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वसीयत बाद में प्रकट होती है तो उत्तराधिकार के आधार पर हुआ बंटवारा रद्द हो सकता है

विजयकुमार पूछते हैं — 
मेरे पिता चार भाई और तीन बहने हैं। मेरे दादा की अप्रेल 1988 में मृत्यु हो गई। उन्हों ने 07.03.1987 को एक वसीयत  मेरे पिता जी और उन के तीन भाइयों के नाम लिखी थी। उस वसीयत पर मेरे दादा के हर पृष्ट पर और दो गवाहों के हस्ताक्षर हैं। दस्तावेज लेखक की मोहर और उस के भी हस्ताक्षर हैं औऱ उस के रजिस्टर में वसीयत का अंकन है। मेरे दादा जी की मृत्यु के बाद मेरी दादी ने वसीयत को छुपा कर रख दिया। मरे पिताजी मेरी दादी और चाचाओं से दूर रहते हैं। मेरी दादी ने पटवारखाने में जा कर मेरी तीन बुआओं के नाम जमाबंधी में उन का नाम भी लिखवा दिया था और जमीन उन के नाम भी चढ़ गई है। अब हमारा पारिवारिक विवाद बहुत बढ़ गया है। मेरी तीन बुआओं ने अपने हिस्से की जमीन मरे तीन चाचा के नाम तीन जून 2008 को रिलीज कर दी। मेरे पिताजी ने वसीयत के आधार पर अदालत से यथास्थिति का आदेश करवा लिया। वसीयत पंचायत ने मेरी दादी से किसी तरह ले ली थी। अब दादी की भी मृत्यु हो चुकी है। मेरी तीन बुआएँ और तीन चाचा एक तरफ हैं और पिताजी एक तरफ। वसीयत में मेरे दादा साफ लिख गए हैं कि मेरे मरने के बाद मेरे चार बेटे जमीन के मालिक होंगे। जमीन मेरे दादा जी की खुद की खरीदी हुई है। वसीयत के दोनों गवाहों की मृत्यु हो चुकी है लेकिन वह दस्तावेज लेखक जीवित है। जमीन पर विवाद होने के कारण दं.प्र.संहिता की धारा 145/146 के अंतर्गत भी कार्यवाही हुई है। मुकदमा अदालत में चल रहा है। मेरे चाचा न पंचायत की मानते हैं और  न ही किसी रिश्तेदार की। 
उत्तर
 विजय जी,
प के प्रश्न का उत्तर देने में विलम्ब हुआ। उस का कारण यह रहा कि आप का मुकदमा अदालत में चल रहा है और आप को उस में वकीलों की मदद प्राप्त है। आप का प्रश्न केवल जिज्ञासावश किया हुआ था। इधर तीसरा खंबा पर भी बहुत से प्रश्न पहले से उत्तर की प्रतीक्षा में हैं। आप का दुबारा मेल मिलने पर तुरंत उत्तर दिया जा रहा है।
जिस जमीन  के बारे में आप ने प्रश्न पूछा था वह आप के दादा ने खरीदी थी और उन की स्वयं की अर्जित की हुई संपत्ति थी। इस कारण से उस के संबंध में वे वसीयत कर सकते थे। यदि उन की यह वसीयत अदालत में साबित हो जाती है तो जमीन का बंटवारा उसी वसीयत के आधार पर होगा और आप के पिता जी को चौथाई हिस्सा प्राप्त होगा। चूंकि एक बार राजस्व विभाग के खाते में नामान्तरण हो चुका है इस कारण से वह नामांतरण निरस्त करवा कर नए सिरे से नामांतरण करवाने और भूमि का विभाजन करवा कर विभाजित हिस्से का कब्जा लेने के लिए आप के पिता जी को मुकदमा करना पड़ेगा जो शायद आप के पिता जी कर चुके हैं। 
हाँ तक बात वसीयत की है। यदि यह साबित कर दिया जाए कि गवाहों के हस्ताक्षर उन्हीं व्यक्तियों के हैं तो वसीयत साबित की जा सकती है। इस के लिए आप दस्तावेज लेखक के अलावा ऐसे गवाहों की गवाही न्यायालय के समक्ष करवा सकते हैं जो दोनों गवाहों के हस्ताक्षर पहचानते हों। आप के पिताजी का पक्ष मजबूत है।
यही कारण है कि आप के पिताजी को मुकदमा करते ही यथास्थिति बनाए रखने का आदेश अदालत से प्राप्त हो गया है।
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