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जमीन केवल विक्रय पत्र के पंजीयन के माध्यम से ही खरीदी जा सकती है

  बेरोजगार भाई ने पूछा है-

वकील साब!
प तो स्टाम्प पेपर पर एग्रीमेंट के आधार पर जमीन खरीदने की राजस्थान के नियमों के हिसाब से जानकारी दे दो।

  उत्तर–

बेरोजगार भाई !

प्रश्न आप का उत्तम है। लोग समझते हैं कि स्टाम्प पेपर पर एग्रीमेंट (अनुबंध) कर लिया और माल अपना हो गया। लेकिन ऐसा नहीं है। कानून कहता है कि यदि किसी स्थावर/जंगम संपत्ति का स्थानान्तरण होना है और उस का मूल्य सौ रुपए से अधिक का है तो विक्रयपत्र का उपपंजीयक के कार्यालय में पंजीकरण होना आवश्यक है।  जमीन चाहे वह खेती की हो या आबादी क्षेत्र की एक जंगम संपत्ति है। आज देश के किसी भी हिस्से में किसी भी भूमि के छोटे से छोटे खंड की भी कीमत सौ रुपए से अधिक की ही है। ऐसी हालत में यह स्पष्ट है कि किसी भी भूमि के स्वामित्व का स्थानांतरण किसी एग्रीमेंट से संभव नहीं है। जब तक भूमि के हस्तांतरण का विलेख चाहे वह विक्रयपत्र हो, दान पत्र हो, बंटवारा हो, मुक्ति पत्र (रिलीज डीड) हो या अन्य किसी प्रकार का हस्तांतरण उस का उप पंजीयक के कार्यालय में पंजीकरण होना आवश्यक है।
देश में अनेक कारणों से भूमि हस्तांतरण तुरंत संभव नहीं होता है। जब कि सौदे या सहमतियाँ होती रहती हैं। जैसे लीज होल्ड (पट्टे) का भूखंड है वह पट्टाकर्ता की सहमति के उपरांत ही हस्तांतरित हो सकता है। वैसी स्थिति में यदि सौदा हो जाता है तो उस सौदे की शर्तें एक स्टाम्प पेपर पर, जो कि राजस्थान में 100 रुपए का होना अनिवार्य है अनुबंध लिखा जा कर नोटेरी से तस्दीक करवा लिया जाता है और अक्सर कीमत की 90-95 प्रतिशत राशि का भुगतान कर कब्जा प्राप्त कर लिया जाता है। केवल विक्रयपत्र का निष्पादन और पंजीककरण शेष रह जाता है। इस अनुबंध का महत्व यह है कि अनुबंध की शर्तें पूरी हो जाने पर भी यदि विक्रेता विक्रयपत्र का पंजीकरण न कराए तो उस के विरुद्ध दीवानी अदालत में वाद प्रस्तुत कर विक्रयपत्र पंजीकृत करवाया जा सकता है। यहाँ कब्जे का हस्तांतरण हो जाता है लेकिन स्वामित्व का नहीं, इस कारण से खरीदी गई भूमि के संबंध में सभी कार्यवाहियाँ करने का अधिकार विक्रेता जो कि वास्तविक स्वामी है को ही बना रहता है। मान लो उस भूमि पर पानी का कनेक्शन लेना है तो खरीददार तो जब तक उस के नाम विक्रयपत्र पंजीकृत न हो आवेदन नहीं कर सकता। इस कारण से विक्रेता और भूस्वामी से अनुबंध के साथ ही खरीदी गई भूमि का मुख्तारनामा (पावर ऑफ अटॉर्नी) भी लिखा ली जाती है जिस से बेचे गए भूखंड के संबंध में कोई भी काम करने का अधिकार खरीददार को प्राप्त हो जाता है जो कि विक्रय पत्र के निष्पादित होने तक अथवा विक्रेता के जीवन काल तक बना रहता है। 
लेकिन यदि विक्रेता की अनुबंध के तुरंत बाद ही मृत्यु हो जाए तो यह मुख्तार नामा बेकार हो जाता है। वैसी अवस्था में खरीददार फिर संकट में हो सकता है। इस के निवारण के लिए खरीददार विक्रेता से खरीदे गए भूखंड की वसीयत भी अपने नाम निष्पादित करवा लेता है। इस तरह विक्रेता के देहांत के साथ ही खरीददार वसीयत के आधार पर बेचे गए भूखंड का स्वामी हो जाता है। यहाँ तक कि विक्रय पत्र के निष्पादन और पंजीकरण की भी आवश्यकता नहीं रह जाती है। 
स वैकल्पिक व्यवस्था में अनेक छिद्र भी हैं। सब से बड़ा तो यही कि विक्रेता मुख्तार नामा और वसीयत दोनों को ही किसी भी समय निरस्त कर सकता है। वैसी अवस्था में खरीददार के पास अनुबंध के आधार पर  विक्रयपत्र का पंजीकरण कराने का विशिष्ट अनुतोष प्राप्त करने के लिए अदालत के समक्ष वाद प्रस्तुत करने के सिवाय कोई उपाय शेष नहीं रह जाता है। एक दीवानी दावे के निर्णय में आज की स्थिति में अदालत कई वर्ष का समय ले सकती है। इस कारण से किसी भी भूमि को खरीदने का एक मात्र उपाय यही है कि खऱीददार जितनी जल्दी हो सके विक्रयपत्र का पंजीयन करवा ले। इस तरह स्टांप पेपर पर जमीन खरीदने का कोई उपाय नहीं है। जमीन केवल विक्रय पत्र के पंजीयन के माध्यम से ही खरीदी जा सकती है। 
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