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जहाँ विवाह नहीं हुआ हो, कोई लेन-देन न हुआ हो और न साथ रहे हों वहाँ की अदालत को 498ए के मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है

 संदीप गोयल ने पूछा है –

मेरा विवाह हरियाणा राज्य में संपन्न हुआ था। अमृतसर जहाँ मेरी पत्नी का मायका है वहाँ कुछ  भी नहीं लिया दिया गया। वर्तमान में मैं अहमदाबाद (गुजरात) में निवास कर रहा हूँ। मैं जानना चाहता हूँ कि मेरे विरुद्ध अमृतसर की अदालत में दर्ज किए गए  धारा 498ए भा.दं.संहिता के मुकदमे में अमृतसर की आदालत को किस तरह क्षेत्राधिकार है?
 उत्तर –  
संदीप जी,
मैं ने आप से आप के विरुद्ध पंजीकृत की गई प्रथम सूचना रिपोर्ट अथवा अदालत में की गई शिकायत की प्रति मुझे मेल करने को लिखा था। आप ने अन्यान्य दस्तावेजों की प्रतियाँ तो प्रेषित की हैं, लेकिन इन दोनों ही दस्तावेजों की प्रतियाँ इन में नहीं हैं। आप के भेजे दस्तावेजों में न्यायालय में शिकायत के उपरांत आप की पत्नी द्वारा दिए गये बयान और गवाहों के बयानों की प्रतियों के अध्ययन से पता लगता है कि आप की पत्नी और गवाहों ने अपने बयानों में आप के विरुद्ध दहेज के लिए उत्पीड़न करने और फिर स्त्री-धन मांगने पर भी न देने का आरोप लगाया है। इन बयानों में इस बात को छुपाया गया है कि ये सब घटनाएँ कहाँ घटित हुई हैं। जिन से यह प्रतीत होता है कि जैसे ये सब घटनाएँ अमृतसर में घटित हुई हैं। लेकिन यह प्रतीति त्रुटिपूर्ण है।  कोई भी अदालत केवल प्रतीति के आधार पर किसी मामले में प्रसंज्ञान नहीं ले सकती। ऐसा प्रतीत होता है कि अदालत ने मामला उन के क्षेत्राधिकार का न होते हुए भी गलत प्रसंज्ञान ले लिया है। निश्चित रूप से जो घटनाएँ अमृतसर में घटित नहीं हुई हैं उन के आधार पर अमृतसर की अदालत प्रसंज्ञान नहीं ले सकती। 
ब गलत प्रसंज्ञान लिए जाने के कारण आप को प्रसंज्ञान आदेश के विरुद्ध सत्र न्यायालय के समक्ष पुनरावलोकन याचिका प्रस्तुत करनी चाहिए थी। पर मेरे विचार से उस के लिए समय सीमा समाप्त हो चुकी है और ऐसी याचिका आप अब प्रस्तुत नहीं कर सकते। अब तो आप के पास एक मात्र मार्ग यही बचा है कि जब आप के विरुद्ध आरोप विरचित किये जाएँ तो आप अदालत के समक्ष अपना पक्ष रखें और कहें कि इस मामले में अदालत को आरोप विरचित करने का क्षेत्राधिकार नहीं है। यदि अदालत आप के तर्क को स्वीकार कर लेती है तो उत्तम है अन्यथा आप को आरोप विरचित करने के आदेश के विरुद्ध पुनरावलोकन याचिका प्रस्तुत करनी चाहिए। यदि आप इस में भी सफल नहीं होते हैं तो फिर आप के समक्ष एक मात्र मार्ग अभियोजन में प्रतिरक्षा करना ही शेष रह जाएगा। तब आप अभियोजन के गवाहों से जिरह कर के और अपने गवाहों व दस्तावेजों के माध्यम से अपनी प्रतिरक्षा कर सकते हैं। वास्तविक तथ्य सामने आने पर आप के विरुद्ध मामला समाप्त हो जाएगा। 
मुझे लगता है कि आप के और आप की पत्नी के बीच किन्हीं बातों को ले कर गंभीर मतभेद है। आप को कांउन्सलरों के माध्यम से अपना विवाद सुलझाने का प्रयत्न करना चाहिए। यदि मामला सुलझने लायक न हो तो आपसी सहमति

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