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सब से ऊपर थैली का राज …..

मारा प्यारा भारत एक गणतंत्र है, जिस में जनतंत्र है। कानून का राज है। बड़े लोग संविधान बना गए, वह सब से बड़ा कानून है। कह भी गए कि चाहो तो निर्धारित रीति से उस में संशोधन भी कर सकते हो। सारे कानून संविधान के अधीन हैं। जनता विधान सभा चुनती है, जनता संसद चुनती है। विधान सभा और संसद कानून बनाते हैं। कानून को लागू करने का काम सरकार का है। वह इस के लिए जुदा-जुदा महकमे चलाती है। एक सरकार से काम नहीं चलता इस लिए केन्द्र में अलग और राज्यों में अलग सरकारें हैं। राज्य की सरकार से काम नहीं चलता इस लिए नगर निगम, पालिकाएँ और ग्राम पंचायतें हैं। इन्हें भी कानून बनाने और चलाने का हक कुछ हद तक मिला है।
कानून बहस के बाद बनता है। बहुत बहस होती है। इधर चौथा खंबा भी उस पर बहस करने लगता है। कानून पास होने के पहले बहुत से बवाल भी होते हैं। कुछ कानून ऐसे भी हैं कि जिन पर कोई बवाल नहीं होता। वे चुपचाप पारित हो जाते हैं।  कई सांसदों और विधायकों को तो पता नहीं लगता क्यो कि वे सदन में नहीं होते। कइयों को सदन में होते हुए पता नहीं लगता (शायद तब नींद घेर लेती है)। जो वहाँ जागते होते हैं। कई बार उन को पता नहीं होता कि कानून जो उन्हों ने पारित किया है उस का मतलब क्या है। मतलब बताने का काम ऊँची अदालत का है। उसे इस बात की शक्ति मिली है कि वह उसे पढ़े और सब को बताए कि कानून का मतलब क्या है?
दालत भले ही कानून का मतलब बताती हो, उस की उस के पास शक्ति हो लेकिन उस पर पाबंदी है कि वह खुद पढ़ कर नहीं बता सकती कि कानून का क्या मतलब है? उस के लिए उस के पास किसी न किसी की दरख्वास्त होना चाहिए। चाहे तो सरकार की और चाहे तो किसी और की। दरख्वास्त पर वह वकीलों की बहस सुनती है और अपना फैसला दे देती है। अब कानून को सरकार न माने, या न मनवाए तो अदालत के पास जा सकते हैं। वह सरकार को मानने का हुक्म दे सकती है। सरकार को मानना पड़ता है। इस तरह शासन कानून का चलता है।
तो हमारे भारत देश में जनता का राज है और जनता के लिए है। अदालत इस में एक महत्वपूर्ण कड़ी है। वह न हो तो कानून का कोई भी, कोई मतलब निकाले। चाहे तो सरकार, चाहे तो अफसर, चाहे तो जनता, चाहे तो थैली और चाहे तो गुंडे।  बस अड़चन है तो अदालत है। जब अपने वाला मतलब निकालना हो तो हर कोई चाहता है कि अदालत न हो। जब दूसरा अपने वाला मतलब निकाल रहा हो तो चाहता है कि अदालत हो, वह भी फास्ट ट्रेक हो।
देश की आबादी बढ़ रही है, देश में अदालतें भी बढ़ रही हैं। आबादी बढ़ती है एक की दो, दो की चार, चार की सोलह और सोलह की ……….., लेकिन अदालतें बढ़ती हैं एक की दो, दो की तीन, तीन की चार और चार की …..।
कानून के मुताबिक सब को अदालत में हक के लिए जाने का हक है। जाएँ अदालत में जिन का हक मारा गया हो। अदालत फैसला करेगी। आप के पक्ष में करे तो ठीक, नहीं तो बड़ी अदालत में जाइए। वह भी न करे तो और बड़ी अदालत में जाइए। कभी तो फैसला होगा? कभी तो कानून का राज होगा? आप के जीवन में ही होगा, न होगा तो आप के बेटे के जीवन में होगा, तब भी न हो तो आप के पोते के जीवन में तो होगा ही। बेटा न हो तो आप बन जाइए ‘भोल

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