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प्रतिरक्षा करने वाले पक्ष को मुकदमे में किए गए विरोधाभासी कथनों का लाभ मिलता है

 
 रमेश जी का तीसरा और अंतिम प्रश्न  इस प्रकार है  ….
 

प्रश्न 3. क्या एक ही महिला द्वारा धारा 498-ए, 406 और 125 के तहत किये मुकद्दमों में कहानी अलग- अलग हो तो क्या इसका फायदा पति को मिल सकता है। जबकि दोनों कहानी पढ़ने से मालूम होता है कि यह दोनों मामले सिर्फ परेशान करने के व लालच के उद्देश्य दर्ज करवाए गए हैं।

 उत्तर – – – 

क ही महिला अपने पति के विरुद्ध क्रूरता के लिए धारा 498-ए भा.दं.संहिता, स्त्री-धन न लौटाने के लिए धारा 406 भा.दं.संहिता में एक मुकदमा करती है और धारा 125 दं.प्र.संहिता का भरण-पोषण के लिए अलग मुकदमा करती है तो निश्चित रूप से दोनों मुकदमों में किए गए अभिवचनों में कोई अंतरविरोध नहीं होना चाहिए। ऐसा तो हो सकता है कि मुकदमे की आवश्यकता के अनुसार एक मुकदमे में कुछ तथ्य प्रस्तुत किए गए हों और दूसरे मुकदमे में कुछ तथ्य और भी प्रस्तुत किए गये हों तथा पहले के कुछ तथ्यों को अभिवचनों में शामिल नहीं किया हो। लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि दोनों मुकदमों में एक दूसरे के विरोधी तथ्य अंकित किए गए हों। यदि दो मुकदमों में एक दूसरे के विपरीत कथन किए गए हों तो निश्चित रूप से यह परिवादी/प्रार्थी के लिए घातक है। स्वयं प्रार्थी/परिवादी के विरोधाभासी अभिकथन ही इस बात को सिद्ध कर देंगे कि जो तथ्य प्रस्तुत किए गए हैं वे बनावटी और मिथ्या हैं।
 स बात को साबित करने के लिए प्रतिरक्षा करने वाले पति को चाहिए कि वह दोनों मुकदमों में किए गए अभिवचनों और बयानों की प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त कर दूसरे मुकदमों में प्रस्तुत करे और जब भी पत्नी बयान देने के लिए आए तो जिरह के दौरान प्रश्न पूछ कर यह साबित किया जाए कि उस ने विरोधाभासी कथन किए हैं। इस से स्त्री के दोनों मुकदमे कमजोर होंगे और पति को उस का लाभ प्राप्त होगा। इस तरह के मामलों यदि पति की पैरवी कोई अनुभवी वकील कर रहा होगा तो इस परिस्थिति का लाभ अवश्य लेगा। लेकिन पत्नी की लालच और परेशान करने की  नीयत साबित करने के लिए प्रतिरक्षा करने वाले पति को अतिरिक्त साक्ष्य अवश्य प्रस्तुत करनी होगी। उस के बिना केवल विरोधाभासी कथनों के आधार पर पत्नी के इरादे को साबित नहीं किया जा सकता।

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