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अपराधिक मुकदमे में आप दो साल से अदालत नहीं जा रहे हैं, आप निश्चित रुप से बड़े संकट में हैं

श्री आर.एस. यादव पूछते हैं —
मुझे और मेरे परिवार के खिलाफ मेरे चाचा ने पुलिस में झूठी अर्जी दी, उसके बाद कोर्ट में झूठी शिकायत पेश की। धारा ३२३, ५०६/३४ के अंतर्गत मुकदमा दर्ज हुआ। उसके बाद तारीखों का सिलसिला चालू हुआ। मैं दो साल से कोर्ट नहीं जा रहा हूँ। तारीख का पता नहीं। क्या भविष्य में नुकसान हो सकता है? मैं अपने बचाव के लिए क्या कर सकता हूँ? कृपया मार्गदर्शन करें। आपका आभारी रहूँगा, मै मुंबई में रहता हूँ। 

उत्तर —

यादव जी,
प तारीखों पर अदालत नहीं जा रहे हैं। निश्चित रूप से आप ऐसी मुसीबत में हैं जिस की आप को जानकारी नहीं है। ऐसा अक्सर उन लोगों के साथ होता है जो अदालती प्रक्रिया को नहीं जानते। यूँ तो अदालती प्रक्रिया को कोई नहीं जानता। लेकिन एक बार मुकदमा दर्ज हो जाने पर वकील से प्रक्रिया जान लेना चाहिए। वकील का भी दायित्व होता है कि वह अपने नए मुवक्किल को अदालत में मुकदमे की प्रक्रिया के बारे में जानकारी दे। खैर आप ने यह सवाल पूछ कर अच्छा किया। इस से आप को तो जानकारी मिलेगी ही। तीसरा खंबा के पाठकों को भी यह जानकारी मिल जाएगी। 
प के विरुद्ध धारा 323, 506/34 भा.दं.संहिता का मुकदमा आप के चाचा ने किया है जो अदालत में चल रहा है। धारा 323 में स्वेच्छा से किसी व्यक्ति को शारीरिक चोट पहुँचाने का अपराध वर्णित है जिस में एक वर्ष तक की कैद या एक हजार रुपए जुर्माना, या दोनों दंड एक साथ दिए जा सकते हैं। दूसरा अपराध धारा 506 के अंतर्गत है इस में किसी व्यक्ति के शरीर को या उस की ख्याति को या उस की संपत्ति को नुकसान पहुँचाने की धमकी दे कर उसे आतंकित करने का अपराध वर्णित है इस के लिए दो वर्ष तक की कैद या जुर्माना या दोनों प्रकार का दंड दिया जा सकता है। धारा 34 केवल इस बात के लिए है कि जितने व्यक्तियों पर मुकदमा चलाया गया है उन सब का इस अपराध को करने का सामान्य आशय था। इस कारण से सभी लोग इन अपराधों के दोषी हैं।
प के विरुद्ध लगाए गए आरोप अत्यंत साधारण किस्म के हैं। पहली बार में यदि  ये अपराध साबित भी हो जाएँ तो भी इन में कोई बड़ी सजा नहीं होती। हो सकता है आप को केवल चेतावनी दे कर छोड़ दिया जाए, या फिर मामूली जुर्माने की सजा दी जाए या केवल अच्छे आचरण के लिए बंधपत्र भरवा कर छोड़ दिया जाए। लेकिन इन अपराधों के लिए प्रक्रिया वैसी ही है जैसी अन्य बड़े अपराधों के लिए होती है। आप के पहली बार अदालत में उपस्थित होने पर अदालत ने आप से मुकदमे की हर पेशी पर हाजिर होते रहने के लिए जमानत ली होगी। आप के अदालत में हाजिर न होने पर वह जब्त कर ली गई होगी और आप के नाम गिरफ्तारी या जमानती वारंट जारी कर दिए गए होंगे। कोई भी पुलिस वाला ये वारंट ले कर आप के पास कभी भी आ सकता है। वारंट यदि जमानती हुआ तो वह जमानत भरवा कर ले जाएगा और आप को आगामी पेशी पर उपस्थित होने की तारीख बता जाएगा। आप उस तारीख पर न गए तो फिर आप के नाम गिरफ्तारी वारंट ले कर आ सकता है।
दि आप के विरुद्ध अदालत ने गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिए हैं तो पुलिस आप को कभी भी गिरफ्तार कर अदालत के सामने पेश कर सकती है। वैसी स्थिति में अदालत आप को जेल भेज देगी। यदि आप जमानत के लिए अर्जी देंगे तो अदालत उसे खारिज कर आप को जेल भेज सकती है या फिर जमानत पर छोड़ भी सकती है। यदि आप को अदालत से गैर हाजिर हुए काफी समय हो गया है तो आप को एक-दो सप्ताह जेल में बिताने पड़ सकते हैं।
प को करना यह चाहिए कि अदालत जा कर अपने वकील से मिल कर जमानत की अर्जी देनी चाहिए। जिस में कहा जाएगा कि आप के अदालत में न आ पाने का कारण क्या था। इस पर अदालत आप को जमानत पर छोड़ सकती है। लेकिन आप ने पहले पेश की जमानत का उल्लंघन किया है उस के लिए आप को जुर्माना करेगी वह भी आप को देना होगा। भविष्य में आप हर पेशी पर हाजिर होते रहिए जब तक कि मुकदमा समाप्त नहीं हो जाता है। किसी भी फौजदारी मुकदमे से अभियुक्त को तभी मुक्ति प्राप्त होती है जब वह मुकदमा समाप्त हो जाए।
वैसे आप के विरुद्ध चल रहा यह मुकदमा इस तरह भी समाप्त हो सकता है कि आप अदालत में हाजिर हो कर कह दें कि आप को आप के विरुद्ध लगाए गए आरोप स्वीकार हैं। लोक अदालत की भावना से आप के मुकदमे का फैसला कर दिया जाए। अदालत मामूली जुर्माना कर आप के विरुद्ध मुकदमा समाप्त कर दे। 

प के विरुद्ध चल रहा यह मुकदमा अदालत में केवल निजि रूप से प्रस्तुत की गई शिकायत पर ही चल सकता है और शिकायत कर्ता के अदालत में गैर हाजिर होने से भी खारिज हो सकता है। इस लिए कोई भी कार्यवाही करने के पहले पता कर लें कि आप के विरुद्ध अभी तक मुकदमा चल भी रहा है या नहीं, और चल रहा है तो उस में क्या कार्यवाही अपेक्षित है। यह पता हो जाने के उपरांत आप को यहाँ दी गई सलाह और अपने वकील की सलाह के आधार पर कार्यवाही करनी चाहिए।

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