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पूर्व नियोजक से बकाया परिलाभ प्राप्त करने के लिए क्या उपाय है?

 कानपुर उ.प्र. से सरोज पाठक ने पूछा है –

 
मैं ने एक प्राइवेट लि. कंपनी में ढाई वर्ष काम किया। कंपनी के नियमों के अनुसार मैं चिकित्सा भत्ते और एल.टी.सी. (अवकाश यात्रा रियायत) पाने का अधिकारी हो गया। मैं ने एक माह का नोटिस दे कर नौकरी छोड़ दी। उस समय कंपनी ने कमजोर आर्थिक स्थिति प्रदर्शित करते हुए ये दोनों लाभ तथा 15 दिन का वेतन शीघ्र देने का वायदा किया। अनेक तकाजे करने पर भी दो वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी दोनों लाभ मुझे नहीं दिए गए। अब पता लगा है कि कंपनी अन्य कर्मचारियों के साथ भी ऐसा ही कर रही है। मुझे सलाह दी गई है कि मैं दीवानी वाद अथवा औद्योगिक अधिनियम की धारा-33 सी (2) के अंतर्गत अपना दावा न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकता हूँ। मुझे क्या करना चाहिए? 
 
 उत्तर –
 
 
सरोज जी,
प को नौकरी छोड़े यदि दो वर्ष हो चुके हैं तो आप को उक्त परिलाभों की वसूली के लिए न्यायालय में कार्यवाही कर ही देनी चाहिए। जहाँ तक औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 33 सी (2) के अंतर्गत श्रम न्यायालय के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करने की बात है वहाँ आप को अनेक अड़चनों का सामना करना पड़ सकता है। सबसे पहले तो आप को एक औद्योगिक विवाद अधिनियम में परिभाषित श्रमिक (workman) होना आवश्यक है। यदि आप श्रमिक हैं तो भी नियोजक यह आपत्ति कर सकता है कि आप श्रमिक नहीं हैं। तब आप को न्यायालय के समक्ष साबित करना पड़ेगा कि आप श्रमिक हैं। दूसरे औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 33 सी (2) के अंतर्गत केवल पहले से किसी न्यायालय द्वारा यह निर्णीत कर देने पर अथवा स्वयं नियोजक द्वारा यह स्वीकार कर लेने पर कि आप ये लाभ लेने के अधिकारी हैं, केवल परिलाभों की संगणना होगी। फिर उस की वसूली के लिेए आवेदन करना होगा। यदि नियोजक ने यह आपत्ति की कि आप को ये लाभ प्राप्त करने का अधिकार नहीं है तो आप का आवेदन श्रम न्यायालय का क्षेत्राधिकार न होने के कारण निरस्त कर दिया जाएगा। आप अकेले इस संबंध में कोई औद्योगिक विवाद भी नहीं उठा सकते हैं। इस कारण से मेरा मत है कि आप को धारा 33 सी (2) के अंतर्गत आवेदन न कर के दीवानी वाद ही प्रस्तुत करना चाहिए। 
 
स के लिए आप तुरंत एक कानूनी नोटिस नियोजक को भिजवाएँ जिस में उन्हें लिखें कि वे आप को आप की बकाया राशियों का भुगतान पन्द्रह दिन में कर दें अन्यथा आप दीवानी वाद अथवा अन्य कार्यवाही करने को बाध्य होंगे तथा कानूनी कार्यवाही के हर्जों-खर्चों के लिए नियोजक जिम्मेदार होगा। इस नोटिस के एक माह बाद आप दीवानी वाद प्रस्तुत कर दें। ध्यान रहे कि दीवानी वाद आप के नौकरी छोड़ देने की तिथि के तीन वर्ष की अवधि समाप्त होने के पहले ही प्रस्तुत कर दें। अन्यथा आप अवधि बाधित हो जाने के कारण यह वाद प्रस्तुत नहीं कर सकेंगे। दीवानी वाद प्रस्तुत करने में केवल एक हानि यह है कि आप को
वादमूल्य पर न्यायालय शुल्क अदा करना पड़ेगा। जो कि आप द्वारा चाहे गए दावों की कीमत का 7-8 प्रतिशत तक हो सकता है।

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