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क्या न्याय व्यवस्था जज पर चप्पल फेंकने वाले को ठीक-ठाक वकील मुहैया करा पाएगी ?

इस सप्ताह के आरंभ से ही व्यस्तता अधिक रही। नतीजा कि तीसरा खंबा पर रविवार के बाद कोई आलेख न आ सका। व्यस्तता तो अभी भी है लेकिन आज मैं खुद को न रोक सका। 


मंगलवार शाम चार बजे मैं एक न्यायालय से काम निपटा दूसरे में जा रहा था। मार्ग में एक वकील साहब ने बताया कि अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट क्रम पाँच में किसी अभियुक्त ने  महिला मजिस्ट्रेट पर चप्पल फैंकी है जो जज तक तो नहीं पहुँची लेकिन रीडर को लगी। यह अभियुक्त को स्मेक रखने और सेवन करने के आरोप में पिछले कुछ दिनों से जेल में था। उस के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया जा रहा था। उसे पुलिस वाले जेल से ले कर आए थे।  इस घटना के उपरांत उसे तुंरत अदालत से हटा कर बाहर लाया गया। अदालत से बाहर निकलते ही सब से पहले पुलिस वालों ने उस के साथ लात घूंसों से पिटाई की और उसे फिर से लॉकअप में ले जा कर बंद कर दिया। अदालत से बाहर लाते ही पुलिस वालों की प्रतिक्रिया थी कि यह लगातार स्मेक का आदि होने और जेल में उसे यह नशा न मिलने के कारण विक्षिप्त हो गया है।

इधर आनन फानन में न्यायिक अधिकारियों के संगठन ने सुरक्षा हेतु गार्ड की व्यवस्था किए जाने की मांग कर दी और अभिभाषक परिषद के अध्यक्ष ने तुरंत कार्यकारिणी की बैठक बुला कर यह निर्णय कर दिया कि इस अभियुक्त की कोई भी वकील पैरवी नहीं करेगा।  दूसरे दिन से एक बात के अलावा सब कुछ सामान्य हो गया।  अब जब भी किसी अभियुक्त को अदालत में लाया जाएगा तो उस के जूते चप्पल अदालत के बाहर ही खुलवा दिए जाएँगे। यह काम पहले भी किया जाता थाष लेकिन इधऱ बहुत समय से जूता-चप्पल फेंकने की कोई घटना घटित नहीं होने के कारण इस एहतियात से मुक्ति प्राप्त कर ली गई थी।

इस घटना ने अनेक प्रश्न खड़े कर दिए हैं।  चप्पल फेंकने वाले अभियुक्त को पहले स्मेकची होने और कई दिनों से स्मेक न मिलने के कारण विक्षिप्त हो जाने का कथन करने वाले पुलिस वालों द्वारा अदालत के बाहर लाते ही उस के साथ मारपीट करने को  क्या उचित माना जा सकता है? यदि कोई अभियुक्त विक्षिप्त है तो क्या उस के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत करना चाहिए? क्यों कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता है कि वह स्वयं अपने बारे में निर्णय करने में सक्षम है उस के विरुद्ध मुकदमा तो चलाया नहीं जा सकता।  यदि वह जेल में विक्षिप्तों जैसी हरकतें कर रहा था तो क्या उस का चिकित्सकीय परीक्षण कराया जा कर पहले उस की चिकित्सा नहीं कराई जानी चाहिए थी? 

एक लंबे समय में ऐसी एक घटना हो जाने से ही तमाम अधिकारियों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई जिस से उन्हों ने अपने लिए गार्डों की मांग कर डाली या इसे सिर्फ अपना रुतबा बढ़ाने की कार्यवाही समझा जाए? वकीलों की परिषद द्वारा किसी भी वकील द्वारा एक विक्षिप्त व्यक्ति की पैरवी करने से क्यों इन्कार कर दिया गया? जब कि उस के विरुद्ध विक्षिप्त रहने तक मुकदमा चलाया जाना ही संभव नहीं है। क्या अदालत उस के विक्षिप्त होने का स्वयं संज्ञान ले कर उस के विरुद्ध चल रहे मुकदमे को उस के स्वस्थ चित्त होने तक निलंबित रखेगी?
वकीलों द्वारा इस विक

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