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थैंक्यू सुप्रीमकोर्ट – थैंक्यू पीयूसीएल, सरकार के पास जमा 604.28 में से 426.28 गेहूँ को रखने के लिए स्थान नहीं है

सामंती युग में राजा की उत्पत्ति हुई थी। तब शासन के सभी दायित्व और अधिकार राजा में निहित हुआ करते थे। जैसे जैसे राज्य विशाल और जटिल होते गए। शासन के विभिन्न अंगों के दायित्वों के लिए विभिन्न संस्थाएँ अस्तित्व में आयीं। जनतंत्र के आगमन पर राजा का न्याय करने वाला अंग कार्यपालिका और विधायिका से पृथक हो कर न्यायपालिका कहलाने लगा और उस का स्वतंत्र अस्तित्व स्थापित होने लगा। भारत में वह अधिकांश मामलों में स्वतंत्र तो है लेकिन स्वायत्त नहीं। यह न्यायपालिका के स्वतंत्र होने का ही प्रमाण है कि जब मानसून के इस मौसम में देश भर से अनाज के खराब होने, भीगने और सड़ने की खबरें आ रही है और सरकारें किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति में है तब सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों को निर्देश दिया है कि अनाज को सड़ने के लिए छोड़ देने के स्थान पर उसे गरीब जनता में बांट दिया जाए। निश्चित ही यह एक ऐतिहासिक निर्णय है और दुनिया भर के न्यायिक इतिहास में इस तरह का अन्य उदाहरण मिलना कठिन है। थैंक्यू सुप्रीम कोर्ट! देश की जनता तुम्हारा धन्यवाद करती है।
में पीयूसीएल (पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज) को भी धन्यवाद करना  चाहिए जिस ने इस मामले को तुंरत सुप्रीमकोर्ट के सामने ले जाकर मामले में हस्तक्षेप करने की गुहार की। थैंक्यू पीयूसीएल हम तुम्हारा भी धन्यवाद करते हैं। 
ह एक विडम्बना ही है कि पिछले तीन वर्षों में सरकारी एजेंसियों ने गेहूँ की जो खरीद की उस से हमारे पास 604.28 लाख टन गेहूँ का भंडारण है। लेकिन हमारी इन एजेंसियों के पास  केवल 178 लाख टन गेहूँ सहेज कर रखने के लिए पर्याप्त स्थान है। निश्चित ही 426 लाख टन से अधिक गेहूँ जो खुले में पड़ा है उसे मानसून के इस मौसम में खराब होने के लिए छोड़ा नहीं जाना चाहिए था। पीयूसीएल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया यह निर्णय जो लाखों टन गेहूँ को आपदा के लिए बचाएगा। सदा-सर्वदा के लिए इतिहास में दर्ज हो गया है।
इस निर्णय के लिए फिर एक बार सुप्रीम कोर्ट और पीयूसीएल को धन्यवाद!
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