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यह खबर कभी अखबार में न छपे कि "एक सिरफिरे ने आत्महत्या की"

श्री रमेश कुमार ‘सिरफिरा’ ने अपनी समस्या तीसरा खंबा पर रखी थी और उन्हें सलाह दी गई थी। सलाह के उपरांत उन्हों ने तीसरा खंबा पर निम्न टिप्पणी की है —
र, मैं सिर्फ लेखन  में अपना उपनाम ‘सिरफिरा’ प्रयोग करता हूँ। मैं छोटे से प्रकाशन परिवार का प्रकाशक, मुद्रक, संपादक और मालिक होने के साथ-साथ फ्री-लांसर प्रेस रिपोर्टर था। मगर पाँच साल पहले घर वालों की मर्जी के बगैर उठाए एक कदम  ने मेरी जिन्दगी और कैरियर सब बरबाद कर दिया। आज हालत ऐसे हैं कि आज मैं एक साँस लेती जिन्दा लाश बन कर रह गया हूँ। आप को बहुत जल्द एक कूरियर आप के पते पर भेजूंगा। आप अपना पता मुझे मेल कर दें। आप ने मुझे बहुत अच्छी सलाह है उस के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद! 
मुझे एक छोटी सी जानकारी और दें कि अगर में अन्वेषण अधिकारी के पास अपनी बात रखने जाता हूँ तो क्या वह मुझे गिरफ्तार नहीं कर लेगा? फिर कैसे मैं अपनी बात बड़े अफसर के पास पहुँचाऊंगा। और मेरी पत्नी ने शादी के बाद मेरे ही पैसों से जो सामान खरीदा था। लेकिन मेरे पास उस के बिल नहीं हैं। और जो मैं ने खरीदे थे उन के बिल मेरे नाम से हैं. उन को भी अपना बताने के साथ साथ बहुत सारा ऐसा सामान जो मैं ने अपने घर में कभी देखा ही नहीं था वह भी अपनी रिपोर्ट में लिखाया है। इस के अलावा दो लाख का सोना, एक लाख नगद, मांगते हुए कहा है कि मेरी माँ पापा ने दिए थे, वो भी चाहिए। एक बार व्यक्तिगत मीटिंग कर के अपने घऱ का सारा सामान जो मैं ने खरीदा था देने के लिए भी मैं ने कह दिया था। मगर सारा सामान लिख कर देने से इन्कार कर दिया।  क्यों कि वह पहले भी काफी सामान ले कर जा चुकी है और उस  को अब इन्कार कर रही है। क्या सामान लिख कर दिए बिना देना उचित होगा? मेरी पत्नी की सूची के अनुसार तो कुछ भी नहीं है फिर अन्वेषण अधिकारी को कौन सा सामान देने जाऊँ? मैं तो पहले भी अपना सारा सामान महिला प्रकोष्ठ पुलिस थाना कीर्ति नगर, दिल्ली देने को तैयार था मगर उन की जिद है कि उन्हें अपनी लिस्ट का सारा सामान चाहिए। जब कि महिला प्रकोष्ट के अन्वेषण अधिकारी ने मेरे सामने ही सेल की एसीपी को कहा था कि लड़की वालों के पास अपनी किसी भी बात को साबित करने के लिए पुख्ता सबूत नहीं हैं। लड़के के पास अपनी बात को सही साबित करने के लिए ठोस सबूत हैं। क्या महिला प्रकोष्ठ की एसीपी फाइल को डीसीपी के पास भेजने के पहले उस पर कोई टिप्पणी नहीं करता है औऱ क्या डीसीपी बिना फाइल की जाँच करे ही मेरे खिलाफ धारा 198ए और 406 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करने का आदेश कर सकता है? मुझे उम्मीद है कि मेरे ससुर ने डीसीपी और एसीपी महिला प्रकोष्ठ पर कोई दबाव डलवाया है क्यों कि वह पेट्रोलियम एवं गैस मिनिस्ट्री (शास्त्री भवन, दिल्ली) में काम  करता है। मैं हर तरफ से निराश हूँ बस आत्महत्या करने के सिवाय कुछ नजर नहीं आता है। लोगों के समाचार प्रकाशित करने वाले एक इन्सान की एक कॉलम में अखबार के किसी कोने में एक खबर आएगी कि “एक सिरफिरे ने आत्महत्या की”

उत्तर —

रमेश कुमार जी,

प की बात से यह समझ आ रहा है कि आप के विरुद्ध जो मुकदमा दर्ज कराया गया है वह पूरी तरह से मिथ्या है। लेकिन पुलिस के सामने इस मुकदमे में दो ही विकल्प हैं कि आप के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत करे या फिर इस तरह की अंतिम रिपोर्ट लगाए कि मुकदमा नहीं बनता है। पुलिस को तो जो करना है वह करेगी। आप का दायित्व यह है कि अन्वेषण अधिकारी के समक्ष अपनी बात और तथ्यो व सबूतों को पेश करना। यदि आप को गिरफ्तारी का भय है तो आप ऐसा करें कि अपना बयान लिखित में तैयार करें और उस के साथ जो भी दस्तावेजी सबूत हों उन की फोटो प्रतियाँ करवा कर संलग्न करें तथा अन्वेषण अधिकारी को रजिस्टर्ड ए.डी. डाक से प्रेषित कर दें। इस आवेदन और दस्तावेजों की प्रतियाँ दो-स्तर ऊँचे पुलिस अधिकारियों को भी रजिस्टर्ड ए.डी. से प्रेषित करवा दें। जिस से आप यह कह सकें कि आप ने सभी तथ्य पुलिस के सामने रख दिए थे। आप को गिरफ्तारी का भय है तो सेशन्स न्यायालय के समक्ष अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर दें। यदि वहाँ से यह आवेदन निरस्त हो जाए तो उच्चन्यायालय के समक्ष यह आवेदन प्रस्तुत करें। इस के लिए आप विधिक सेवा प्राधिकरण से वकील उपलब्ध कराने के लिए प्रार्थना कर सकते हैं। यदि आप नियमानुसार इस के अधिकारी होंगे तो यह सहायता आप को मिल जाएगी। अन्यथा आप को अपना वकील स्वयं करना होगा।

दि आप स्वयं को निरपराध समझते हैं तो गिरफ्तारी से क्यों डरते हैं? यदि गिरफ्तारी हो भी गई तो आप को जब अदालत में पेश किया जाए तो आप अदालत से कह सकते हैं कि आप को सरकारी खर्च पर वकील दिलाया जाए। वकील आप को मिल जाएगा जो आप की जमानत करवा देगा। आप जमानत पर छूटने के बाद इस लड़ाई को लड़ सकते हैं। क्यों कि आप सच्चे हैं, तो आप इस में जीतेंगे। एक पत्रकार लेखक हो कर ऐसी निराशावादी बातें करना शोभा नहीं देता। इस तरह आत्महत्या करना तो जुल्म को प्रोत्साहन देना है। आप को ऐसा बिलकुल नहीं करना है। जो भी परिस्थितियाँ हों आप को उन का मुकाबला करना है। अंतिम जीत सत्य की होती है, इस बात पर विश्वास रखें और आगे बढ़ें। मुझे विश्वास है कि आप को जल्दी ही जीत और राहत मिलेगी। मैं यह खबर अखबार में देखना चाहता हूँ कि “रमेश कुमार सिरफिरा ने संघर्ष किया और जीत हासिल की”।

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