करनी पड़ती है, यह पता होते हुए कि उन में से तीन चौथाई बेगार में बदल जानी है। 
शाम को वापस लौटने लगे तो कार ने स्टार्ट होने से इन्कार कर दिया। बैटरी बैठ चुकी थी। शायद किसी तरह हेडलाइट जल गई थी और जली रह गई थी।  एक साथी की कार से बैटरी वाले को साथ ला कर एवजी बैटरी लगवाई और अपनी चार्जिंग के लिए डाल कर घऱ लौटे।  शाम काम करने बैठे ही थे कि बिजली चली गई। ठीक करने वाले दस मिनट में आ गए लेकिन कहीं  बिजली के तार आपस में जुड़ जाने  के कारण फ्यूज बार बार उड़ता रहा। मोहल्ले में त
लाश कर उस दोष को ठीक किया। बिजली जाने का समय जाया हुआ। तो देर रात तक बैठ कर अगले दिन की तैयारी करने में तारीख बदल गई। जीवन का एक दिन और जाया हो चुका था।

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