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दांडिक न्याय प्रणाली में लॉर्ड हेस्टिंग्स के सुधार : भारत में विधि का इतिहास-58

लॉर्ड हेस्टिंग्स ने प्रारंभ में दांडिक न्याय प्रणाली को छेड़ने के स्थान पर उस का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया। सब से पहले उस का ध्यान इस बात पर गया कि सर्किट न्यायालय द्वारा विचारण के लिए अभियुक्तों को एक लंबी अवधि तक जेल में बंदी रहते हुए प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। यह स्थिति अत्यन्त बुरी थी। उस ने इस में सुधार के लिए पहला प्रयास 1818 में किया। 12वें विनियम द्वारा उस ने मजिस्ट्रेटों को लघुवादों में दो वर्ष तक के कारावास तथा 30 कोड़ों तक का दंड देने का प्राधिकार प्रदान किया। यदि किसी मामले में दंड छह माह के कारावास से अधिक होता था तो प्रांतीय न्यायालय को ऐसे मामले में संशोधन का अधिकार दे दिया गया था। इस से अधिक दंड वाले मामलों में सर्किट न्यायालयों को ही विचारण का अधिकार था। इस से बहुत से छोटे मामलों का निर्णय शीघ्र होने लगा और अभियुक्तों को लंबे समय तक विचारण बंदीकरण से मुक्ति प्राप्त हुई। 
स पहल का अच्छा असर देखते हुए लॉर्ड हेस्टिंग्स ने 1821 में व्यापक सुधार किए। उस ने 1821 के तीसरे विनियम के द्वारा दांडिक न्याय प्रणाली में भारतियों को नियुक्ति देने का प्रावधान करते हुए उन्हें सामान्य प्रकृति के अपराधों का विचारण करने की जिम्मेदारी सोंपी। वे अधिकतम 15 दिन के कारावास और 50 रुपए तक जुर्माने की सजा  दे सकते थे। इस तरह हेस्टिंग्स ने पहली बार ब्रिटिश भारत में भारतियों को दांडिक न्याय प्रणाली में स्थान दिया।
लॉर्ड कॉर्नवलिस ने कलेक्टरों को मजिस्ट्रेटो के कार्य से मुक्त कर न्यायिक कार्यों का कार्यपालिका से प्रथक्करण किया था। लेकिन हेस्टिंग्स ने पुनः कलेक्टरों को मजिस्ट्रेट के अधिकार प्रदान कर दिए। राजस्व का कार्य करने वाले अन्य अधिकारियों को भी मजिस्ट्रेट के अधिकार दिए गए। इस तरह उस ने न्यायिक सुधारों से एक कदम पीछे हटाया। उस ने दांडिक न्याय प्रणाली में विलम्ब को समाप्त करने के लिए गवर्नर जनरल को सहायक मजिस्ट्रेटों को विशेष शक्तियाँ प्रदान करने का अधिकृत कर दिया। इन शक्तियों के अंतर्गत मजिस्ट्रेट उन्हें निर्दिष्ट किए गए दांडिक मामलों में विचारण कर दंड दे सकते थे।
जिस्ट्रेटों और सहायक मजिस्ट्रेटों के निर्णयों के विरुद्ध सर्किट न्यायालयों में अपील की जा सकती थी। सर्किट न्यायालय मजिस्ट्रेट की अधिकारिता में आने वाले विनिर्दिष्ट मामलों का विचारण कर सकता था। सर्किट न्यायालय सदर निजामत अदालत की पुष्टि के उपरांत मृत्युदंड को निष्पादित कर सकता था। हेस्टिंस ने उस समय सर्वोच्च न्यायालय के रूप में कार्य कर रहे सदर दीवानी न्यायालय की अधिकारिता में वृद्धि कर के उस के न्यायाधीशों की अर्हता भी निर्धारित कर दी थी। प्रान्तीय (सर्किट) न्यायालय में तीन वर्ष कार्य करने अथवा न्यायिक कार्यों का 9 वर्ष का अनुभव रखने वाले व्यक्ति को ही सदर निजामत अदालत में न्यायाधीश नियुक्त किया जा सकता था।
हेस्टिंग्स ने उस समय प्रचलित मुस्लिम दांडिक विधि में 1819 में बहुत से परिवर्तन किए थे। बलात्संग, वध, चोरी, वेश्यावृत्ति के दुष्प्रेरण आदि को दंडनीय अपराध बनाया गया था। अपराधी के सम्यक व्यवहार करने पर उसे जमानत पर छोड़े जाने का प्रावधान किया गया था। सुरक्षात्मक उपाय के लिए किसी भी व्यक्ति को बंदी बनाने का अधिकार दिया गया था। इस तरह उस ने प्रक्रिया को सुनिश्चित बनाने के उपयोगी सुधार किए थे।
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