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जान लें, हाल क्या है? अदालतों का

मेरे नगर में संभाग का श्रम न्यायालय स्थापित है, उसी को औद्योगिक न्यायाधिकरण और केन्द्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण के भी अधिकार हैं। इस तरह एक अदालत में तीन अदालतें हैं। यहाँ लंबित मुकदमों की संख्या 4000 से अधिक है।
न मुकदमों में तकरीबन तीन चौथाई मुकदमे निर्देश प्रकरण से उत्पन्न औद्योगिक विवाद हैं और एक चौथाई में अन्य मुकदमे। उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कोटा के मुताबिक एक निर्देश प्रकरण का निर्णय करने के लिए एक न्यायाधीश को दो दिन का समय मिलता है। अन्य मुकदमे के निर्णय के लिए आधे दिन का समय मिलता है। इस एक और दिन में न्यायालय को उस मुकदमे में गवाहियाँ लेनी होती हैं, बहस सुननी होती है और निर्णय लिखाना होता है। इस तरह जो कोटा उच्चन्यायालय ने निर्धारित किया हुआ है वह उचित ही है। क्यों कि इस से कम समय में तो सिर्फ घास काटी जा सकती है किसी विवादित मामले में न्यायपूर्ण निर्णय नहीं किया जा सकता।
म तौर पर फिर भी न्यायालय के जज अपने कोटे का 150 प्रतिशत काम कर लेते हैं। इस तरह उन के काम को अच्छा ही नहीं अपितु प्रशंसनीय कहा जा सकता है। यह तब है, जब कि इस अदालत का एक स्टेनो तीस वर्ष पुरानी टाइप की मशीन पर फैसले टाइप करता है। अभी तक इस अदालत को राजस्थान सरकार ने कंप्यूटर नहीं बख्शा है। हालांकि एक अदद कंप्यूटर की उपलब्धता निर्णयों की संख्या में वृद्धि कर सकती है जिस के लिए अदालत राज्य सरकार को पिछले दस वर्षों से कहती आ रही है।
म गणित करें तो एक वर्ष में 104 साप्ताहिक अवकाश के होते हैं लगभग 20 अन्य अवकाश होते हैं। कुछ दिन जज के द्वारा लिए गए अवकाशों के होते हैं। इस तरह किसी भी सूरत में एक वर्ष में 200 दिन से अधिक काम हो सकना संभव नहीं है। साल के इन 200 दिनों में जज यदि केवल निर्देश प्रकरणों का निपटारा करे तो वह 150 प्रतिशत की दर से 150 निर्देश प्रकरण या फिर 600 अन्य प्रकरणों का निर्णय  कर सकता है। लेकिन हम अनुपात में देखें तो एक जज 140 निर्देश प्रकरण और 40 अन्य मुकदमे निर्णीत करता है। इस तरह वर्ष में वह 180 प्रकरणों का निर्णय करता है। यदि हम मान लें कि वह कुछ और तेज गति से काम करे तो वह 200 मुकदमों का निर्णय कर सकता है और एक चौथाई खरपतवार भी काट दे तो 250 मुकदमों का निर्णय कर सकता है,  हालांकि यह असंभव ही लगता है, अदालत में जज की कुर्सी पर बैठ कर खरपतवार को भी कायदे से काटना पड़ता है।
अब यदि किसी तरह एक जज 250 मुकदमों का निर्णय प्रतिवर्ष करे तो वर्तमान में लंबित 4000 मुकदमों के निपटारे में कम से कम 16 वर्ष तो लगेंगे। अर्थात इस से पहले तो किसी मुकदमे का निर्णय होने की कोई संभावना नहीं है।
क बात और प्रतिवर्ष पांच से छह सौ की संख्या में निर्देश प्रकरण व अन्य प्रकरण इस अदालत में नए प्रवेश कर रहे हैं। लेकिन निपटारा केवल 250 मुकदमों का होता है इस तरह प्रतिवर्ष लंबित मुकदमों की संख्या 250 से 350 तक बढ़ जाएगी। लेकिन वास्तविकता यह है कि अत्यंत प्रयत्नों के बाद भी 200 मुकदमों से अधिक का प्रतिवर्ष निपटारा हो पाना संभव नहीं है। यदि यहाँ एक अदालत और स्थापित कर दी जाए तब भी प्रतिवर्ष बढ़ रही लंबित मुकदमों की संख्या पर लगाम लगाई जा सकती है लेकिन उन्हें कम नहीं किया जा सकता। हाँ मुकदमों के जीवन की लंबाई 16 वर्ष से 8 वर्ष तक लायी जा सकती है। यदि ऐसा हो तो भी कुछ त

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