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वकील के मुंशी से सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तक

सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश सरोश होमी कपाड़िया 12 मई को देश के 38वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ले चुके हैं।  वे 28.09.2012 तक इस पद पर बने रहेंगे। न्यायमूर्ति कपाड़िया पहले न्यायाधीश हैं जिन का जन्म आजाद भारत में 29 सितंबर 1947 को एक निर्धन परिवार में हुआ। उन्हों ने अपने जीवन का आरंभ एक वकील के दफ्तर में मुंशी के रूप में की औऱ अपना अध्ययन जारी रखा। विधि स्नातक हो जाने पर उन्हें 10 सितंबर 1974 को एक एडवोकेट के रूप में पंजीकृत किया और उन्हों ने बम्बई उच्च न्यायालय में वकालत प्रारंभ की। 8 अक्टूबर 1991 को वे अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में बम्बई उच्च न्यायालय में नियुक्त हुए। 23 मार्च 1993 को वे स्थाई न्यायाधीश हो गए। 5 अगस्त 2003 को उन्हें उत्तरांचल उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 18.12.2003 को वे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त किए गए।
क गरीब परिवार से निकल कर स्वयं अपने श्रम और लगन के आधार पर एक वकील के मुंशी से भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद पर पहुँचे। देश की जनता के प्रति प्रतिबद्धता को वे अपनी पूंजी मानते हैं। एक ऐसे व्यक्ति से न्याय प्रणाली के सर्वोच्च पद पर पीठासीन होने पर देश आशा कर सकता है कि वे न्याय प्रणाली को चुस्त-दुरुस्त बनाने के लिए काम करेंगे। अपने कार्यकाल में न्यायपालिका की गरिमा को और ऊंचा उठाते हुए न्याय को बिना किसी भेदभाव के आमजन तक पहुँचाने के महत्वपूर्ण कार्य को आगे बढ़ाएंगे। निश्चित ही इस काम में उन्हें न केवल केन्द्रीय सरकार अपितु राज्य सरकारों का सहयोग भी चाहिए। 
तीसरा खंबा देश की न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर पदासीन होने पर उन का स्वागत  और अभिनंदन करता है और आशा करता है कि वे न्याय को देश के हर व्यक्ति तक पहुँचाने के काम को आगे बढ़ाएंगे।
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