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मुगल कालीन सरकार और परगना न्यायालय : भारत में विधि का इतिहास-9

सरकार (जिला)  न्यायालय 

मुगल काल में जिला न्यायालयों को सरकार कहा जाता था और उपजिलों को परगना। इसी आधार पर इन्हें सरकार न्यायालय और परगना न्यायालय कहा जाता था।
दालत-ए-क़ाजी-ए-सरकार का प्रधान क़ाजी-ए-सरकार हुआ करता था। यह सरकार (जिला) का दीवानी, फौजदारी और धार्मिक मामलों का मुख्य न्यायालय होता था। इस न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध क़ाजी-ए-सूबा की अदालत में अपील की जा सकती थी। इस न्यायालय में मीर, आदिल. दरोगा-ए-अदालत, मुफ्ती, पण्डित, महतसिब, वकील-ए-सरकार पेशकार, कातिब, साहबुल मजलिस, अमीन, नाजिर, दफ्तरी, मुचलका नवीस आदि कर्मचारी हुआ करते थे।
दालत-ए-फौजदार के अधीन अपकृत्य, दंगा, राज्य की सुरक्षा आदि के अपराधिक मामले आते थे। इस का मुखिया फौजदार होता था।  इस न्यायालय के निर्णय की अपील निजाम-ए-सूबा के न्यायालय में की जा सकती थी।
कोतवाली का मुखिया कोतवाल कहलाता था। जो जनता की सुरक्षा तथा शान्ति व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होता था। उस का काम अपराधियों का पता लगाना, दण्ड देना, अपराधों को रोकना लोगों के जीवन व माल की रक्षा करना थे। वह आरोपों का अन्वेषण करने के बाद काजी के हस्तारित आदेशों के आधीन अपराधियों को बंदी बनाता था और विचारण के लिए निश्चित दिन व समय पर अदालत के समक्ष प्रस्तुत करता था। कोतवाल को कुछ निश्चित मामलों में दंड देने का भी अधिकार था। उस के निर्णय के विरुद्ध क़ाजी-ए-सरकार के न्यायालय में अपील की जा सकती थी।
मालगुजारी कचहरी का मुखिया अमालगुजार होता था। यह आरंभिक और अपीली मामले सुन सकता था। इस न्यायालये के निर्णय के खिलाफ दीवान-ए-सूबा की अदालत में अपील की जा सकती थी। यह सरकार के अधीन आने वाले राजस्व के विवाद सुन सकता था।

परगना न्यायालय

दालत-ए-क़ाजी-ए-परगना का मुखिया क़ाजी-ए-परगना हुआ करता था। इस अदालत के अधीन माल और फौजदारी के आरंभिक मामले आते थे और इस की अपील क़ाजी-ए-सरकार के न्यायालय में की जा सकती थी।
दालत-ए-फौजदार-ए-परगना के न्यायालय का मुखिया फौजदार-ए-परगना होता था। और उसे छोटे-मोटे फौजदारी मामले सुनने का अधिकार था। इस अदालत के फैसलों के खिलाफ क़ाजी-ए-सरकार की अदालत में अपील की जा सकती थी।

ग्राम न्यायालय

मुगल काल में भारत के गांवों में प्राचीन काल से चली आर रही पंचायत प्रणाली को ही स्वीकार किया गया था। पंचायत के लिए ग्राम वासियों द्वारा ही पाँच पंच चुने जाते थे। इन का प्रधान मुखिया या सरपंच कहलाता था। ग्राम स्तर के सिविल और अपराधिक मामलों की दोनों पक्षों की सुनवाई करने के उपरांत परंपरागत विधि के आधार पर निर्णय किए जाते थे। पंचायत के निर्णयों के विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती थी।
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