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तलाक का मुकदमा करें, लेकिन पत्नी से सुलह की नीयत से

 विनीत  ने पूछा है –

मेरी उम्र २५ साल है, मैं उ. प्र. का हूँ।  मेरी शादी के ६ साल हो गए हैं। मेरी एक ३ साल की बच्ची है। ४  साल से पत्नी मेरे साथ में नहीं रहती, और बुलाने जाता हूँ तो नहीं आती।  फिर उसने उल्टा रपट लिखाया कि मुझे लेने कोई नहीं आता। फिर उस से सुलहनामा हो गया।  मैं ने उसकी बात मान ली कि जैसा वह बोलेगी मैं वैसा ही करूंगा। वह फिर भी नहीं आई। मैं परेशान हो कर मुंबई आ गया।  अपना काम करने लगा। यहाँ  एक लड़की से मुझे प्यार हो गया और हम दोनों ने मंदिर में शादी कर ली।  लेकिन लड़की के  घर वालों को पता नहीं।  अब  पत्नी ने ४९८ए और ३/४ का मुकदमा कर दिया। जमानत करा ली है। कोर्ट में सुलहनामा के लिए तारीख लगी थी। लेकिन वह नहीं आती है। हम लोग इस मुक़दमे से कैसे छुटकारा पाएँ?  हमारी मदद करो।  हमें कुछ राय बताएँ। हिंदी में मेल करें, जल्द से जल्द।

 उत्तर –

विनीत भाई, 

प की पत्नी नहीं आई तब आप को उसे लाने के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 में उसे लाने के लिए मुकदमा करना चाहिए था। आप ने वह नहीं किया। फिर उस ने रपट कराई कि उसे कोई लेने नहीं आता। आप ने उस से सुलह कर ली, उस की सारी बातें मान लीं, वह फिर भी नहीं आई। तब आप को धारा-9 का मुकदमा करना चाहिए था। आप के पास सुलहनामा था। उस का सहारा ले कर आप धारा-13 में उस के न आने के कारण तलाक का मुकदमा कर सकते थे लेकिन आप ने वह भी नहीं किया। आप को लगता था कि अदालत में जाने से आप का मान कुछ कम हो जाएगा। लेकिन अब उस ने आप के विरुद्ध धारा 498-ए का मुकदमा कर दिया। (यह धारा 3/4 तो अपने भी समझ नहीं आई कि क्या है?) आप को जमानत करानी पड़ी। अब अदालत तो आप पहुँच ही गए हैं। हिन्दू परिवार में किसी भी वैवाहिक विवाद का हल केवल अदालत में ही निकल सकता है। आप अदालत के बाहर उसे हल भी कर लेंगे तो भी उस पर मोहर अदालत ही लगाएगी। आप ने ऐसा कोई काम तो किया नहीं है जिस से आप के विरुद्ध धारा 498-ए प्रमाणित हो। अब इस मुकदमे का हल तो अदालत में गवाह-सबूत हो कर अदालत के फैसले से ही निकलेगा। इस लिए आप को अच्छा वकील कर के इस मुकदमे को लड़ना चाहिए। 

प की पत्नी ने आप के विरुद्ध अभी तक खर्चे का मुकदमा नहीं किया है। इस से ऐसा लगता है कि आप की पत्नी आप से तलाक नहीं चाहती है। वैसे भी वह आप की पुत्री का पालन पोषण कर रही है। वह आप से शायद ही कभी अलग हो पाए। फिर भी आप को उस के विरुद्ध धारा-13 हिन्दू विवाह अधिनियम में विवाह विच्छेद (तलाक) का मुकदमा करना चाहिए। इस मुकदमे में आप की पत्नी को आना होगा और अदालत आवश्यक रूप से आप दोनों के बीच सुलह की कार्यवाही करेगी। यदि वहाँ सुलह हो जाए तो आप अपनी पत्नी और बेटी को साथ ला कर रखिए और घर बसाइए। पत्नी यदि किसी बात से नाराज है तो उसे मना लीजिए। यदि वह धारा-13 के तलाक के  मुकदमें में नहीं आती है तो मुकदमा उस के विरुद्ध एक-तरफा हो जाएगा और वह आप के पास आ कर नहीं रहती है इसी आधार पर आप को तलाक मिल सकता है। यदि ऐसा हो जाए तो आप अपनी पत्नी से मुक्त हो जाएंगे। लेकिन आप की पुत्री आप को नहीं मिल पाएगी। पत्नी के पास रहते हुए भी, पुत्री के वयस्क होने और उस का विवाह होने तक उस का सारा खर्च आप को उठाना पड़ेगा।

प ने अन्य लड़की के साथ प्रेम और मंदिर में विवाह की बात कही है। मुझे यह लगता है कि यह आप का  बचपना है। आप अपनी पत्नी से तलाक लिए बिना दूसरा विवाह नहीं कर सकते हैं। इस तरह मंदिर में किया गया यह विवाह न केवल अवैध और शून्य है। अपितु यह आप की पत्नी उस लड़की दोनों के साथ धोखाधड़ी का अपराध भी है। दोनों ही आप के विरुद्ध इस के लिए फौजदारी मुकदमा कर सकती हैं। आप के विरुद्ध अपराध साबित होने पर आप को जेल की सजा काटनी पड़ सकती है। 

मेरी राय तो आप को यही है कि आप पत्नी से तलाक लेने के लिए मुकदमा करें, लेकिन सुलह के इरादे से। अदालत में सुलह हो जाए तो पत्नी और पुत्री को साथ ला कर रखिए और अब की बार इस तरह रखिए कि वह आप को छोड़ कर न जाए।

 

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