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स्वअर्जित संपत्ति और बंटवारे का अधिकार

  *  दीपेश सिंह ने पूछा है —

सर!

मेरे मम्मी-पापा अलग अलग रहते हैं। मेरी मम्मी-पापा से अलग रहने का फैसला कर चुकी है और अब वह बंटवारा चाहती है। जहाँ हमारे पापा रहते हैं वहाँ की जमीन व मकान मेरी दादी के नाम हैं। मेरी दादी सरकारी जूनियर हाई स्कूल में प्रिंसिपल है और उन्हों ने यह संपत्ति अपने स्वयं के कमाए हुए धन से खरीदी है। मेरे बाबा भी सेवा निवृत्त प्रखंड विकास अधिकारी हैं लेकिन उन के नाम पर गाँव में संपत्ति है। मुझे यह बताने का कष्ट करें कि दादी की संपत्ति पर मेरा या मेरी मम्मी का क्या और कितना अधिकार है? उस संपत्ति में से कानूनी रूप से हमें क्या मिलेगा ?
 
 # उत्तर —
 
 
 दीपेश जी,
मैं ने आप से पूछा था कि आप के दादा जी और दादी जी को संपत्ति कहाँ से प्राप्त हुई है? आप ने उत्तर में यह तो बताया है कि दादी की संपत्ति उन की स्वयं की कमाई से खरीदी हुई है। लेकिन यह नहीं बताया कि दादा जी की संपत्ति उन्हें अपने पिता से प्राप्त हुई है अथवा उन की खुद की कमाई से खरीदी हुई है। 
किसी भी व्यक्ति की खुद के कमाए हुए धन से अर्जित संपत्ति को स्वअर्जित संपत्ति कहते हैं। किसी भी व्यक्ति का अपनी स्वअर्जित सम्पत्ति पर उस के जीवन काल में अधिकार रहता है। वह उस संपत्ति को किसी भी तरह से  हस्तांतरित कर सकता है या अपने पास रख सकता है। वह उस संपत्ति को वसीयत कर के किसी भी व्यक्ति को दे सकता है जो उस व्यक्ति की मृत्यु के बाद वसीयती की हो जाती है, लेकिन में वसीयत करने वाले के जीवन काल का खुद का उस पर अधिकार रहता है। 
लेकिन यदि किसी हिन्दू पुरुष को कोई संपत्ति अपने पिता से उत्तराधिकार में मिली हो तो ऐसी संपत्ति पैतृक संपत्ति होती है। उस संपत्ति में उस की संतानों का अधिकार निहित रहता है। यदि कोई विवाद हो तो उस की संतानें पैतृक संपत्ति में अपना भाग प्राप्त करने के लिए विभाजन का वाद ला सकती हैं।
प की दादी की संपत्ति उन की स्वअर्जित संपत्ति पर उन का अधिकार है। वे अपने जीवन काल में उसे अपने पास रख सकती हैं, उसे बेच सकती हैं, किसी को दान कर सकती हैं, ट्रस्ट कर सकती हैं या किसी भी अन्य रीति से हस्तांतरित कर सकती हैं। अपने जीवन काल के उपरांत वह संपत्ति किस को मिलेगी यह वसीयत कर सकती हैं। उस संपत्ति पर किसी भी अन्य व्यक्ति का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन यदि आप की दादी कोई वसीयत नहीं करती हैं तो उन के देहांत के उपरांत उन की शेष संपत्ति उत्तराधिकार के नियमानुसार उन के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी। उस में उन की संतानें या पूर्व में मृत संतानों की संताने सम्मिलित होंगी। यदि इस तरह आप के पिता को कोई संपत्ति प्राप्त होती है तो उस में आप का भाग होगा जिस के लिए आप अपने पिता से विभाजन की मांग कर सकते हैं। इसी तरह का नियम आप के दादा की स्वअर्जित संपत्ति पर लागू होगा। लेकिन यदि दादा के पास कोई संपत्ति ऐसी है जो उन्हें अपने पिता या पूर्वजों से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है तो ऐसी संपत्ति में आप का भाग है और आप उस संपत्ति के विभाजन की मांग कर सकते हैं। इस तरह हम देखते हैं कि आप को या आप की माता जी
को संपत्ति में बंटवारे का कोई हक नहीं है। 
प की माताजी ने अलग रहने का निर्णय क्यों लिया यह आप ने नहीं बताया है।  लेकिन कोई तो कारण रहा ही होगा। आप की माता जी के पास यदि आप के पिता जी से अलग रहने का कोई कारण है तो आप की माता जी उन से गुजारे भत्ते की मांग कर सकती हैं। जो कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125, या हिन्दू दत्तक एवं भरण पोषण अधिनियम की धारा 18 के अंतर्गत मांगा जा सकता है और न देने पर उसे के लिए अदालत में दावा किया जा सकता है। आप की आयु यदि 18 वर्ष से कम की है तो आप भी इन दोनों कानूनी प्रावधानों के अंतर्गत कार्यवाही कर सकते हैं। लेकिन आप को या आप की माता जी को आप के दादा जी, दादी जी और पिता जी की अर्जित संपत्ति में बंटवारा कराने का अधिकार नहीं है।

 

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