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मुम्बई में अंग्रेजी बस्ती : भारत में विधि का इतिहास-16

पुर्तगालियों ने मुम्बई को 1534 में गुजरात के शासक सुल्तान बहादुर से प्राप्त किया था। प्रशासनिक व्यवस्था के लिए उन्हों ने यहाँ एक सैन्य अधिकारी को नियुक्त किया जिसे ‘थानेदार’ कहते थे। स्थानीय विवादों के निपटारे के लिए ‘ओविडोर’ नामक न्यायिक प्राधिकारी काम करता था। पुर्तगाली साप्ताहिक लगान वसूल करते थे जिस की कोई दर निर्धारित नहीं थी। लगान अदा न करने पर संबद्ध व्यक्तियों को बंदी बना कर कोड़ों से मारा जाता था। यह व्यवस्था बहुत अमानवीय थी। 1667 तक यही व्यवस्था विद्यमान रही। 1661 में इंग्लेंड के सम्राट चार्ल्स द्वितीय का विवाह पुर्तगाल के सम्राट अल्फोनिसस अष्टम की बहन राजकुमारी कैथरीन से हुआ और मुम्बई बंदरगाह और द्वीप की संपूर्ण प्रभुसत्ता उन्हें दहेज में प्राप्त हुआ। उस मुम्बई का विस्तार सीमित था और जनसंख्या मात्र 10,000 थी। वे उपनिवेश के रूप में यहाँ शासन करना चाहते थे, लेकिन यहाँ की प्रशासनिक कठिनाइयों को देखते हुए 1668 के चार्टर के उपबंधों के अधीन 1669 में  मुम्बई को 10 पाउंड के वार्षिक लगान पर ईस्ट इण्डिया कंपनी को सौंप दिया गया। 1669 में ही सूरत के प्रेसिडेंट ने निदेशक मंडल को सुझाव दिया था कि वाणिज्यिक प्रबंध के साथ अब तलवार भी धारण की जाए। इस से स्पष्ट है कि मुम्बई प्राप्त होते ही क्षेत्रीय प्रभुता का स्वप्न संजोया जाने लगा था। संपूर्ण संप्रभुता प्राप्त हो जाने के कारण मुम्बई का तेजी से विकास हुआ और कंपनी का मुख्यालय सूरत के स्थान पर मुम्बई आ गया।
न्याय प्रशासन
संपूर्ण संप्रभुता होने पर भी आरंभ में अंग्रेजों ने मुम्बई में गैर अंग्रेज नागरिकों पर पुर्तगाली विधि से ही शासन जारी रखा और धीरे-धीरे अंग्रेजी विधि का प्रवर्तन करना आरंभ किया। 1668 के चार्टर द्वारा सम्राट ने कम्पनी को मुम्बई द्वीप के सामान्य प्रशासन और कानून बनाने के लिए प्राधिकार दिया था। जिस के अंतर्गत कम्पनी ने अध्यादेशों, विनियमों आदि का सृजन किया। कानून की अवज्ञा करने वालों के लिए मृत्यु दंड, कारावास और अर्थदंड के प्रवर्तन के अधिकार भी कंपनी को ही दिए गए थे। लेकिन यह स्पष्ट निर्देश था कि कानून और दंड इंग्लेंड के कानून के प्रतिकूल नहीं हों और उन का उपयोग युक्तिसंगत रीति से किया जाए।
न निर्देशों के अनुसरण में सूरत के प्रेसिडेंट जार्ज ऑक्सन्डन ने डिप्टी गवर्नर और परिषद का गठन किया। इस पर कंपनी के सालिसिटर जनरल पपीलन ने कानूनों का प्रारूप तैयार किया और संचालक मंडल की द्वारा उन्हें संशोधनों के बाद अंतिम कर दिया। 1669 में तैयार कानूनों के प्रारूप को सूरत का प्रेसिडेंट और मुम्बई का द्वितीय गवर्नर जेरॉल्ड आंगियार 1670 में मुम्बई लाया और उस ने इन का तटीय मराठी भाषा में अनुवाद कराया फरवरी 1970 में इन का प्रकाशन किया। यह कंपनी का पहला प्रभावी विधायी कार्य था। आंगियार उदार हृदय था और निष्पक्ष न्याय में विश्वास करता था। उस के कठिन परिश्रम से मुम्बई में आरंभिक न्याय व्यवस्था 1970 में स्थापित हुई।
न कानूनों में अंग्रेजी विधि के अनुसार धार्मिक अनुपालन और सामुहिक उपासना का प्रावधान था किन्तु मुम्बई के स्थानीय निवासियों को उन के धर्म और स्थानीय रिवाजों के अनुसार धर्मपालन की स्वतंत्रता प्रदान की गई थी। किसी भी व्यक्ति के धर्म का अवमान या उस के प्रति अभद्र भाषा का प्रयोग करने पर अर्थदंड और कारावास की व्यवस्था की गई थी। न्याय प्रशासन को निष्पक्ष बनाने मृत्यु दंड के मा
मलों में 12 जूरियों द्वारा विचारण का उपबंध किया गया था। गवर्नर और परिषद द्वारा नियुक्त न्यायाधीश से युक्त ‘कोर्ट ऑफ जुडिकेचर’ (उच्चन्यायालय) की स्थापना की व्यवस्था की गई थी। इस न्यायालय के निर्णय की अपील सपरिषद गवर्नर के न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जा सकती थी। शांति और सुरक्षा के लिए सिपाहियों और शांति न्यायाधीशों की नियुक्ति की भी व्यवस्था थी।  मकानों और भूमि के क्रय-विक्रय के दस्तावेजों के लिए पंजीकरण का उपबंध किया गया था। प्रमुख अपराधों के लिए दंड निश्चित किए गए थे। लूट आदि के मामलों में अंग्रेजी विधि की कठोरता को कम कर दिया गया था। सेनिक अनुशासन और विद्रोह पर अंकुश लगाने के लिए भी समुचित उपबंध किए गए थे। राजद्रोह और सैन्य विद्रोह के लिए मृत्युदंड निर्धारित किया गया था।
स तरह विनिर्दिष्ट न्याय व्यवस्था सरल और व्यवहारिक थी और दो प्रकार के न्यायालय स्थापित किए गए थे।
चित्र- जेरॉल्ड आंगियार द्वारा निर्मित माहीम फोर्ट
(जारी)
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