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अंतर्जातीय विवाह से उत्पन्न संतान की जाति

 
 छतरपुर (म.प्र.) से प्रिंस कुमार ने पूछा है –

मेरा परिवार आरख जनजाति का है जो कि एक अनुसूचित जनजाति है। परिवार के सभी पुरुष सदस्यों के विवाह अन्तर्जातीय हैं। जिस के कारण परिवार में जो स्त्रियाँ विवाह कर के आई हैं वे सब खांगर जाति से आई हैं जो कि एक अनुसूचित जाति है। मुझे अपने पिता के स्थान पर सरकारी नौकरी मिली है। लेकिन अब प्रशासन मुझे जनजाति का प्रमाण पत्र जारी नहीं कर रहा है। मुझे क्या करना चाहिए?

 सलाह –

प्रिंस कुमार जी, 

निश्चित रूप से जब कोई अंतर्जातीय विवाह करता है तो उस से उत्पन्न संतानों की स्थिति क्या होगी? यह गंभीर प्रश्न है। लेकिन अब इस प्रश्न को न्यायालयों के निर्णयों द्वारा हल कर लिया गया है। अनेक मामलों में अधिकांशतः यह प्रश्न न्यायालयों के समक्ष इस रूप में सामने आया कि किसी व्यक्ति ने आरक्षण का लाभ उठाने के लिए जिस जाति का होने से अधिक लाभ प्राप्त हो सकता था उसी जाति का प्रमाण पत्र बनवा लिया। लेकिन न्यायालय का दृष्टिकोण यह रहा कि इस तरह आरक्षण का लाभ नहीं उठाया जा सकता है। न्यायालयों का मानना है कि किसी वयस्क व्यक्ति की जाति इस लिए परिवर्तित नहीं हो सकती कि उस ने विवाह कर लिया है। मसलन एक सवर्ण जाति की स्त्री की किसी आरक्षित जाति के पुरुष से विवाह कर लेने मात्र से उस की जाति की नहीं हो सकती। उस की जाति वही बनी रहेगी जो कि जन्म से है।

प की समस्या कुछ भिन्न है। आप का जन्म एक अंतर्जातीय विवाह के फल स्वरूप हुआ है। वैसी स्थिति में आप की जाति का निर्धारण इस बात से होगा कि आप के माता-पिता का विवाह होने के उपरान्त दोनों किस जाति में बने रहे हैं। भारत में सामान्य रूप से विवाह के उपरांत विवाहित दम्पति पुरुष के परिवार के साथ निवास करते हैं और स्त्री का परिवार छूट जाता है। यदि स्थिति ऐसी ही है तो फिर इस विवाह से उत्पन्न संतान की जाति उस के पिता की जाति होगी। लेकिन यदि इस अंतर्जातीय विवाह के कारण आप के पिता अपने परिवार से अलग रहने लगे हैं और दम्पति को माता की जाति ने अपनाया है तो फिर माता की जाति मानी जा सकती है। लेकिन यह तथ्य का प्रश्न है जो साक्ष्य के आधार पर निर्णीत किया जा सकता है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि आप की समस्या इस लिए है कि जाति प्रमाण पत्र जारी करने वाले लोग या तो समस्या को समझते नहीं है अथवा समस्या का समाधान खोजने में असमर्थ हैं।

र्जुन कुमार बनाम भारत संघ व अन्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि जाति प्रमाण  पत्र तथ्यों की जाँच के उपरान्त ही जारी किया जाना चाहिए। क्योंकि किसी जाति विशेष के लिए उपलब्ध आरक्षण का लाभ तभी उठाया जा सकता है जब कि किसी व्यक्ति ने उस जाति विशेष का होने के कारण जो सामाजिक परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं वे उठाई हों। एम. आराथी (अवयस्क) बनाम तमिलनाडु राज्य में मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि यदि किसी जनजातीय पुरुष का विवाह किसी अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति अथवा किसी सामान्य वर्ग की जाति की महिला के साथ हुआ हो तो उन से उत्पन्न होने वाली संतान को उस के पिता की जाति का ही माना जाएग
ा।

प के पिता जनजाति के थे इस कारण आप को भी जनजाति का ही माना जाएगा। इस संबंध में आप उक्त न्यायालय निर्णयों की प्रतियाँ संलग्न कर दुबारा जाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन कर सकते हैं। आवेदन के साथ ही आप गांव के आप की जनजाति के किसी बुजुर्ग का या जाति पंचायत के प्रधान का शपथ पत्र इस आशय का भी लगाएँ कि आप के पिता का विवाह होने के उपरान्त आप की माता को आप की जाति का ही माना गया और जाति में उन का वही स्थान है जो कि आप के पिता द्वारा जनजाति में विवाह होने के उपरान्त होता, तथा आप को जन्म से ही जनजाति का माना गया है। इस शपथ पत्र के उपरान्त भी यदि सक्षम अधिकारी आप को जनजाति का प्रमाण पत्र जारी नहीं करते हैं तो इस के लिए आप उच्चन्यायालय के समक्ष रिट याचिका दाखिल कर सकते हैं।

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